नई दिल्ली, 22 जून (आईएएनएस)। दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर के फर्जी डिग्री के मामले की प्रकृति गंभीर करार देते हुए यहां की एक अदालत ने सोमवार को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
याचिका खारिज करते हुए अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी तरुण योगेश ने तोमर की न्यायिक हिरासत अवधि छह जुलाई तक बढ़ाते हुए उनसे पूछा, “.. आप हमें कब तक मूर्ख बनाएंगे।”
दंडाधिकारी ने आश्चर्य जताते हुए कहा, “साधारण नागरिक के रूप में आप हमें कब तक मूर्ख बनाएंगे। आप फर्जी हलफनामा अथवा दस्तावेज तैयार नहीं कर सकते.. लोगों को कब तक ठगा जाएगा? हम अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए मतदान करते हैं, लेकिन हमें बदले में मिलता क्या है।”
अदालत ने आश्चर्य जताया कि कैसे एक विधायक फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर आम आदमी को मूर्ख बना सकता है। साथ ही अदालत ने मतदान प्रणाली में नोटा (इनमें से कोई नहीं) के विकल्प को शामिल करने के सर्वोच्च न्यायलय के फैसले को सही ठहराया।
दंडाधिकारी ने कहा, “सर्वोच्च न्यायालय ने नोटा के विकल्प का प्रावधान कर अच्छा किया। एक साधारण मतदाता के रूप में ईवीएम पर इस बटन को दबाकर मुझे अपार संतोष मिलता है।”
तोमर ने जमानत की याचिका दायर करते हुए दलील दी थी कि उन्हें गुरुवार से शुरू होने वाले दिल्ली विधानसभा के शत्र में भाग लेना है।
अदालत ने तोमर की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह, एक चुने हुए विधायक होने के नाते तोमर जनप्रतिनिधि हैं और अदालत उनके खिलाफ आरोपों की गंभीरता को स्वीकारती है। उनके ऊपर वकील के रूप में पंजीकृत होने के लिए फर्जी दस्तावेजों का उपयोग करने का आरोप है।
दंडाधिकारी ने अपने आदेश में कहा, “मामले में विधि परिषद अधिवक्ता के तौर पर पंजीकरण के लिए फर्जी डिग्री और दस्तावेज का उपयोग और आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) के आरोपों में यह मामला दर्ज है और जिन सह आरोपियों, साथियों के अपराध में सहभागिता की आशंका है, वे अब तक पकड़े नहीं गए हैं। ऐसे में तोमर को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है।”
दिल्ली पुलिस ने जमानत याचिका का विरोध किया। सरकारी अधिवक्ता अतुल श्रीवास्तव ने दावा किया कि आरोपी एक प्रभावशाली व्यक्ति है और अगर उसे रिहा किया जाता है तो वह मामले से जुड़े सबूतों को प्रभावित कर सकता है।
तोमर के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता ने हालांकि कहा कि मामला दस्तावेज संबंधी सबूतों पर आधारित है और इसीलिए गवाहों और जांच को प्रभावित करने की कोई संभावना नहीं है।