भोपाल, 24 जुलाई (आईएएनएस)। देश की आर्थिक स्थिति में बड़ा हिस्सा गांव और खेती का है, वहीं शहरी इलाके से ज्यादा आबादी आज भी गांव में बसती है, उसके बावजूद इससे जुड़े लोगों पर सरकारों का ज्यादा ध्यान नहीं है। यही कारण है कि गांव के साथ खेती को मजबूत करने के मकसद से देश भर के कृषि स्नातकों को गोलबंद करने की कोशिशें तेज हो गई है।
भोपाल, 24 जुलाई (आईएएनएस)। देश की आर्थिक स्थिति में बड़ा हिस्सा गांव और खेती का है, वहीं शहरी इलाके से ज्यादा आबादी आज भी गांव में बसती है, उसके बावजूद इससे जुड़े लोगों पर सरकारों का ज्यादा ध्यान नहीं है। यही कारण है कि गांव के साथ खेती को मजबूत करने के मकसद से देश भर के कृषि स्नातकों को गोलबंद करने की कोशिशें तेज हो गई है।
देश भर के कृषि स्नातकों को एकजुट करने के लिए कृषि स्नातक संघ का गठन किया गया है। इन स्नातकों को एक मंच पर लाने के लिए विभिन्न स्तरों पर कार्यक्रम हो रहे हैं। इन आयोजनों में खेती की स्थिति से लेकर नवाचारों की चर्चा और अपनी उपयोगिता पर खुलकर जिरह हो रही है। साथ ही अपनी योग्यता व कौशल का उपयोग गांव और खेती के लिए करने पर जोर दिया जा रहा है।
संघ के संयोजक और नेहरू युवा केंद्र के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने आईएएनएस को बताया कि देश में कुल स्नातकों में 0़ 03 प्रतिशत स्नातक कृषि विषय के हैं, मगर उनका न तो कोई संगठन है और न ही किसानों को सुविधाओं, येाजनाओं व शोधपरक कार्यो से अवगत कराने की दिशा में सार्थक प्रयास हुए हैं।
शर्मा बताते हैं कि देश में विभिन्न क्षेत्रों से युवाओं को जोड़कर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए कौशल विकास के लिए कार्यक्रम और प्रशिक्षण चल रहे हैं, मगर कृषि स्नातकों का सही तरीके से इस्तेमाल तक नहीं हो पा रहा है।
उन्होंने कहा कि कृषि में स्नातक की पढ़ाई तो खेती और किसान के लिए की जाती है, मगर ये डिग्रीधारी दीगर कामों में लगे हैं। इनकी शिक्षा और कौशल का बेहतर उपयोग कैसे किया जा सकता है, इसको ध्यान में रखकर यह संघ बनाया गया है।
इस संघ से संबद्ध और एक खाद निर्माता कंपनी के अधिकारी अभय कटारे बताते हैं कि चार वर्षीय पाठ्यक्रम एमबीबीएस करके एक व्यक्ति इंसान का चिकित्सक बनता है, इसी तरह चार वर्षीय पाठ्यक्रम बीएससी (एग्रीकल्चर) करके पेड़ों का चिकित्सक बनता है।
उन्होंने कहा कि चिकित्सकों का तो राष्ट्रीय स्तर पर संगठन है जो उनकी पैरवी करता है, मगर पेड़ों के चिकित्सकों का कोई संगठन नहीं है, यही कारण है कि इस वर्ग की समस्याओं की अनदेखी होती आई है। अब कृषि स्नातकों को एक करने की दिशा में प्रयास हुआ है। वर्तमान में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इकाई बनी है, अन्य राज्यों में भी प्रयास जारी है।
इस संगठन का मकसद एक तरफ कृषि स्नातकों को एकजुट करना है, तो वहीं किसान को जागरूक करने के साथ सरकार को इस बात के लिए राजी करना है कि वह किसानों और खेती के लिए एक दीर्घकालीन योजना बनाए, क्योंकि तात्कालिक योजनाएं ज्यादा मददगार साबित नहीं हो पा रही हैं।
खेती और किसान को ध्यान में रखकर कृषि स्नातकों की गोलबंदी अगर सफल होती है तो वह देश पर ज्यादा असर डालने में सफल होगी, क्योंकि देश की आर्थिक विकास दर में सबसे ज्यादा योगदान खेती का है और आबादी भी सबसे ज्यादा गांव में निवास करती है।