लखनऊ, 28 सितंबर (आईएएनएस)। सन् 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले आदरणीय कवि वीरेन डंगवालजी आजादी मिलने के ठीक 10 दिन पहले पैदा हुए थे। उनके पिता स्वर्गीय रघुनंदन प्रसाद डंगवाल उत्तर प्रदेश सरकार में अधिकारी थे। डंगवाल की रुचि कविताओं, कहानियों दोनों में रही। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1968 में एमए और उसके बाद डी-फिल की डिग्री प्राप्त की।
लखनऊ, 28 सितंबर (आईएएनएस)। सन् 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले आदरणीय कवि वीरेन डंगवालजी आजादी मिलने के ठीक 10 दिन पहले पैदा हुए थे। उनके पिता स्वर्गीय रघुनंदन प्रसाद डंगवाल उत्तर प्रदेश सरकार में अधिकारी थे। डंगवाल की रुचि कविताओं, कहानियों दोनों में रही। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1968 में एमए और उसके बाद डी-फिल की डिग्री प्राप्त की।
टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) के डंगवालजी ने 22 साल की उम्र में पहली रचना, ‘एक कविता’, लिखी थी। फिर देश की तमाम साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में वह लगातार छपते रहे। उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बटरेल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊश रोजेविच और नाजि़म हिकमत की रचाओं की अपनी विशिष्ट शैली में कुछ दुर्लभ अनुवाद भी किए। उनकी कविताओं का बांग्ला, मराठी, पंजाबी, अंग्रेजी, मलयालम और उड़िया जैसी भाषाओं में अनुवाद हुआ।
डंगवालजी का पहला कविता संग्रह 43 वर्ष की उम्र में आया। ‘इसी दुनिया में’ नाम के संकलन को रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1992) और श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार (1993) से नवाजा गया। दूसरा संकलन ‘दुष्चक्र में सृष्टा’ 2002 में आया और इसी वर्ष उन्हें ‘शमशेर सम्मान’ भी दिया गया। दूसरे ही संकलन के लिए उन्हें 2004 का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया। उन्हें हिंदी कविता की नई पीढ़ी के सबसे चहेता और आदर्श कवियों में माना जाता है।
वीरेन शौकिया पत्रकारिता करते रहे और लंबे समय तक ‘अमर उजाला’ के ग्रुप सलाहकार और बरेली के स्थानीय संपादक रहे। श्रद्धेय डंगवालजी को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि। इनके निधन से हिंदी साहित्य को अपूरणीय क्षति हुई है।
(लेखक हरगोविंद विश्वकर्मा महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के सदस्य हैं)