वाशिंगटन, 22 मई (आईएएनएस)। सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह वृहस्पति के उपग्रह यूरोपा में भी जीवन की संभावनाएं छिपी हो सकती हैं। शोधकर्ताओं ने विश्वास जताया है कि इसकी बर्फीली चट्टानों के नीचे गहराई में खारे पानी का समुद्र हो सकता है, जो जीवन के लिए आवश्यक रासायनिक ऊर्जा का स्रोत बन सकता है। एक नए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के जेट प्रोपलशन लेब्रोटरी (जेपीएल) के वैज्ञानिक पसाडेना यूरोपा के हाइड्रोजन व ऑक्सीजन उत्पन्न करने की क्षमता की जांच विभिन्न क्रियाओं के जरिए कर रहे हैं, जैसा कि पृथ्वी पर होता है।
अध्ययन में यह भी पता चला है कि इन दोनों तत्वों की मात्रा निर्धारित मानक के अनुसार, तुलना के योग्य है। ऑक्सीजन का निर्माण हाइड्रोजन के निर्माण की तुलना में 10 गुना ज्यादा है। ये सभी प्रयोग यूरोपा के चट्टानों के आंतरिक भागों में विभिन्न यौगिकों की उपस्थिति की ओर भी इंगित करता है जैसा पृथ्वी पर है और इस बारे में सोचा जा सकता है।
जेपीएल के प्लेनेटरी साइंटिस्ट व मुख्य लेखक स्टेव वान्स ने कहा, “हम एलियन सागर में इन विधियों का प्रयोग कर अध्ययन कर रहे हैं और पृथ्वी पर ऊर्जा व खनिज तत्वों की गतिशीलता को समझने का प्रयास कर रहे हैं। यूरोपा के सागरों में ऑक्सीजन व हाइड्रोजन का चक्रण ही यहां पर समुद्री रसायन और जीवन के लिए मुख्य निर्धारक है, जैसा पृथ्वी पर है।”
वहीं, अध्ययन के एक हिस्से में शोधकर्ता यह भी देख रहे हैं कि यूरोपा के सागरों में हाइड्रोजन उत्पन्न करने की कितनी क्षमता है, जो समुद्री जल चट्टानों के साथ क्रिया कर सके। इस प्रक्रिया में पानी को चट्टानी सतहों के बीच से गुजारा जाता है, जिससे नए खनिज बनते हैं और हाइड्रोजन को मुक्त होता है। अभी नए दरारों में नए चट्टानों के बीच समुद्री जल मिला है, जिससे वहां पर हाइड्रोजन निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
वहीं दूसरी ओर, यूरोपा जीवन के लिए रासायनिक ऊर्जा ऑक्सीडेंट भी उपलब्ध करा सकती है, क्योंकि ऑक्सीजन व अन्य यौगिक हाइड्रोजन के साथ क्रिया कर यूरोपा सागर की बर्फीली सतह पर चक्रण शुरू कर सकता है।
जेपीएल के प्लेनटरी साइंटिस्ट केविन हैंड ने कहा, “बर्फ पर ऑक्सीडेंट बैटरी के पॉजिटिव टर्मिनल की तरह और सागरीय सतह के केमिकल जिसे रेडक्टेंट कहते हैं, निगेटिव टर्मिनल की तरह हैं। यूरोपा पर जीवन और जैविक प्रक्रिया पूरी होती है या नहीं यह भी हमारे रिसर्च के लिए आगे की दिशा तय करेगा।”
उन्होंने यह बात अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन से प्रकाशित पत्रिका ‘जियोफिजिकल रिसर्च पेपर’ में कही है।