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Sunday , 8 June 2025

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हवा और हवाला

मर्यादित और संसदीय बयान प्रजातंत्र को जीवंत बनाए रखते हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष को इसी सीमा में रहकर एक-दूसरे पर हमले करने चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को हवाबाज कहा, जवाब में नरेंद्र मोदी ने कहा कि हवालेबाज सरकार के कार्यो में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।

मर्यादित और संसदीय बयान प्रजातंत्र को जीवंत बनाए रखते हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष को इसी सीमा में रहकर एक-दूसरे पर हमले करने चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को हवाबाज कहा, जवाब में नरेंद्र मोदी ने कहा कि हवालेबाज सरकार के कार्यो में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।

जाहिर है, बयानों की यह जंग बराबरी की थी। विपक्ष की ओर से तीखा हमला हुआ, तो सत्ता ने उसी तल्खी में जबाब भी दिया। शब्दों के स्तर पर भी अनुप्रास अलंकार को ध्यान में रखा गया। सोनिया ने हवा का नाम लिया, तो जवाब में मोदी ने हवाला का उल्लेख किया।

कुछ भी हो ‘हवाबाज’ और ‘हवालाबाज’ मात्र शब्द नहीं हैं। इन दोनों के गहरे निहितार्थ हैं। पहले सोनिया गांधी के हवाबाज शब्द पर विचार कीजिए। इस शब्द के माध्यम से वह कहना चाहती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने हवा-हवाई वादे किए हैं, उनकी सरकार उन वादों को पूरा करने मंे विफल है। यह भी संयोग है कि जिस समय सोनिया सरकार पर हमला बोल रही थीं, लगभग उसी समय राहुल गांधी ओड़िशा में लगभग ऐसी ही बातें कर रहे थे। वह पूछ रहे थे- कहां हैं अच्छे दिन, सरकार ने किसानों के लिए क्या किया, कोई वादा पूरा नहीं हुआ.. वगैरह।

क्या सोनिया और राहुल की बातों से ऐसा नहीं लगता कि वह निष्कर्ष निकालने में बहुत जल्दीबाजी कर रहे हैं? क्या साठ महीने के लिए बनी सरकार के बारे में अंतिम निष्कर्ष केवल पंद्रह महीने में निकाला जा सकता है? क्या संप्रग की पहली और दूसरी सरकार बनने के प्रारंभिक पंद्रह महीने में राहुल गांधी आज की तरह किसानों की दशा देखने निकलते थे। क्या उस अवधि में संप्रग की तत्कालीन प्रमुख सोनिया गांधी वादों के क्रियान्वयन की समीक्षा करती थीं? यह ठीक है कि वह आज विपक्ष में हैं, लेकिन सरकार का रिपोर्ट कार्ड बनाकर उसे जीरो अंक देना भी हास्यास्पद है।

नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को हवालेबाज कहा, और यह जोड़ा कि ये लोग अडं़गाबाजी कर रहे हैं। इन दोनों शब्दों के भी व्यापक अर्थ हैं। यहां हवाला भ्रष्टाचार और घोटालों से संबंधित है। देश यह बात भूल नहीं सकता कि संप्रग सरकार रिकार्ड घोटालों के कारण बदनाम हुई थी। शीर्ष नेतृत्व इस जवाबदेही से बच नहीं सकता।

दूसरा शब्द बाधा या अडं़गेबाजी है। यह भी गलत नहीं लगता। देश ने नरेंद्र मोदी को भारी जनादेश दिया, लेकिन यह सरकार अपने ढंग से काम नहीं कर पा रही है, क्योंकि राज्यसभा में विपक्ष का बहुमत है। अनेक महत्वपूर्ण विधेयक, जिनमें आर्थिक सुधार के विधेयक भी शामिल हैं, लंबित हैं।

नरेंद्र मोदी के प्रयासों से मेकइन इंडिया आगे बढ़ा, वैश्विक रेटिंग एजेंसियों में भारत का दर्जा बढ़ा, लेकिन विपक्ष का असहयोग बाधक बन रहा है। ऐसे में हवाला और अड़ंगा दोनों आरोपों का आधार तो बनता ही है। (आईएएनएस/आईपीएन)

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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