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 केज कल्चर : मछली पालन की नई तकनीक | dharmpath.com

Tuesday , 10 June 2025

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केज कल्चर : मछली पालन की नई तकनीक

रायपुर, 23 जनवरी (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के मीठे जल में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए मछली पालन विभाग द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इसी प्रयास में नई तकनीक ‘केज कल्चर’ से मछली पालन में अच्छी सफलता मिल रही है।

रायपुर, 23 जनवरी (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के मीठे जल में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए मछली पालन विभाग द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इसी प्रयास में नई तकनीक ‘केज कल्चर’ से मछली पालन में अच्छी सफलता मिल रही है।

जलाशयों में केज कल्चर से मछली पालन के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी राज्यों में शामिल हो गया है। वर्तमान में सरोदा सागर, क्षीर पानी, घोंघा जलाशय, झुमका जलाशय तथा तौरेंगा जलाशय में केज कल्चर से मछली पालन किया जा रहा है। केज कल्चर से अभी तक 350 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन किया जा चुका है।

राष्ट्रीय प्रोटीन परिपूरक मिशन के अंतर्गत जलाशयों में केज कल्चर से मछली पालन शुरू किया गया है। केज कल्चर में जलाशयों में निर्धारित जगह पर फ्लोटिंग ब्लॉक बनाए जाते हैं। सभी ब्लॉक इंटरलॉकिंग रहते हैं। ब्लॉकों में 6 गुना 4 के जाल लगते हैं। जालों में 100-100 ग्राम वजन की मछलियां पालने के लिए छोड़ी जाती हैं।

मछलियों को प्रतिदिन आहार दिया जाता है। फ्लोटिंग ब्लॉक का लगभग तीन मीटर हिस्सा पानी में डूबा रहता है और एक मीटर ऊपर तैरते हुए दिखाई देता है। केज कल्चर में पंगेसियस प्रजाति की मछली का पालन होता है। सौ-सौ ग्राम की मछलियां दस महीनों में एक-सवा किलो की हो जाती हैं। पंगेसियस मछली बाजार में 70 से 80 रुपये प्रति किलो की दर से बिकती है।

तकनीकी अधिकारी डी. राउत ने बताया कि छत्तीसगढ़ में सर्वप्रथम केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान (मुंबई) के तकनीकी सहयोग से बिलासपुर जिले के घोंघा जलाशय में जीआई पाइप से केज बनाकर मछली बीज का संवर्धन कार्य किया गया।

उन्होंने बताया कि हवा से क्षतिग्रस्त होने के कारण घोंघा जलाशय के केज कल्चर को भरतपुर जलाशय में शिफ्ट किया गया। इसके साथ ही बतख पालन एवं मुर्गी पालन का कार्य भी शुरू किया गया।

भरतपुर जलाशय में उत्पादित मछली की बिक्री सहकारी समितियों के माध्यम से करने के लिए कोल्डचेन स्थापित कर किया गया। इसके बाद एनएमपीएस योजना प्रारंभ होने पर कबीरधाम जिले के दूरस्थ क्षेत्र सरोदासागर जलाशय में प्रदेश का प्रथम एचडीपीई केज का निर्माण किया गया।

एक अधिकारी ने बताया कि यहां पर प्रारंभ में एचडीपीई एवं जीआई पाइप के 24-24 केज निर्मित किए गए। इसके बाद दो और इकाई सरोदा सागर जलाशय में स्थापित की गई। विभिन्न जलाशयों में 496 केज में मछली पालन किया जा रहा है। इन केज में प्रदेश में ही संवर्धित पंगेसियस सूची प्रजाति की मछली का संचयन किया गया। इनको 20 से 30 प्रतिशत प्रोटीनयुक्त पूरक आहार दिया जाता है।

प्रायोगिक तौर पर कामनकार्प, ग्रासकार्प एवं प्रमुख भारतीय सफर मछलियों के बीजों भी संचयन किया गया, लेकिन उनमें अपेक्षित वृद्धि नहीं देखी गई। पंगेसियस सूची मछली में 10 माह बाद नर मछली में 700 ग्राम एवं मादा मछली में 1100 ग्राम औसत 900 ग्राम वजन की वृद्धि दर्ज की गई। इसकी उत्तरजीविता 95 प्रतिशत तक प्राप्त की गई। प्रदेश में केज कल्चर पंगेसियस सूची मछली का पर्याप्त विकास हुआ है।

सरोदा सागर जलाशय के बाद कबीरधाम के ही क्षीरपानी जलाशय में 96, बिलासपुर जिले के घोंघा जलाशय में 48, कोरिया जिले के झुमका जलाशय में 96 के साथ-साथ गरियाबंद जिले के तौरेंगा जलाशय में 48 केजए कोरबा के बांगों जलाशय में 48 एवं अंबिकापुर जिले के घुनघुटा जलाशय में 48 केज से मछली पालन किया जा रहा है।

एक केज कल्चर से लगभग साढ़े तीन हजार किलोग्राम मछली का उत्पादन होता है। मछली पालन की लागत को घटाने के बाद एक केज से करीब 70 हजार रुपये की शुद्ध आय होती है।

केज कल्चर : मछली पालन की नई तकनीक Reviewed by on . रायपुर, 23 जनवरी (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के मीठे जल में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए मछली पालन विभाग द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इसी प्रयास में नई तकनी रायपुर, 23 जनवरी (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के मीठे जल में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए मछली पालन विभाग द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इसी प्रयास में नई तकनी Rating:
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