मुम्बई, 2 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय टीम के नवनियुक्त मुख्य कोच रोएलांट ऑल्टमैंस ने यूरोप दौरे पर रवाना होने से पहले कहा था कि उनके सभी खिलाड़ी साथ मिलकर आक्रमण करेंगे और साथ मिलकर डिफेंस भी सम्भालेंगे। यह तरीका भारतीय हॉकी के लिए काफी कारगर साबित हो सकता है, लेकिन इसे आजमाने के दौरान कई तरह की सावधानियां बरतनी होंगी।
मुम्बई, 2 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय टीम के नवनियुक्त मुख्य कोच रोएलांट ऑल्टमैंस ने यूरोप दौरे पर रवाना होने से पहले कहा था कि उनके सभी खिलाड़ी साथ मिलकर आक्रमण करेंगे और साथ मिलकर डिफेंस भी सम्भालेंगे। यह तरीका भारतीय हॉकी के लिए काफी कारगर साबित हो सकता है, लेकिन इसे आजमाने के दौरान कई तरह की सावधानियां बरतनी होंगी।
भारतीय टीम इन दिनों यूरोप दौरे पर है, जहां वह फ्रांस और स्पेन के साथ पांच मैच खेलेगी। इसके बाद उसे नवम्बर में हॉकी वर्ल्ड लीग फाइनल्स में हिस्सा लेना है। हॉकी वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल में भारत को चौथा स्थान मिला और साथ ही उसे अपने कोच पॉल वैन ऐस का साथ छोड़ना पड़ा।
ऐस उस टूर्नामेंट के बाद स्वदेश गए और कभी नहीं लौटे। कारण, हॉकी इंडिया ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था। ऑल्टमैंस को ऐस के स्थान पर टीम की कमान सौंपी गई। ऑल्टमैंस का ‘सभी रक्षक, सभी आक्रमणकारी’ सम्बंधी बयान दरअसल ऐस की रणनीति का हिस्सा है।
ऐस ने हॉकी वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल के दौरान इसे खूब आजमाया। यह अलग बात है कि उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सका। यह रणनीति काफी अच्छी है लेकिन इसमें खतरा भी होता है। जब किसी टीम के सभी खिलाड़ी आक्रमण में लगे होते हैं तो उन्हें डिफेंस के सयम अपनी जगह पर होना होता है।
इस तरह की हॉकी में अपनी पोजीशन का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है क्योंकि आज की हॉकी में काउंटर अटैक बड़ी तेजी से होते हैं और अगर आप समय रहते अपने स्थान पर नहीं पहुंच सके तो आप न तो गोल करने में मदद कर सकते हैं और ना ही गोल बचाने में।
आज की भारतीय टीम युवा और दमखम से भरपूर है। उस पर यह रणनीति आसानी से आजमाया जा सकता है। ऐस ने इसे आजमाना शुरू कर दिया था और अब ऑल्टमैंस इसे आगे ले जाना चाहते हैं।
जर्मनी इसी रणनीति के तहत खेलती है और लगातार जीतती है। भारतीय हॉकी में भी यह रणनीति सफलता के नए आयाम लिख सकती है लेकिन इसे सीधे शीर्ष स्तर न आजमाकर पहले जमीनी स्तर पर आजमाया जाए।
अगर हॉकी इंडिया (एचआई) इसे स्थानीय टीमों और जूनियर स्तर पर आजमाना शुरू कर दे तो खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर इस तकनीक के बारे में बताने की जरूरत नहीं होगी। राष्ट्रीय स्तर पर तो उन्हें सिर्फ अपनी इस कला को निखारना होगा।
आज की हॉकी काफी तेज हो गई है। नियमों के बदलाव के बाद इसमें अधिक पॉवर और टैक्टिस की जरूरत होती है। आज जहां गेंद होती है, वहां अपनी रणनीति को अमली जामा पहनाने के लिए अधिक से अधिक खिलाड़ियों की जरूरत होती है। ऐसे में ऐस और ऑल्टमैंस की यह मुहिम रंग ला सकती है।
लेखक भारतीय हॉकी टीम के पूर्व डिफेंडर हैं। उनसे डीएमएएचएडीआईके ऐटदरेट हॉटमेल डॉट कॉम पर सम्पर्क किया जा सकता है)