Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the js_composer domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
 सांप्रदायिकता की आग क्या बुझेगी? | dharmpath.com

Sunday , 8 June 2025

Home » धर्मंपथ » सांप्रदायिकता की आग क्या बुझेगी?

सांप्रदायिकता की आग क्या बुझेगी?

हमने कभी यह सोचा न था कि हमारे मुल्क का कभी बंटवारा होगा। लेकिन हम बंट गए और हमें क्या हासिल हुआ इसका सटीक लेखा-जोखा हमारे पास संभवत: नहीं है। हिंदुओं और मुसलमानों को भारत-पाकिस्तान के दो हिस्सों में विभाजित कर अंग्रेजों ने जो साजिश रची, उसकी आग देश में आज भी धधक रही है। इसका परिणाम अयोध्या और दादरी के साथ सुलगता कश्मीर है।

हमने कभी यह सोचा न था कि हमारे मुल्क का कभी बंटवारा होगा। लेकिन हम बंट गए और हमें क्या हासिल हुआ इसका सटीक लेखा-जोखा हमारे पास संभवत: नहीं है। हिंदुओं और मुसलमानों को भारत-पाकिस्तान के दो हिस्सों में विभाजित कर अंग्रेजों ने जो साजिश रची, उसकी आग देश में आज भी धधक रही है। इसका परिणाम अयोध्या और दादरी के साथ सुलगता कश्मीर है।

गोरे हमारे बीच सांप्रदायिक तनाव की ऐसी दीवार खड़ी कर चले गए, जिसकी लंबाई को हम आज तक नाप नहीं पाए। मुल्क को दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया। एक विशाल राष्ट्र जाति और धर्म के नाम पर विभाजित हो गया। हमारे खून के रिश्ते बंट गए। हमारी ईद, दीवाली, होली, दशहरा सब कुछ बंट गया। उस बंटवारे की पीड़ा आज हमारे लिए कितनी नासूर बन गई है, यह हम भली भांति समझ रहे हैं। लेकिन हम विभाजित होने के बाद फिर एक विभाजन की ओर बढ़ रहे हैं।

दुनियाभर की आतंकी और विंध्वसंक ताकतें हमंे विभाजित करने पर तुली हैं। लेकिन यह बात संभवत हमारे समझ में नहीं आ रही है, क्योंकि हमारा राजनीतिक स्वार्थ देश से भी बड़ा हो गया है। हमें एक के बाद एक बंटवारे के मुहाने पर खड़ा कर वैश्विक ताकतें अपना उल्लू सीधा करना चाहती हैं।

एशिया महाद्वीप में भारत-पाकिस्तान के विभाजन और उसकी दुश्मनी का लाभ सीधे तौर पर अमेरिका और चीन उठा रहे हैं। आज इसी का परिणाम है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में हमें वीटो वाले देशों जैसा स्थान नहीं मिल पा रहा है। भारत-पाकिस्तान आपस में विभाजित होने के साथ-साथ विचार और सिद्धांतों से भी बंटे और कटे हुए हैं।

भारत से पाकिस्तान बना और फिर बंगलादेश। कश्मीर को लेकर जंग जारी है। इस मसले को बार-बार संयुक्त राष्ट्र में घसीटने की कोशिश की जाती है, लेकिन यह दीगर बात है कि सफलता हाथ नहीं लगती। विभाजन के कारण हमने महात्मा गांधी को खोया। इसी जाति, धर्म, संप्रदाय और आतंकवाद की भेंट राजीव गांधी, इंदिरा गांधी और दूसरे राजनेता चढ़े। इस विभाजन के पीछे आखिर वजह क्या है? जब हिंदू और मुसलमान अलग-अलग देशों में बंट गया, बावजूद इसके इस समस्या का हल क्यों नहीं निकला? पाकिस्तान बनने के बाद बंगलादेश क्यों बना?

क्या एक और विभाजन के बाद हिंदू और मुस्लिम का भेद मिट जाएगा? तब सांप्रदायिकता की आग नहीं जलेगी? दादरी और गोधरा जैसी घटनाएं नहीं होंगी? मुंबई बारूदों की आग में नहीं जलेगी? घाटी में तिरंगा आग के हवाले नहीं होगा? अलग कश्मीर की मांग नहीं की जाएगी? मोहर्रम और दुर्गा पूजा के दौरान सांप्रदायिक दंगे नहीं होंगे? निश्चित तौर पर सारी फसाद की जड़ हमारी राजनीति और उसकी सांप्रदायिक नीति है।

हम देश को एकल भारत के रूप में नहीं देख रहे हैं। हम इसे हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाइयों वाला भारत देख रहे हैं। जिस दिन भारत भारतीयता और भारतवासियों की बात करने लगेगा, उस दिन संभत: सांप्रदायिकता की आग ठंडी हो जाएगी। भाषा, जाति, धर्म, प्रांतवाद की बात नहीं आएगी। लेकिन हम ऐसा जब कर पाएंगे?

राजनीति की सोच बदलनी होगी। हमंे उस सोच को विस्तार देना होगा। सत्ताा की केंद्र बिंदु से हमें बाहर आना होगा। देश और प्रदेश में बढ़ती सांप्रदायिक आग ने हमारी गंगा जमुनी तहजीब को तोड़ कर रख दिया है। देश मंे सांप्रदायिक घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। कभी मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने की धमकी दी जाती है और कभी कश्मीर में आईएसआई झंडे लहराए जाते हैं।

पाकिस्तान जिंदाबाद और भारत मुदार्बाद के नारे लगाए जाते हैं क्यों, इससे हम कहीं न कहीं से देश को कमजोर करने पर तुले हैं। आतंकवाद, और सांप्रदायिकता का कोई धर्म नहीं होता है। हमें एक दूसरे की बस्तियां जलाकर एक दूसरे को जिंदा जलाकर क्या हासिल कर लेंगे। श्रीराम बड़े या मोहम्मद पैगम्बर। यह विवाद उन्हीं लोगों पर छोड़ दीजिए। हम ईश्वरीय शक्तियों के लिए क्यों कट मर रहे हैं। हमने तो इसके लिए कभी पैगम्बर साहब और श्रीराम को लड़ते हुए नहीं देखा। फिर हम आप अपना क्यों खून बहा रहे हैं? गाय और सूअर के विवाद से हमें क्या मिलने वाला है।

देश और विदेश में बीफ और दूसरे मवेशियों का बड़ा बाजार है। अगर धर्म की इतनी हमें चिंता है तो जिन बूचड़खानों में बेगुनाह पशुओं का बध किया जाता है, गोवंश की खुले आम तस्करी की जाती है, वहां हमारा जमीर क्यों सो जाता है? हम हिंदू-मुसलमान एक साथ मिलकर यह आवाज क्यों नहीं उठाते हैं कि देश में स्थापित सभी बूचड़खाने बंद होने चाहिए। बेगुनाह मवेशियों का कत्ल हमें मान्य नहीं है, वह चाहे किसी भी प्रजापति के मवेशी हों।

हम क्यों सिर्फ गाय और सूअर की बात करते हैं? हम तो इंसान है, हमारी इंसानियत तो बेजुबानों के लिए भी दिखनी चाहिए। फिर हम मौन क्यों हो जाते हैं? धर्म के नाम पर लड़ाई बंद होनी चाहिए।

हमें देश के खिलाफ उठने वाली हर आवाज के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी। हिंदू मुसलमान, सिख, ईसाई, उत्तर, पूर्व, पश्चिम, दक्षिण की बात बंद करनी होगी। हमें विंघ्य से हिमाचल, यमुना से गंगा, द्रविड़ से बंग, अटक से कटक तक की बात करनी होगी। हमारी इसी आंतरिक कमजोरी का फायदा हमारे पड़ोसी उठा रहे हैं। वैश्विक मंच के साथ अन्य मसलों पर हमें बारबार चेतावनी देते हैं और कमजोर करने की साजिश रचते हैं। चीन जब चाहता है, हमारी सीमा पहुंच हमें आंखें दिखाता है। कश्मीर में आईएसआई और दूसरे आतंकी संगठन कहर मचाते हैं। हमारे देश में वे पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा बुलंद करते हैं।

हमारे देश की आत्मा संसद पर हमले की साजिश रची जाती है। पाकिस्तान आए दिन हमारे सीमा पर गोले दाग कर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देता है। यह सब आखिर क्यों? भारत एक सहिष्णु देश है। यहां हिंसा कोई स्थान नहीं है। हमारी अनेकता में एकता की संस्कृति पूरी दुनिया के लिए मिसाल है। लेकिन देश में हर महीने औसतन 57 सांप्रदायिक दंगे हमारी सोच पर सवाल उठाते हैं। इससे बड़ी हमारे लिए शर्म की बात और क्या हो सकती है? लेकिन अब यह देश सांप्रदायिक दंगों के लिए जाना जाने लगा है।

पिछले पांच सालों का आंकड़ा देखें तो सबसे अधिक सांप्रदायिक दंगे उत्तर प्रदेश में हुए हैं। इस दौरान देश में 3,416 सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें 529 लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी। दंगों मंे 10,344 लोग घायल हुए। देश में औसतन हर माह 57 सांप्रदायिक विवाद होते हैं। सांप्रदायिक विवाद में देश में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। यहां कभी मुजफ्फनर, कभी सहारनपुर और कभी दादरी जैसी घटनाएं होती हैं। उत्तर प्रदेश में पिछले पांच साल में 703 सांप्रदायिक दंगे हो चुके हैं।

दूसरे पायदान पर 484 घटनाओं के साथ महाराष्ट्र और तीसरे पर 416 दंगे के साथ मध्य प्रदेश और इसके बाद 356 दंगों के साथ कर्नाटक और 305 सांप्रदायिक दंगों के साथ गुजरात है। हमारे देश की यह असली तस्वीर है। यह हमारी निजी सर्वे रिपोर्ट नहीं है। यह चर्चा के दौरान देश की संससद लोकसभा में पेश किए गए आंकड़े हैं।

सवाल उठता है कि यह आग कब बुझेगी? यह हमें कमजोर करने की साजिश रची जा रह है, लेकिन वोट बैंक की राजनीति जाने हमें कहां पहुंचा देगी? वह वक्त दूर नहीं जब हम एक और विभाजन के चैराहे के करीब खड़े होंगे। जब फिर कोई नाथू राम गोडसे पैदा होगा और किसी महत्मा गांधी को शहीद होना पड़ेगा। लेकिन हमें वक्त में बदलाव लाना होगा, ताकिदेश की सांप्रदायिक एकता के साथ हमारी राष्ट्रीय अखंडता कायम रहे। (आईएएनएस/आईपीएन)

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

सांप्रदायिकता की आग क्या बुझेगी? Reviewed by on . हमने कभी यह सोचा न था कि हमारे मुल्क का कभी बंटवारा होगा। लेकिन हम बंट गए और हमें क्या हासिल हुआ इसका सटीक लेखा-जोखा हमारे पास संभवत: नहीं है। हिंदुओं और मुसलमा हमने कभी यह सोचा न था कि हमारे मुल्क का कभी बंटवारा होगा। लेकिन हम बंट गए और हमें क्या हासिल हुआ इसका सटीक लेखा-जोखा हमारे पास संभवत: नहीं है। हिंदुओं और मुसलमा Rating:
scroll to top