सहिष्णुता और अहिष्णुता पर बहस करने और तर्क-कुतर्क का क्रम मीडिया और प्रबुद्धजनों के बीच जारी है, हाल के दो महीनों में लेखकों, साहित्यकारों, कवियों, शायरों और वैज्ञानिकों के द्वारा सरकार और साहित्य अकादमी से मिले पुरस्कारों और पद्म-सम्मानों को लौटाने और कठघरे में खड़े करने से मोदी सरकार खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी ही किरकिरी हो गई है।
सहिष्णुता और अहिष्णुता पर बहस करने और तर्क-कुतर्क का क्रम मीडिया और प्रबुद्धजनों के बीच जारी है, हाल के दो महीनों में लेखकों, साहित्यकारों, कवियों, शायरों और वैज्ञानिकों के द्वारा सरकार और साहित्य अकादमी से मिले पुरस्कारों और पद्म-सम्मानों को लौटाने और कठघरे में खड़े करने से मोदी सरकार खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी ही किरकिरी हो गई है।
वामदल और कांग्रेस द्वारा पुरस्कार वापस करने वालों के साथ खुलकर खड़े हो जाने से सोई पड़ी सत्ता में मगन भाजपा सरकार को असहजता और आलोचना एकाएक ज्यादा लगने और गहरे से चुभने लगी है। आव-ताव देखे बिना पीएम मोदी ने बिहार के चुनाव के मद्देनजर राज्य के विकास का वायदा जनता-मतदाताओं से करने की बजाय 1984 के इंदिरा गांधी हत्याकांड में सिखों के 32 वर्ष पुराने संहार को उछाल कर कांग्रेस को घेरने के उद्देश्य से सहिष्णुता और अहिष्णुता की चर्चा करने लगे, हालांकि यह भाजपा के बिहार में नैया डगमगाने की मिली गुप्त सूचनाओं के बाद निकली मोदी की भड़ास थी।
सामाजिक विविधता वाले भारत की एकता के लिए बेहद खतरनाक आचरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया और कांग्रेस की आलोचना के नाम पर अपनी राजनैतिक भड़ास निकाली, 32 साल पुरानी घटना को कुरेदकर नए जख्म देने की कोशिश और वोट पाने के लिए ऐसी चालों को अपनाने से उन्हें बेहद दूर-अलग रहना चाहिए था, क्योंकि सिखों का हुआ कत्लेआम सामाजिक तानेबाने से जुड़ा देश की संप्रभुता का संवेदनशील मसला है।
बड़ी गलती हुई है तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व व रणनीतिकारों से, ठीक वैसे ही आठ वर्ष के बाद 1992 में अयोध्या का दशकों से विवादित ढांचा जबरन गिराना भगवा खेमे की अहिष्णुता का परिचायक बना, यह पहली बार दिखाई दे रहा है कि केंद्र की सत्ता के शीर्ष से ‘अहिष्णुता’ को बयानों-भाषणों से बढ़ावा दिया गया और देश के प्रतिपक्ष और बुद्धिजीवर्ग ने सहिष्णुता की रक्षा के लिए राष्ट्रपति भवन कूच किया।
पीएम मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और वित्तमंत्री अरुण जेटली सहित भाजपा के प्रवक्ताओं के द्वारा खबरिया चैनलों पर अपने-अपने ज्ञान-सहूर से सहिष्णुता और अहिष्णुता को समझाने भी लगे, इस विषय पर जेटली-राजनाथ द्वारा मोदी का बचाव करना एक आंतरिक और प्रोटोकाल की मजबूरी ही माना जाए, दिल से दोनों मंत्रियों ने अपनी राजनैतिक यात्रा में सहिष्णुता और अहिष्णुता का पठन ही नहीं किया है।
गृह और वित्त का भार उठाकर झूल रहे दोनों महानुभावों का नजरिया बना है और जुमला जनता के सामने पेश कर कहा है कि देश में चहुंओर शांति है, हो सकता है राजनाथ और जेटली के चश्मे में ऐसा दिखता हो, लेकिन असलियत में भाजपा सरकार के खिलाफ महंगी दालें और खाद्य-तेलों के साथ गैस कीमत में बढ़ोतरी जैसे विषयों से गरीब और मध्यम वर्ग में गर्मी बनने लगी है।
कांग्रेस और सहयोगी दल राजनैतिक लाभ के लिए सहिष्णुता को मुद्दा बना रहे हैं, सही पकड़े हो जेटली जी, अदालत में अपने तर्क को सही करार देने के लिए जो हथकंडा विपक्षी पर अपनाते हो, वहीं सामाजिक और राजनैतिक जीवन में आप सत्ता के शिखर पर विराजमान होकर निभा रहे हो, तब भाजपा और संघ का कुनवा सहिष्णुता और अहिष्णुता के प्रति व्यावहारिक कदापि नहीं होगा।
राजनाथ भी कह रहे हैं कि पुरस्कार लौटाने वालों से बात करेंगे, व्यापक आलोचनाओं के बाद दो महीने बीत जाने के बाद देर से विचार कौंधा है, गृह मंत्रालय का यह करतब अब बेकार होगा। सच तो यह है कि देश की पतीली में खदकना अभी भी जारी है, पतीली का ढक्कन तो हटाएं।
आदिकाल में भी सहिष्णु और अहिष्णु के विषय पर देवता और असुर भिड़ते और संग्राम करते थे। देवता सहिष्णुता को संरक्षित करने के लिए प्रयत्नशील रहते और असुरों से मुकाबले को लामबंद हो जाते और असुर सहिष्णुता को पीछे धकेलकर अहिष्णुता को विद्यमान करने के लिए युद्ध का आह्वान कर देवताओं पर चढ़ाई कर देते।
वैसे भी अपने भारत में विरोधी को चुप करने और दवाब में लेने के लिए अहिष्णु और हमले का सहारा लेना एक वर्णित नीति भी है, धुर-दक्षिणपंथी और धुर-वामपंथी अपने वेचरीक विरोध को मनवाने के लिए हिंसा-हत्या को कई दशकों से जायज ठहराते रहे हैं। ऐसा ही कुछ देश के विभिन राज्यों में घटी घटनाओं के नियंत्रण पर राज्य सरकारों और स्थानीय प्रसाशन के असफल रहने से सहिष्णु पर अहिष्णु भारी पड़ गया, बाद में संघ और भाजपा ने हिंसा-हत्या की वारदातों के बाद अहिष्णुता का ही पक्ष ले लिया और अपने बेतुके बयानों से अहिष्णुता को नियंत्रण के बजाय उबलने का अवसर दिया।
मुझे क्या, भूतों को आज भी याद है सहिष्णुता और अहिष्णुता विषय पर भाजपा के मेंटर तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात दंगों के बाद अहमदाबाद में कोई लुकछिप करके नहीं, खुले में जनता के सामने तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सहिष्णु आचरण करने की सलाह नहीं, स्पष्ट हिदायत दी थी।
क्या सहिष्णु और अहिष्णु के मानक और परिभाषाएं बदली हैं? नहीं न! तब अहिष्णुता के आवरण को लपेट चुकी भाजपा और संघ को समाज की एकजुटता के लिए सहिष्णुता को व्यापकता से व्यवहार में लाना चाहिए। यह आज इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि केंद्र में भाजपा शासक दल है। नगर और गांवों की परिषदों का संचालन मोदी, भाजपा और संघ नहीं कर रहे हैं।
मोदी सरकार की अहिष्णुता पर सक्रियता देख कांग्रेस ने पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी की अगुवाई में मार्च निकाल कर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से जो हाल में शिकायत की है और ज्ञापन देकर विरोध दर्ज कराया है, देश-दुनिया के आलावा राजनैतिक जम्मेदार दल के नजरिये से बिलकुल सही काम किया है।
लोकसभा चुनाव में लुटी-पिटी कांग्रेस के लिए यह आगे राजनैतिक तौर पर मील का पथर साबित होगा, वैसे राजनैतिक विरोध व समर्थन से इतर सहिष्णुता के अपनाए सकारात्मक आचरण से देश और समाज का लाभ होगा, एकजुटता बनेगी तो जुड़े-हाथ मजबूत राष्ट्र का डंका बजाएंगे।
वैसे भी अहिष्णुता का समर्थन करने से सरकारों को बाज आना होगा, नहीं तो देश का विकास और जीडीपी भी धड़ाम होगी..। (आईएएनएस/आईपीएन)
(वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक-राजनैतिक विषयों के समीक्षक हैं, ये लेखक के निजी विचार हैं)