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 उप्र मिशन-2017 : अतिपिछड़े होंगे निर्णायक | dharmpath.com

Monday , 9 June 2025

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उप्र मिशन-2017 : अतिपिछड़े होंगे निर्णायक

बिहार चुनाव में राजद-जदयू-कांग्रेस महागठबंधन की अप्रत्याशित जीत और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग की बुरी तरह हार से उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में भी भाजपा विरोधी गठबंधन की चर्चा गरम है। वर्ष 1989 के दौर में भाजपा सहित अन्य सभी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा बनाया था, अब अधिकांश दल भाजपा विरोधी महागठबंधन बनाने की कवायद में जुट गए हैं।

बिहार चुनाव में राजद-जदयू-कांग्रेस महागठबंधन की अप्रत्याशित जीत और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग की बुरी तरह हार से उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में भी भाजपा विरोधी गठबंधन की चर्चा गरम है। वर्ष 1989 के दौर में भाजपा सहित अन्य सभी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा बनाया था, अब अधिकांश दल भाजपा विरोधी महागठबंधन बनाने की कवायद में जुट गए हैं।

वर्ष 2016 में असम व पश्चिम बंगाल में विधानसभा का चुनाव होना है। असम में तो द्विकोणीय संघर्ष का खाका खींचा जा सकता है, लेकिन पश्चिम बंगाल में त्रिकोणीय संघर्ष के आसार हैं। अगर तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस-राजद-जदयू का एक महागठबंधन होगा तो एक अलग गठबंधन वाम मोर्चा का होगा, जिसमें सपा भी शामिल हो सकती है। इन दोनों गठबंधनों का मुकाबला भाजपा के गठबंधन (राजग) से होगा।

लेकिन उत्तर प्रदेश में सारी कवायद के बाद भी भाजपा के विरुद्ध ‘धर्मनिरपेक्ष दलों’ का महागठबंधन होना आठवें आश्चर्य के समान होगा।

उत्तर प्रदेश में पूर्व के वर्षो में भाजपा का रालोद व अपना दल से, बसपा का कांग्रेस व सपा से गठबंधन हुआ था। मायावती 1995 का गेस्ट हाउस कांड शायद ही भूल पाएं, ऐसे में सपा-बसपा का गठबंधन असंभव ही है। संभव है कि भाजपा का रालोद से व रालोद का सपा या बसपा या कांग्रेस से गठबंधन हो सकता है।

रालोद पूर्व में भाजपा, कांग्रेस सपा से गठबंधन कर चुका है। मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की दृष्टि से कांग्रेस-रालोद-राजद-जदयू व अन्य छोटे दलों का महागठबंधन बन सकता है। रालोद के लिए कोई भी दल अछूत नहीं है। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय संघर्ष ही होगा, ऐसे में अतिपिछड़ी जातियों की अहम भूमिका होगी और मिशन 2017 में अतिपिछड़ा वर्ग ही चुनावी नैया का मांझी (खेवनहार) बनेगा।

विधानसभा चुनाव-2017 को ध्यान में रखकर ही समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के मुद्दे को एक बाद फिर उभार कर अतिपिछड़ा वर्ग का कार्ड खेला है। चुनावी ²ष्टि से महत्वपूर्ण माने जाने वाले अतिपिछड़ा वर्ग के वोट बैंक को देखते हुए भाजपा, बसपा, सपा, कांग्रेस आदि दलों में जुबानी जंग छिड़ गई है।

अतिपिछड़े वर्ग के वोट बैंक पर कौन दल दावा मजबूत करेगा, अभी भविष्य के गर्भ में है, वैसे मुलायम द्वारा अपने को अतिपिछड़ों का हितैषी घोषित किए जाने से उनके दावे पर विरोधी दलों ने गोला दागते हुए प्रतिवाद कर दिया है कि यदि मुलायम 17 अतिपिछड़ी जातियों के सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं तो इन जातियों को 7.5 प्रतिशत आरक्षण का हिस्सा 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण में से अलग कर दिलाएं।

इसी संदर्भ में सपा समर्थक राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौधरी लौटन राम निषाद ने कहा कि कई चुनावों से निषाद मल्लाह, केवट, मांझी, मछुआ, धीवर, धीमर, कहार, गोड़िया, तुरहा, बाथम, बिंद, रायकवार, राजभर, कुम्हार, प्रजाति आदि 17 अतिपिछड़ी जातियां ‘फुटबॉल की गंेद’ बनी हुई हैं।

उनके मुताबिक, सपा सरकार ने मार्च 2014 में 30 विभाग की 76 योजनाओं में 7.5 प्रतिशत मात्रात्मक आरक्षण देने का फरमान जारी किया, यदि सरकार शिक्षा, नौकरी आदि में 7.5 प्रतिशत विशेष आरक्षण सुनिश्चित कर दे तो 17 प्रतिशत से अधिक वोट बैंक सपा का अटूट वोट बैंक बन जाएगा।

उप्र में भाजपा, बसपा, सपा तीन दल ही सत्ता के प्रबल दावेदार हैं। तीनों दलों में जो अतिपिछड़ों मतों को बहुमत के साथ अपने पाले में करने में सफल होगा, यूपी की सत्ता उसी के हाथ लगेगी।

केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के प्रमुख अमित शाह की टीम ने माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग पर सर्वे का कार्य किया है। उसे भी पता है कि उत्तर प्रदेश में अतिपिछड़ों की अहम भूमिका रहेगी, सो वह अगला प्रदेश अध्यक्ष किसी अतिपिछड़े-लोधी, निषाद-पाल, कुशवाहा/मौर्य या कुर्मी को बनाने का निर्णय ले सकती है।

बिहार में मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित न करने का खामियाजा भुगत चुकी भाजपा उत्तर प्रदेश के लिए अब काफी गंभीर हो गई है और वह हर कदम ठोक-बजाकर ही उठाएगी।

बसपा सूत्र बताते हैं कि वर्ष 2007 में जातिगत भाईचारा कमेटियों की बदौलत पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा एक बार फिर इस ओर अपना कदम बढ़ा सकती है। अतिपिछड़ों की अहमियत को जानते हुए भी मुलायम ने एक बाद फिर अतिपिछड़ा वर्ग के आरक्षण की गेंद उछाल दिया है।

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव-2002 को देखा जाए तो सपा को लगभग 25 प्रतिशत व बसपा को 23 प्रतिशत, 2007 में सपा को 26 प्रतिशत व बसपा को लगभग 30 प्रतिशत एवं 2012 में सपा को 29.13 व बसपा को 25.97 प्रतिशत मत मिला था।

लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा ने 42.13 प्रतिशत मतों के साथ 71, सपा ने 21.90 प्रतिशत मतों के साथ 5 तथा 19.73 प्रतिशत पाने वाली बसपा अपनी खाता भी नहीं खोल पाई थी। ऐसे में विगत 3 विधानसभा चुनावों के परिणाम को देखा जाए तो लगभग 3-4 प्रतिशत मतों के अंतर से सपा व बसपा की सत्ता आती जाती रही है, ऐसे में अतिपिछड़े वर्ग का वोट बैंक अहम स्थान रखता है।

विधानसभा चुनाव-2012 युवाओं के साथ-साथ 17 अतिपिछड़ी जातियों का वोट बैंक सपा को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कारगर सिद्ध हुआ था, लेकिन युवाओं व अतिपिछड़ों को अभी तक कुछ खास रिटर्न नहीं मिला है, जिससे ये सपा से काफी असंतुष्ट हैं। 2017 में सत्ता का रेस हॉर्स कौन बनेगा, अतिपिछड़ा वोट बैंक ही निर्णय की स्थिति में रहेगा।

वर्ष 1991 की जातिगत जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में सवर्ण हिंदू-15 से 16 प्रतिशत, अनुसूचित-20.53 प्रतिशत, जनजाति -0.57 प्रतिशत, यादव-8.06 प्रतिशत, निषाद/कश्यप/बिंद/सिघाड़िया आदि -10.75 प्रतिशत, लोधी/किसान-4.25 प्रतिशत, कुर्मी-4.5 प्रतिशत, कोयरी/काछी/मौर्य/सैनी-4.5 प्रतिशत, जाट-2.35 प्रतिशत, नोनिया/चैहान-1.15 प्रतिशत, राजभर-1.10 प्रतिशत, पाल/गड़ेरिया-3.7 प्रतिशत, तेली/गंधी/साहू/भुर्जी-2.75 प्रतिशत, कुम्हार-1.7 प्रतिशत, गूजर-0.90 प्रतिशत, अल्पसंख्यक-16.43 प्रतिशत, नाई, बढ़ई, लोहार, बरई, कलवार, बियार, सोनार, कन्डेरा, बंजारा, बारी आदि-0.25 से 1 प्रतिशत के मध्य ही है। सामाजिक न्याय समिति-2001 के अनुसार ग्रामीण जनसंख्या में सवर्ण-20.94 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग-54.05 प्रतिशत, अनुसूचित जाति-24.95 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति-0.06 प्रतिशत थे। पिछड़ों में यादव – 10.39 प्रतिशत, अतिपिछड़े (लोधी, जाट, गूजर, कुर्मी, सोनार, अर्कवंशीय, कलवार, गोसांई)-10.22 प्रतिशत व अत्यंत पिछड़े-33.34 प्रतिशत थे, यानी कुल जनसंख्या में अत्यंत पिछड़े 1 तिहाई है और इतना ही मत प्रतिशत पाने वाला दल सत्ता को प्राप्त करता रहा है।

बिहार चुनाव में कड़ी पराजय के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा काफी संजीदा होकर कदम उठाएगी और उसे पूरी तरह अहसास है कि उत्तर प्रदेश की सत्ता पाने के लिए पिछड़े व अतिपिछड़े तथा अति दलित मतों को अपने साथ ध्रुवीकृत करना होगा।

पार्टी सूत्र बताते हैं कि प्रदेश का अगला अध्यक्ष कोई अतिपिछड़ा या अति दलित होगा, जिसमें स्वतंत्र देव सिंह, प्रकाश पाल, धर्म पाल सिंह लोधी, साध्वी निरंजन ज्योति, अशोक कटारिया, डॉ. शंकर कठेरिया, रमापति शास्त्री, केशव मौर्य का नाम लिया जा रहा है।

स्वतंत्र देव सिंह कुर्मी जाति से संबंधित हैं, परंतु इनकी सामाजिक व जातिगत कोई पहचान व पकड़ नहीं है तथा पूर्व में कुर्मी जाति के ओम प्रकाश सिंह व विनय कटियार को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा आजमा चुकी है।

डॉ. राम शंकर कठेरिया जिस जाति से तालुकात रखते हैं, उनकी जाति का वोट बैंक लगभग 0.50 प्रतिशत ही है तथा यहीं हाल रमापति शास्त्री (कोरी) का भी है। भाजपा किसी ऐसे अति पिछड़े को प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर सौंप कर मिशन-2017 के समर में उतरना चाह रही है, जिसकी जातिगत व वर्गीय स्वीकार्यता, पहचान के साथ-साथ स्वयं उसकी जाति का भी वोट बैंक हो।

ऐसे में निरंजन ज्योति, धर्मपाल सिंह, प्रकाश पाल व केशव मौर्य उपयुक्त हो सकते हैं, परंतु तमाम अतिपिछड़े वर्गो ने कहा कि प्रकाश पाल युवा होने के साथ-साथ उनके पास संगठन का अच्छा तजुर्बा तो है ही और अपने मिलनसार स्वभाव के कारण ये ज्यादा प्रभावी साबित होंगे। (आईएएनएस/आईपीएन)

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार/राजनीतिक समीक्षक हैं)

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