काबुल, 9 नवंबर (आईएएनएस)। अफगान तालिबान और उससे अलग हुए एक धड़े के बीच नया नेता चुनने को लेकर पैदा हुए दरार के कारण अफगानिस्तान में पहले से ही पटरी से उतरी शांति प्रक्रिया में बाधा आ सकती है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, पर्यवेक्षकों ने कहा कि कट्टरपंथी संगठन के नेता मुल्ला मोहम्मद उमर के स्थान पर मंसूर मुल्ला अख्तर मोहम्मद मंसूर को अपना नेता मानने से इंकार करते हुए अफगान तालिबान से अलग हुए धड़े ने उमर के नजदीकी मोहम्मद रसूल को अपना नया नेता चुन लिया है।
तालिबान आतंकवादियों और राजनीतिक मुख्यधारा के बीच सुलह और देश में चली आ रही लंबी लड़ाई को समाप्त करने के सरकार के प्रयास के बीच यह हुआ है।
मंसूर के नेतृत्व का विरोध कर रहे आतंकवादियों ने पिछले सप्ताह पश्चिमी फराह प्रांत में एक बैठक में मुल्ला रसूल को मुखिया चुन लिया।
मीडिया में जारी रपट के मुताबिक, मुल्ला उमर के भाई मुल्ला मनान नियाजी को प्रवक्ता और मुल्ला मंसूर दादुल्ला को तालिबान के नए धड़े का उपनेता चुना गया है।
राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद रेजा हवेदा ने कहा, “तालिबान में टूट के कारण सरकार मुश्किल में पड़ गई है कि शांति वार्ता के लिए उसे किससे बात करनी चाहिए।”
सरकार द्वारा 2010 में शुरू की गई शांति प्रक्रिया का अभी तक कोई हल नहीं निकला है, हालांकि सरकार ने कई बार शांति वार्ता का प्रस्ताव रखा है।
तालिबान और सरकार के बीच जुलाई के आरंभ मे आमने-सामने बातचीत हुई थी, लेकिन जुलाई में मुल्ला उमर की मृत्यु की पुष्टि और सशस्त्र विद्रोही समूह के बीच दरार के बाद प्रक्रिया रुक गई थी।
तालिबान के एक अन्य धड़े फिदाई महाज के कथित प्रवक्ता कारी हमजा ने मोहम्मद रसूल का समर्थन किया है, लेकिन अभी वह नए धड़े में शामिल नहीं हुआ है।
पर्यवेक्षक के विचार का समर्थन करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मामलों के सरकार समर्थित शांति निकाय के सलाहकार मोहम्मद इस्माइल कासिमयार ने कहा कि तालिबान में विभाजन शांति प्रक्रिया में रुकावट डाल देगा। सरकार के लिए यह पेरशानी खड़ी हो गई है कि शांति प्रक्रिया के लिए किससे बात की जाए।
पर्यवेक्षक और पूर्व राजदूत अहमद सैयदी ने कहा, “सरकार के लिए यह तय करना मुश्किल हो गया है कि वह किससे बात करे। अगर वे एक से बात करते हैं तो दूसरे युद्ध भड़काने का प्रयास करेंगे।”