मनाली, 18 मार्च (आईएएनएस)। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बीते दिनों जो कुछ हुआ, उसने एक बार फिर साबित कर दिया है कि क्यों कुत्ते को इंसान का सबसे अच्छा दोस्त कहा जाता है। संभवत: अपनी जान गंवाकर यहां बर्फीले हालात में चार दिनों से फंसे आठ ट्रैकरों की जान बचाकर एक आवारा कुत्ते ने इंसान का सबसे अच्छा दोस्त होने के सदियों पुराने यकीन को टूटने नहीं दिया।
मनाली, 18 मार्च (आईएएनएस)। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बीते दिनों जो कुछ हुआ, उसने एक बार फिर साबित कर दिया है कि क्यों कुत्ते को इंसान का सबसे अच्छा दोस्त कहा जाता है। संभवत: अपनी जान गंवाकर यहां बर्फीले हालात में चार दिनों से फंसे आठ ट्रैकरों की जान बचाकर एक आवारा कुत्ते ने इंसान का सबसे अच्छा दोस्त होने के सदियों पुराने यकीन को टूटने नहीं दिया।
तीन दिनों के गहन खोजबीन के बाद आठ ट्रैकरों को हेलीकॉप्टर की मदद से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया। सभी ट्रैकर चार दिनों तक जिस हालात में रहे, उस हालात में आमतौर पर कोई जिंदा नहीं बच पाता।
पंजाब के ‘संत लोंगोवाल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलजी’ के सात छात्र और उनके ट्रैकिंग गाइड को कुल्लू जिले में बिताए गए चार बेहद दर्दनाक दिन जीवन भर याद रहेंगे। और साथ ही याद रहेगा वह कुत्ता जो बिना किसी ‘जान-पहचान’ के एक जीवनदायी देवता की तरह उनका साथ हो लिया था।
ट्रैकरों में से एक सौरव शर्मा ने आईएएनएस को बताया, “एक स्थानीय कुत्ता, जो कि सम्भवत आवारा था, चार दिनों तक हमारे साथ रहा। हम जब बिजलेश्वर महादेव मंदिर से चंद्रखानी पर्वत की ओर जा रहे थे, तब वह हमारे साथ हो लिया था।”
ट्रैकरों ने रास्ते में उस कुत्ते को भगाने की कोशिश की लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। कुछ समय बाद वह ट्रैकिंग टीम का नौवां सदस्य बन गया और खतरनाक रास्तों पर इंसानों का दोस्त बनकर चलता रहा।
सौरव ने कहा, “हमने कुत्ते को जब भी खाने को दिया, उसने इंकार कर दिया। हम इसका कारण नहीं जानते। जब मौसम खराब हुआ और बर्फ गिरने लगी, हम रास्ता भटक गए। ऐसे में कुत्ते ने संयम नहीं खोया और एक लिहाज से हमारा मार्गदर्शक बन गया।”
शर्मा ने कहा कि बारी बर्फबारी के बीच वह तथा उनके सभी साथी एक निर्जन स्थान पर फंस गए। यह स्थान बिजलेश्वर महादेव मंदिर से आठ किलोमीटर दूर था।
इसी स्थान पर सबने टेंट लगाया लेकिन कुत्ते ने टेंट में प्रवेश नहीं किया। रात में भारी बर्फबारी के बावजूद वह बाहर ही रहा।
ये सभी ट्रैकर 78 घंटों तक बिना पर्याप्त भोजन और पर्वतारोहण के लिए जरूरी उपकरणों के निर्जन स्थान पर फंसे रहे। 14 मार्च को इन सबको तथा उनके ट्रैकिंग गाइड को चंद्रकरणी चोटी के करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई से बचाया गया। उस समय मौसम बेहद खराब था।
इन ट्रैकरों को खोजने के लिए बचाव तथा खोजबीन अभियान 11 मार्च को शुरू किया गया था। यह अभियान निजी कम्पनी हिमालय हेली एडवेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड के स्विस पर्वतारोही विशेषज्ञों ने शुरू किया था, जिनकी मदद सरकार ने ली थी।
दो दिनों की गहन खोजबीन के बाद स्विस दल ने आठ ट्रैकरों को खोज निकाला था और बाद में उन्हें हवाई मार्ग से सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया था।
इस खोज अभियान में स्थानीय प्रशासन ने पुलिस, स्थानीय निवासियों और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों सहित कुल 100 लोगों की टीम को शामिल किया था।
ट्रैकरों की टीम में शामिल अनिल कुमार ने कहा कि बिजलेश्वर महादेव मंदिर कुल्लू शहर से 15 किलोमीटर दूर है। उनके दोस्त कुत्ते ने दुरूह रास्तों और घने जंगलों के बीच से उनका मार्गदर्शन किया था। अनिल ने कहा, “उस इलाके में भारी बर्फ जमा होने के बावजूद वह कुत्ता हमारा मार्गदर्शन करता रहा।”
दो दिनों के इंतजार के बाद इन सबने देखा कि एक हेलीकॉप्टर रेकी कर रहा है। अनिल ने कहा, “हेलीकॉप्टर को देखकर हमने शोर मचाया और अपने कम्बल हवा में लहराए। कुत्ता भी अपनी ओर से संकेत देने के लिए लगातार भौंकता रहा।”
खोज अभियान में शामिल अधिकारियों ने कहा कि तमाम प्रयासों के बावजूद उस कुत्ते को सुरक्षित नहीं बचाया जा सका।
खोजी अभियान दल ने ट्रैकरों के ठहरने के स्थान की पहचान करके हेलीकॉप्टर के जरिए पहले दिन रस्सी गिराकर छह ट्रैकरों की जान बचाई और फिर अगले दिन बाकी के दो ट्रैकरों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया।
एक बचावकर्मी ने कहा, “कुत्ता कम्बल में लिपटा था। हम जब उसे रस्सी की मदद से ऊपर लाने का प्रयास कर रहे थे, तभी वह कूद गया। चूंकि मौसम खराब हो रहा था, लिहाजा हमने वहां से जाने का फैसला किया।”
बचाव दल के मुताबिक उनके पास अभियान को समाप्त करने के लिए सिर्फ डेढ़ घंटे का समय था क्योंकि बहुत कम समय में आसमान में काले बदल छा गए थे। बचाव दल को मनाली के करीब स्थित बेस कैम्प में लौटना था और यह सब उसी डेढ़ घंटे में करना था।
ट्रैकरों को रस्सी की मदद से ऊपर लाना पड़ा क्योंकि हेलीकॉप्टर ढलान युक्त स्थान पर लैंड नहीं कर सकता था।
शर्मा ने कहा, “मुझे बहुत बुरा लग रहा है कि हमारे दल का एक सदस्य (कुत्ता) अब हमारे साथ नहीं है। उसे वहीं छोड़ना पड़ा। मुझे पता नहीं कि वह कठिन हालात में बच पाया होगा या नहीं।”
बचाव दल में जिला प्रशासन की मदद कर रहे स्थानीय लोगों का कहना है कि आवारा कुत्ते कठिन से कठिन पर्वतीय हालात में जिंदा रह सकते हैं।
बचाए गए सभी ट्रैकरों को कुल्लू स्थित जिला अस्पताल में इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई है।