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 अफसरशाही अछूतों की तरह व्यवहार करती थी : पूर्व आईएएस शिवकामी (साक्षात्कार) | dharmpath.com

Wednesday , 11 June 2025

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अफसरशाही अछूतों की तरह व्यवहार करती थी : पूर्व आईएएस शिवकामी (साक्षात्कार)

नई दिल्ली, 5 फरवरी (आईएएनएस)। रोहित वेमूला की आत्महत्या ने दलित अधिकारों और दलितों के साथ होने वाले भेदभाव के मुद्दे पर सबका ध्यान खींचा है। पूर्व आईएएस अधिकारी और लेखिका पी. शिवकामी का कहना है कि उनके समुदाय को न्यूनतम मानवाधिकार से भी मरहूम रखा जाता है। समीक्षकों द्वारा बहुप्रशंसित लेखक और पूर्व नौकरशाह ने बताया कि उन्होंने 2008 में आईएएस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि उनके साथ अछूत की तरह व्यवहार किया जाता था।

नई दिल्ली, 5 फरवरी (आईएएनएस)। रोहित वेमूला की आत्महत्या ने दलित अधिकारों और दलितों के साथ होने वाले भेदभाव के मुद्दे पर सबका ध्यान खींचा है। पूर्व आईएएस अधिकारी और लेखिका पी. शिवकामी का कहना है कि उनके समुदाय को न्यूनतम मानवाधिकार से भी मरहूम रखा जाता है। समीक्षकों द्वारा बहुप्रशंसित लेखक और पूर्व नौकरशाह ने बताया कि उन्होंने 2008 में आईएएस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि उनके साथ अछूत की तरह व्यवहार किया जाता था।

शिवकामी जो भारतीय प्रशासनिक सेवा में 28 सालों तक रहीं, ने आईएएनएस को बताया कि उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला तब किया जब उन्हें महसूस हुआ कि दलितों का राष्ट्र निर्माण में कोई स्थान नहीं है। उन्होंने अब तक 8 किताबें लिखी हैं और उन्हें भारत की सबसे प्रमुख दलित लेखकों में एक माना जाता है।

उनकी पहली पुस्तक किताब ‘इन द ग्रिप ऑफ चेंज’ ने काफी हलचल मचाई थी। क्योंकि उन्होंने दलित आंदोलन में पैतृक सत्ता का सवाल उठाया था।

शिवकामी जिनकी आखिरी पोस्टिंग आदि द्रविड़ और जनजाति कल्याण विभाग में सचिव पद पर तमिलनाडु में थी, ने बताया, “दलितों के खिलाफ राजनीतिक वर्ग और अफसरशाही मिलकर काम करती है। जब मैं सेवारत थी तो मेरी स्थिति राज्य के मंत्री के बराबर थी। लेकिन मुझे आदिवासियों के बुनियादी अधिकारों के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। मैं उनके कल्याण के लिए काम कर रही थी और मुझे उन्हीं के समुदाय का व्यक्ति बना दिया गया और मेरे साथ छुआछूत की तरह व्यवहार किया गया। मुझे महसूस हुआ कि निचली जातियों के खिलाफ एक अलिखित नियम बना हुआ है।’

उन्होंने बताया कि कई बार ऐसा हुआ कि आदिवासियों के लिए दी गई राशि को दूसरे कामों में खर्च कर दिया गया। यहां कि आदिवासी बच्चों के लिए एक शिक्षक की नियुक्ति के लिए कैबिनेट की मंजूरी की जरूरत थी, जिसे कभी प्राथमिकता सूची में रखा ही नहीं गया। जब मैंने इस मामले को उठाया तो मुझ पर समानांतर सरकार चलाने का आरोप लगा दिया गया।

उन्होंने बताया कि उद्योग, वित्त या गृह मंत्रालय में सचिव का पद प्रमुख माना जाता है। लेकिन पिछले 60 सालों में आज तक किसी दलित को यह पद नहीं दिया गया। यह भेदभाव सभी स्तरों पर मैंने महसूस किया है।

इसके बाद तंत्र से उनका मोहभंग होने पर वे 2009 में बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गई। उसके एक साल बाद उन्होंने समुगा सामाथुवा पादाई नाम के एक राजनीतिक दल का गठन किया, जिसका उद्देश्य बेजुबानों और वंचितों की आवाज बनना है।

शिवकामी के मुताबिक शिक्षण संस्थानों से लेकर नौकरशाही तक हर जगह दलितों के साथ भेदभाव व्याप्त है। रोहित की आत्महत्या मामले को उठाते हुए शिवकामी कहती हैं कि शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का नाम लेकर दलितों का उत्पीड़न किया जाता है। ऐसी सोच है कि दलित मेधावी नहीं होते, क्योंकि उन्हें आरक्षण हासिल है। दलितों की बेहद खराब तस्वीर बनाई गई है।

रोहित की आत्महत्या ने जहां भारतीय सामाजिक प्रणाली की खाई को उजागर कर रख दिया है। वहीं, शिवकामी महसूस करती है कि महान संस्कृतियां अपनी विफलताओं पर आत्ममंथन करती है। उनकी दलील है कि बिना भाईचारे के कभी राष्ट्र निर्माण नहीं होता। जाति के आधार पर लोगों को बुनियादी अधिकारों से मरहूम रखना हिंसा है।

एक कट्टर दलित स्त्रीवादी शिवकामी को समाजसेवा के लिए सिविल सेवा छोड़ने का कतई अफसोस नहीं है। वे कहती है कि महिलाओं को मुख्यधारा में लाना सबसे आवश्यक है।

वे कहती हैं, “मैं पहले आवाज नहीं उठा सकती थी। लेकिन अब मैं पार्टी के माध्यम से सार्थक काम कर रही हूं और मेरी पार्टी की तमिलनाडु के 10 जिलों में उपस्थिति है।”

एक बराबरी का समाज कैसे स्थापित किया जा सकता है?

उन्होंने बताया, “60 फीसदी भूमिहीन दलित समुदाय से हैं। उन्हें जमीन मुहैया कराना चाहिए और उनसे बराबरी का व्यवहार किया जाना चाहिए। सरकार को सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना चाहिए और निजी क्षेत्र में भी रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए। पुरानी आदतें कभी नहीं छूटती। इसलिए आदमी की सोच को बदलने के लिए हमें लगातार भेदभाव का सामना करने वाले समुदायों के बारे में आवाज उठाते रहना चाहिए।”

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