पटना, 12 नवंबर (आईएएनएस)। बिहार में कई वर्षो तक एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस के लिए इस बार विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद सुखद रहे। कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को वर्षो बाद खुश होने और जश्न मनाने का मौका मिला है। इस चुनाव में वर्ष 1990 के बाद पहली बार कांग्रेस की सीट घटने के बजाय बढ़ी है।
पटना, 12 नवंबर (आईएएनएस)। बिहार में कई वर्षो तक एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस के लिए इस बार विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद सुखद रहे। कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को वर्षो बाद खुश होने और जश्न मनाने का मौका मिला है। इस चुनाव में वर्ष 1990 के बाद पहली बार कांग्रेस की सीट घटने के बजाय बढ़ी है।
कांग्रेस सत्ताधारी महागठबंधन में शामिल है। चुनाव के पहले कहा जाता था कि बिहार में कांग्रेस के पास न जन है न आधार, लेकिन इसी कांग्रेस ने इस चुनाव में 41 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 27 सीटें झटकी लीं, जबकि वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र चार सीटें मिली थीं।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी भी कहते हैं कि जिस प्रकार महागठबंधन के पास नीतीश कुमार का चेहरा था और कांग्रेस के अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी का आक्रामक प्रचार था, उससे तय था कि कांग्रेस की सीटों में इजाफा होगा।
पिछले ढाई दशक से बिहार में सियासी जमीन तलाश रही कांग्रेस ने इस चुनाव में 27 सीटें जीती हैं जो वर्ष 1995 के बाद सबसे अधिक है।
बिहार में कभी 42 प्रतिशत से ज्यादा मतों पर कब्जा जमाने वाली कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में मात्र आठ फीसदी मत ही मिले थे।
बिहार में किसी जमाने में कांग्रेस का सामाजिक व राजनीतिक दबदबा पूरी तरह था, लेकिन कालांतर में सामाजिक ताने-बाने को जोड़ने में कांग्रेस नाकाम रही और पिछड़ती चली गई। कांग्रेस बिहार में जब वर्ष 1990 में सत्ता से बाहर हुई, तब से न केवल उसका सामाजिक आधार सिमटता गया, बल्कि उसकी साख भी फीकी पड़ती चली गई।
राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर भी कहते हैं कि इस चुनाव में कांग्रेस को खोने के लिए कुछ नहीं था, जो भी था वह पाना ही था। इस दौरान जब कांग्रेस महागठबंधन में शामिल हुई तब ही यह तय था कि अगर गठबंधन में शामिल अन्य दल अपने मतदाताओं को दूसरे दलों में शिफ्ट कर सकें, तो कांग्रेस को फायदा होगा और यही हुआ।
वर्ष 1990 में सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस के खाते में उस समय 72 सीटें थी। गौरतलब है कि उस समय बिहार और झारखंड एक ही था।
आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 1995 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 29 सीटों पर संतोष करना पड़ा, जबकि वर्ष 2000 में हुए राज्य विधानसभा में कांग्रेस की हालत और पतली हो गई और इसके मात्र 14 उम्मीदवार ही जीत सके।
फरवरी, 2005 में हुए चुनाव में कांग्रेस के 10, जबकि इसी वर्ष नवंबर में हुए चुनाव में पार्टी एक अंक तक पहुंचते हुए मात्र नौ सीटों पर सिमट गई। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र चार सीटें ही मिली थीं, जो अब तक का सबसे न्यूनतम है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह भी स्वीकार करते हैं कि जो कांग्रेस मतदाता उनसे अलग हो चुके थे, आज वही मतदाता फिर से कांग्रेस से जुड़ रहे हैं। वे कहते हैं कि इस चुनाव में कांग्रेस को नौ प्रतिशत से ज्यादा मत हासिल हुए हैं, जो पहले से बेहतर है।
इस चुनाव में कांग्रेस अपने पूर्व साथी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (युनाइटेड) के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी और विकास के नारे की आड़ में हर तरह के कार्ड खेलने वाले केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के मंसूबों पर पानी फेरने में इसने भी महती भूमिका निभाई।