भोपाल – मप्र की राजधानी भोपाल में संघ प्रमुख मोहन भागवत का आना में कौतुक का विषय रहा .विश्व में संघ प्रमुख का किसी भी स्थान पर प्रवास हो वे आकर्षण बने रहते हैं.भोपाल में 10 फरवरी को हुआ श्रम साधक सम्मेलन को समरसता सम्मेलन कह प्रचारित किया गया लेकिन प्रेस-विज्ञप्ति अनुसार भागवत जी ने जिन्हें श्रमिक कहा वे श्रमिक उस सम्मेलन से नदारद थे.इस आयोजन में श्रमिकों की जगह ग्रामीण घरेलु गृहस्थों को शामिल किया गया(फोटो संलग्न है)
मोहन-भागवत जैसी सम्मानीय वैश्विक हस्ती के महत्वपूर्ण कार्यक्रम में इस तरह की व्यवस्था प्रतीत हुई जैसी किसी राजनैतिक दल का आयोजन हो.श्रमिकों के स्थान पर घरेलू ग्रामीण पुरुष -स्त्रियों को घेर कर सम्मेलन में लाया गया.संघ के सम्मेलन में संघ-प्रमुख की महत्वपूर्ण एवं गरिमामय उपस्थिति में ऐसा कर आयोजकों ने संघ-प्रमुख की महत्ता का मर्दन करने की कोशिश की .
हमेशा की तरह चुने हुए पत्रकारों को कार्यक्रम में प्रवेश की ताकीद थी, लेकिन खबर बाहर आने से रुक नहीं पायीं .समरसता कार्यक्रम में समरस कुछ नहीं हुआ .लाये गए श्रम-साधकों को जमीन पर बैठाया गया एवं बाबूलाल गौर,मुख्यमंत्री के भाई सुरजीत सिंह चौहान ,भाजपा से निष्कासित नेता प्रकाश मीरचंदानी सहित संघ के प्रादेशिक पदाधिकारी कुर्सियों पर बैठाए गए थे एवं जिनके श्रम-साधकों के लिए यह यह आयोजन किया गया उन्हें जमीन पर बैठा कर समरसता की ह्त्या कर दी गयी .
संत-रविदास जयंती पर उनकी छवि को सामने रख समाज में जिस प्रस्तुति का प्रयास किया गया वह बेमानी सिद्ध हुआ .यह प्रयास उस मूल भावना समरसता के नजदीक भी नहीं पहुँच पाया जिसका प्रचार-प्रसार किया गया था .इस तरह के सम्मेलन वह भी संघ प्रमुख को केंद्र में रख आयोजित करना अपने आप को धोखे में रखने जैसा है .संघ के विचारकों को इस तरह के झूठे एवं भ्रम फ़ैलाने वाले आयोजित राजनैतिक सम्मेलनों से बचना होगा .संघ जैसी संस्था जिसके प्रशंसक परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप में अनगिनत संख्या में हैं वे संघ की स्वच्छ छवि को अपनी नजरों में देखते हैं लेकिन इस तरह के झूठे सम्मेलनों से वह छवि खंडित होती है.
यह सब संघ-प्रमुख ने अपने संज्ञान में लिया या नहीं वह तो संघ प्रमुख ही जानें लेकिन यह परिपाटी संघ की सेहत के लिए मुझे उचित प्रतीत नहीं प्रतीत होती है .
संत रविदास अपना भरण-पोषण स्वयं स्वरोजगार कर चर्म-शिल्पी का कार्य कर करते थे एवं ईश्वर भजन में तल्लीन रहते थे लेकिन एक भी चर्म-शिल्पी इस कार्यक्रम में मौजूद नहीं था और ना ही उसे मंच या कुर्सी पर कोई स्थान दिया गया था .जंगल में मोर नाचा किसने देखा की तर्ज पर पंजीकृत वैचारिक हिन्दू इस कार्यक्रम में शामिल थे और उन्होंने ही समरस हो संघ-प्रमुख की संगत का आनंद लिया .
अनिल सिंह की कलम से