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मप्र उप-चुनाव : चुनाव बना कमलनाथ v/s शिवराज, सिंधिया का असर हुआ कम

September 18, 2020 10:23 pm by: Category: सम्पादकीय Comments Off on मप्र उप-चुनाव : चुनाव बना कमलनाथ v/s शिवराज, सिंधिया का असर हुआ कम A+ / A-

अनिल कुमार सिंह (धर्मपथ के लिए )

भोपाल-ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के विधायकों द्वारा कांग्रेस सरकार गिरा कर भाजपा सरकार बनवायी गयी ,अब भाजपा उन्हीं पूर्व विधायकों एवं उनके मुखिया महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया के भरोसे उप-चुनाव के मैदान में है ,अब चुनाव 28 सीटों पर होंगे अभी हाल में कांग्रेस विधायक की असमय मौत ने एक सीट पर चुनाव बढ़ा कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं ,सीटों के गणित को देखें तो कांग्रेस एक असंभव लक्ष्य की पूर्ति हेतु मैदान में कूद पड़ी है लेकिन कांग्रेसी सेनापति पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का आत्मविश्वास एवं जनता के प्रति भरोसा अटूट दिख रहा ,यदि कमलनाथ इस असंभव लक्ष्य को जीत कर सरकार बना लेते हैं तब यह उप-चुनाव राजनीति के पंडितों एवं विद्यार्थियों के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था के अध्ययन के लिए मील का पत्थर होगा।

राज्य की विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं, जिनमें से 28 सीटें रिक्त हैं. इस वक्त 203 सीटों वाली विधानसभा में BJP की शिवराज सिंह चौहान सरकार के पास 107 विधायक हैं, जो बहुमत के आंकड़े से पांच ज़्यादा हैं, वहीं कांग्रेस के पास इस वक्त सिर्फ 88 विधायक हैं. उपचुनाव हो जाने के बाद बहुमत का आंकड़ा 117 विधायक का हो जाएगा, जिस तक पहुंचने के लिए BJP को कम से कम नौ और कांग्रेस को सभी 28 सीटें जीतनी होंगी. अगर BJP उपचुनाव में नौ से कम सीटें जीत पाती है, तो उसे समाजवादी पार्टी , बहुजन समाज पार्टी या निर्दलीय उम्मीदवारों का रुख करना होगा. वहीं, मौजूदा समय में 89 विधायकों वाली कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत पाने के लिए उपचुनाव में सभी 27 सीटों पर जीत हासिल करनी होगी, तभी वह दोबारा सत्ता में आने का ख्वाब देख सकती है. वैसे, अगर BJP नौ से कम सीट जीत पाती है, और कांग्रेस 20 से ज़्यादा सीटें जीत लेती है, तो कमलनाथ चार निर्दलीयों, दो BSP और एक SP विधायक का समर्थन हासिल कर दोबारा कुर्सी पा सकते हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि मध्यप्रदेश में आगामी उप-चुनाव न तो आम चुनाव हैं और ना ही केवल उप चुनाव हैं, यह ‘प्रदेश का भविष्य तय करने वाला’ चुनाव है. मध्यप्रदेश में 27 विधानसभा सीटों पर आगामी उप-चुनाव के बारे में पूछे गये सवाल पर कमलनाथ ने पत्रकारों से कहा, ‘‘ये उप चुनाव, आम चुनाव नहीं हैं. मैं इसे उप चुनाव भी नहीं मानता. ये चुनाव मध्यप्रदेश के भविष्य के लिये हैं.’ पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा, ‘पिछले चार माह से मैंने पार्टी को मजबूत करने का काम किया है. क्योंकि हमारी लड़ाई भाजपा की उपलब्धियों के साथ नहीं, बल्कि उनके संगठन के साथ है.’

बात करें शिवराज सिंह चौहान की तो ये राजनीति में रचे – बसे हैं ,केंद्र ने मप्र की सरकार गिराने में सहयोग कर सत्ता इन्हें सौंप दी ,अब इस सत्ता पर पकड़ बनाये रखना शिवराज की जिम्मेदारी है ,सत्ता को मजबूत ढांचा या सत्ता बनाये रखने के लिए इन्हें कुल सीटों के एक हिस्से से कुछ ज्यादा सीटें ही चाहिए लेकिन शिवराज सिंह इस चुनौती को भी हल्के में नहीं ले रहे हैं ,भाजपा संगठन हमेशा चुनाव के लिए तैयार रहता है यह सभी जानते हैं और हमेशा की तरह संगठन इस कार्य नमन जुट गया है। तो अब ऐसा क्या है जो भाजपा के लिए चिंता का विषय बना हुआ है ? वह है अपनों की ही बेरुखी ,जनता में महाराज के प्रति आक्रोश और सबसे बड़ा महाराज और शिवराज का कभी न मिल सकने वाला मन ,इनमें सत्ता को ले मतभेद न हो लेकिन राजनैतिक मनभेद कभी नहीं मिटने वाला।

सिंधिया की रैली में भाजपा कार्यकर्ताओं से अधिक सिंधिया समर्थकों की जो पूर्व कांग्रेसी थे की भीड़ रहती है ,शिवराज संगठन के स्पष्ट आदेश की सिंधिया समर्थक मंत्रियों को जिताना है मन से स्वीकार नहीं कर पाएंगे ,इनमें कुछ वर्तमान मंत्रियों सहित इमरती देवी को हरवाने के स्पष्ट संकेत सूत्रों ने पहले ही दे रखे हैं ,शिवराज यदि जीत के बाद निष्कंटक राज्य चाहते हैं तो सिंधिया की ताकत उन्हें कम करनी ही होगी वरना वर्तमान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा जिनके राजनैतिक सितारे बुलंदी पर हैं मुख्यमंत्री की गद्दी के दावेदार अंदरखाने में घोषित किये जा चुके हैं ,उमा भारती अवश्य यह भ्रम पाले हुए हैं की उन्हें इस उपचुनाव में महत्व दे आगे राजनैतिक उंचाईयों पर ले जाया जाएगा लेकिन उमा अब मप्र में राजनीति की मुख्य धारा से बहुत पीछे छूट गयीं सिर्फ लोधी वोटों की खातिर उपचुनाव में तरजीह दी गयी है।

इस उप-चुनाव में बसपा के दखल को भी नकारा नहीं जा सकता ,कई सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बसपा उत्पन्न करने में सक्षम है लेकिन वर्तमान में केंद्र सरकार के प्रति जन असंतोष एवं चम्बल की मिट्टी में गद्दारों के प्रति घृणा का भाव सिंधिया समर्थक उम्मीदवारों की कम अंतर से हार करवाने में बड़ा कारक बन सकता है. इसके रुझान चुनाव के शुरूआती दिनों में दिखना शुरू हो गए हैं ,यह तरो तय है चम्बल की यह रणभूमि बहुत अप्रत्याशित परिणाम देने वाली है ,इसका खुलासा तो evm खुलने के बाद ही हो पायेगा ……. जिसका सभी को इन्तजार है।

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