चेन्नई, 12 जनवरी (आईएएनएस)। सांड़ों पर काबू पाने के पारंपरिक खेल जलिकट्ट को अनुमति देने वाली केंद्र सरकार की अधिसूचना पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई रोक पर मिश्रित प्रतिक्रिया हुई है। पशु अधिकारों के लिए काम करने वालों ने शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत किया है, जबकि राजनैतिक दलों के नेताओं ने इस फैसले पर निराशा जताई है।
पशु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) के उपाध्यक्ष एस.चिन्नी कृष्णा ने आईएएनएस से कहा, “यह खबर सुनकर मुझे बेहद खुशी हुई है। यह दुखद है कि इस मामले में लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है।”
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद यह संघर्ष खत्म होगा या नहीं, यह सरकार के फैसले पर निर्भर करेगा।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि जलिकट्ट पशुओं पर जुल्म थोपने के समान है और 21वीं सदी में इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला पोंगल पर्व शुरू होने के दो दिन पहले आया है। इसी पर्व के दौरान तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में जलिकट्ट का आयोजन किया जाता है।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को अधिसूचना जारी कर जलिकट्ट के आयोजन का रास्ता साफ किया था। लेकिन, शीर्ष अदालत ने इस पर रोक लगा दी और सबंद्ध पक्षों को नोटिस जारी किया।
तमिझागा वाजवुरिमई काचि के संस्थापक और पूर्व विधायक टी.वेलमुरुगन ने आईएएनएस से कहा, “सर्वोच्च न्यायालय ने कानून के हिसाब से फैसला किया है। दोष केंद्र सरकार का है। यह कानून में सही तरीके से संशोधन कर प्रतिबंधित सूची से सांड़ (बुल) को हटा सकती थी। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने वोट पर निगाह रखकर अधिसूचना जारी की थी।”
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को इस मामले में कानून के जानकारों से सलाह लेनी चाहिए। राज्य सरकार अध्यादेश लाकर जलिकट्ट को बतौर खेल करने की इजाजत दे सकती है, क्योंकि खेल समवर्ती सूची में आता है।
पीएमके के संस्थापक एस.रामदास ने जलिकट्ट पर रोक के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि दोनों सरकारों ने ऐसे उपाय किए थे, जो कानून के सामने टिक नहीं सकते थे।
रामदास ने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने इस मामले में ऐसे कदम नहीं उठाए, जिससे कि शीर्ष अदालत जलीकट्ट पर उसकी याचिका की सुनवाई जल्दी करती।
उन्होंने केंद्र की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार को यह कहते हुए कठघरे में खड़ा किया कि केंद्र सरकार प्रदर्शन करने वाले जानवरों की सूची से सांड़ों को बाहर करने के लिए कानून में संशोधन कर सकती थी।