वॉशिंगटन, 20 दिसम्बर (आईएएनएस)। अमेरिका में यह एक ऐसा समय है, जब नागरिक वाशिंगटन यानी अमेरिकी प्रशासन को अत्यंत संदेह की नजर से देख रहे हैं, और इस स्थिति का लाभ यहां की राजनीति में आए नए लोगों को मिल रहा है, वे इस अपनी लोकप्रियता में वृद्धि के एक मौके के रूप में देख रहे हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रपट के मुताबिक, वाशिंगटन के कुलीनों यानी परंपरागत राजनीतिज्ञों को लेकर लोगों में पैदा हुई निराशा की भावना, व्हाइट हाउस की दौड़ यानी राष्ट्रपति चुनाव 2016 में इन नए राजनीतिज्ञों, खासतौर से रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार की दौड़ में सबसे आगे चल रहे डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक अच्छे अवसर की तरह है।
ट्रंप के कई समर्थक कहते हैं कि उन्होंने वास्तव में बोलने की आजादी को सीमित करने की कोशिश की है, जिसके कारण राजनीतिक शुद्धि का एक पूरा माहौल तैयार हो गया है, जो अमेरिका के कई हिस्सों में छा गया है।
अमेरिकी इस बात से निराश हैं कि व्हाइट हाउस इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में आगे नहीं आ रहा है। कई अन्य लोग अमेरिका में इस्लामिक स्टेट के एक और हमले को लेकर चिंतित हैं, जैसा कि हमला कैलिफोर्निया में हुआ था, जिसमें दर्जन भर से अधिक बेगुनाह मारे गए थे।
अमेरिकी नागरिक देश की अर्थव्यवस्था को लेकर भी निराश हैं, जहां मंदी के बाद कई वर्षो से लाखों की संख्या में अमेरिकी या तो बेरोजगार हैं, या फिर उन्हें उपयुक्त रोजगार नहीं मिल पाया है। ऐसे लोग यह मानते हैं कि वाशिंगटन में बैठे दोनों दलों के राजनीतिज्ञ तो शैम्पेन की बोतलें उड़ाते हैं, जबकि आम आदमी रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है।
‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ द प्रेसीडेंसी एंड कांग्रेस’ में विश्लेषक डैन महफी ने कहा, “मुझे लगता है कि अमेरिकी नागरिक ट्रंप जैसे राजनीति में आए नए लोगों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि लोगों में राजनीतिक व्यवस्था के प्रति व्यापक अविश्वास की भावना पैदा हो गई है।”
उन्होंने कहा, “अमेरिकी नागरिकों की एक बड़ी आबादी विदेशों में आतंकवाद, अमेरिका में प्रवासियों के प्रवाह और एक अनिश्चित आर्थिक भविष्य को लेकर चिंतित है, और ऐसे लोगों का मानना है कि पारंपरिक राजनीतिक नेतृत्व इन मुद्दों से निपटने में अक्षम है और इसलिए वे राजनीति में नए-नए आए लोकप्रिय लोगों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।”
उल्लेखनीय है कि कैलिफोर्निया और पेरिस में हुए खौफनाक आतंकवादी हमलों के बाद ट्रंप ने अमेरिका में मुसलमानों के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग की थी।
ट्रंप के इस बयान की कई अन्य रिपब्लिकन उम्मीदवारों ने निंदा की थी और कहा था कि अगर इसे लागू किया जाता है तो यह अमेरिकी आदर्शो के खिलाफ होगा।
कुछ जानकारों ने कहा कि इस तरह का कदम इस्लामवादी कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई को प्रभावित करेगा, क्योंकि वाशिंगटन को आतंक के खिलाफ लड़ाई के लिए मिस्र और जॉर्डन जैसे उदार मुस्लिम देशों की जरूरत है और अमेरिका में मुस्लिमों पर प्रतिबंध से ये देश नाखुश होंगे।
युनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड में सेंटर ऑन पॉलिसी एटीट्यूड्स के अनुसंधान निदेशक, क्ले रैमसे ने कहा कि पिछले 70 वर्षों में कम से कम तीन तरह के बाहरी लोग राजनीति में आए हैं।
पहले समूह में ऐसे लोग शामिल हैं, जो पहले राजनीति में नहीं थे, और लोक सेवा में थे, और वहां से राजनीति में आए, लेकिन वे कभी कोई पद पाने में सफल नहीं रहे। ऐसे लोगों में ट्रप, सेवानिवृत्त सर्जन बेन कार्सन और हेवलेट पैकर्ड के पूर्व सीईओ फायोरिना शामिल हैं।
दूसरा समूह उन राजनीतिज्ञों का है, जो किसी प्रमुख पार्टी की किसी शाखा से उभरे हैं और देखते-देखते राजनीतिक ऊंचाई पर पहुंच गए। जैसे कि 1972 के चुनाव में जॉर्ज मैक्गवर्न और 1964 के चुनाव में बैरी गोल्डवॉटर।
तीसरा समूह उन लोगों का है, जो सरकारी नौकरी में थे और उसके बाद वे तीसरी पार्टी या निर्दलीय उम्मीदवारों के तौर पर चुनावी मैदान में आए, जैसे कि 1980 के चुनाव में जॉन बी. एंडर्सन और 1968 के चुनाव में जॉर्ज वैलेस, 1948 में स्टॉर्म र्थमड, और 1948 के चुनाव में हेनरी वैलेस।
सेंट अंसेल्म कॉलेज में सहायक प्रोफेसर, क्रिस्टोफर गैडिरी ने कहा कि राजनीति में आए नए लोगों की लोकप्रियता इतिहास की कोई अनोखी बात नहीं है।
उन्होंने कहा, “इस तरह की स्थितियां आती-जाती रहती हैं। जब स्थितियां अच्छी होती हैं तो लोग नए राजनीतिज्ञों की ओर आकर्षित नहीं होते। जब हालात बुरे होते हैं तो नए लोग राजनीति में अच्छे दिखने लगते हैं।”