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मणिपुरी महिला पोलो खिलाड़ियों की मौन क्रांति (आईएएनएस विशेष श्रंखला)

इंफाल, 24 मार्च (आईएएनएस)। अक्सर पोलो को अमीरों का खेल माना जाता है, जिसमें पुरुषों का वर्चस्व होता है, लेकिन आधुनिक युग के पोलो खेल की जन्मस्थली मणिपुर में इस खेल में मौन क्रांति देखने को मिल रही है।

इंफाल, 24 मार्च (आईएएनएस)। अक्सर पोलो को अमीरों का खेल माना जाता है, जिसमें पुरुषों का वर्चस्व होता है, लेकिन आधुनिक युग के पोलो खेल की जन्मस्थली मणिपुर में इस खेल में मौन क्रांति देखने को मिल रही है।

पूर्वोत्तर भारत के इस प्रांत में पुरुष सदियों से पोलो खेलते आ रहे हैं, लेकिन अब यहां परिदृश्य बदल गया है। इस खेल में अब महिलाओं का दबदबा देखने को मिल रहा है। प्रदेश की महिलाओं की पांच पेशेवर पोलो टीमें हैं, जिनकी स्पर्धा दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम से है।

साधारण पृष्ठभूमि से आने वाली इन मणिपुरी महिलाओं ने न सिर्फ इस रूढ़ि को तोड़ा है कि पोलो सिर्फ पुरुषों का खेल है, बल्कि इन्होंने यह भी दिखा दिया है कि यह अमीरों के विशेषाधिकार का खेल नहीं है।

प्रदेश में महिला पोलो को प्रोत्साहन देने वालों में अग्रणी एल. सोमी रॉय इसे आइकॉनिक मणिपुरी घोड़ों के संरक्षण का अभियान भी मानते हैं, जिनकी आबादी साल दर साल घटती जा रही है।

वह बताते हैं कि परंपरा के अनुसार, मणिपुरी महिलाएं पोलो नहीं खेलती थीं, क्योंकि यह घुड़सवारी का खेल है। इसकी शुरुआत वैवाहिक परंपरा से हुई है, लेकिन 1980 के दशक में वे अपने पुरुष रिश्तेदारों से प्रेरित हुई हैं।

रॉय ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “ऑल मणिपुर पोलो एसोसिएशन ने उनको प्रोत्साहित किया। दुनियाभर में करीब 40-45 फीसदी पोलो खिलाड़ी महिलाएं हैं। इसलिए हम अभी इस पर पकड़ बना ही रहे हैं। खेल के रूप में यह लिंग-भेद से मुक्त है।”

मणिपुर में जहां देश के एक तिहाई पुरुष खिलाड़ी हैं, जबकि महिला खिलाड़ियों की तादाद तीन-चौथाई है। राय ने बताया कि आर्थिक रूप से अविकसित प्रदेश के इन खिलाड़ियों में अधिकांश इंडियन पोलो एसोसिएशन के सदस्य नहीं हैं।

मणिपुर में देश का सबसे लंबा पोलो सीजन होता है जो नवंबर से मार्च तक चलता है। इस दौरान दो अंतर्राष्ट्रीय और चार राज्य स्तरीय टूर्नामेंट होते हैं, जिनमें मणिपुर स्टेटहुड वुमंस पोलो टूर्नामेंट भी शामिल है। यह देश में पहला ऐसा टूर्नामेंट है, जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, केन्या, आस्ट्रेलिया और अर्जेटीना के खिलाड़ी मणिपुरी लड़कियों के साथ स्पर्धा में उतरते हैं।

मैच इंफाल के मपल कांगजीबंग स्टेडियम में होते हैं, जो दुनिया को सबसे पुराना पोलो ग्राउंड है।

फिल्मकार रूपा बरुआ ने 2016 में मणिपुर में महिला पोलो की कहानी पर आलेख बनाना शुरू किया था। वह कहती हैं कि प्रदेश में युवा पोला बहनापा विकसित हो रहा है।

रूपा ने कहा आईएएनएस से बातचीत में कहा, “2014-15 में मणिपुर में खेलने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला खिलाड़ी लाने का प्रयास किए गया। इस प्रयास का मकसद मणिपुरी घोड़े का संरक्षण करना था, क्योंकि उनके उसके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया था। मैंने इसमें एक सहजीविता का संबंध पाया और इस कहानी का चार साल तक मैंने अनुसरण किया।”

यह आलेख एक फिल्म के रूप में आई, जिसका मकसद इन शक्तिशाली महिलाओं की कहानी दुनिया को बताना था। डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘डॉटर्स ऑफ द पोलो गॉड’ की इसी महीने नई दिल्ली में आयोजित आईएडब्ल्यूआरटी एशियन वुमंस फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग की गई और इसके बाद इसे 26 मार्च को बंबई स्टॉक एक्सचेंज में की दिखाई जाएगी।

बरुआ ने कहा, “मणिपुरी महिलाएं नैसर्गिक घुड़सवार और बेहतरीन एथलीट हैं।”

फिल्म की हिमायती रही 19 साल टन्ना थॉडम 2010 में एक मैच मं कुछ महिला खिलाड़ियों को खेलते देख पोलो खेल के प्रति उत्साहित हुई थीं।

उन्होंने 2011 में असम राइफल्स पोलो क्लब ज्वाइन किया और वह 2017 में स्टेटहुड डे वुमंस पोलो टूर्नामेंट के फाइनल में जाने वाली एकमात्र जूनियर थीं। उन्होंने कहा, “यह मेरे जीवन का सबसे सुखद पल था।”

जेथोलिया थांगबम ने 2016 में पोलो खेलना शुरू किया। उनका मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ खेलने से मणिपुरी खिलाड़ी साल दर साल बेहतर कर रही हैं।

मणिपुर पोलो सोसायटी के सचिव एन. इबुनगोचौबी ने कहा कि मणिपुरवासियों और घोड़ों के बीच खास संबंध है।

लेकिन हाल के दिनों में मणिपुरी घोड़े शहरीकरण के अभिशाप के कारण अपने आवास से वंचित हो गए हैं और उनकी आबादी 2003 में जहां 1,893 थी वह 2014 में घटकर 500 रह गई है।

(यह साप्ताहिक फीचर श्रंखला आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम की सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है।)

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