सार्वजनिक जीवन में संन्यासी की भांति रहने वाले लोग दुर्लभ होते हैं। वर्तमान युग में ऐसे लोगों का प्राय: अभाव है। ऐसे में एपीजे अब्दुल कलाम का जाना देश के लिए बड़ी क्षति है। वह उन लोगों में शुमार थे, जो सार्वजनिक जीवन में रहते हुए संन्यास के सैद्धांतिक मार्ग का अनुसरण करते थे। राष्ट्रपति भवन वैभव का प्रतीक है। यहां भी उन्होंने अपनी सादगी को अक्षुण्ण बनाए रखा।
सार्वजनिक जीवन में संन्यासी की भांति रहने वाले लोग दुर्लभ होते हैं। वर्तमान युग में ऐसे लोगों का प्राय: अभाव है। ऐसे में एपीजे अब्दुल कलाम का जाना देश के लिए बड़ी क्षति है। वह उन लोगों में शुमार थे, जो सार्वजनिक जीवन में रहते हुए संन्यास के सैद्धांतिक मार्ग का अनुसरण करते थे। राष्ट्रपति भवन वैभव का प्रतीक है। यहां भी उन्होंने अपनी सादगी को अक्षुण्ण बनाए रखा।
यहां से बाहर निकले तो संपत्ति के नाम पर एक बॉक्स, देवी सरस्वती का चित्र, भगवत गीता ही उनके पास थी। वह मुसलमान थे, लेकिन योग करने और गीता पढ़ने को उन्होंने कभी सांप्रदायिक नजरिए से नहीं देखा। यह उनकी महानता का प्रमाण था। सामान्य व्यक्ति इस स्तर तक नहीं सोच सकता। वह सच्चे अर्थो में संपूर्ण भारतीय और मानवता के विचार से ओत-प्रोत थे।
डॉ. कलाम जीवन भर अध्ययन करते रहे और ज्ञान बांटते रहे। संयोग देखिए, ज्ञान का प्रसार करते हुए ही उन्हांेने महाप्रस्थान किया। गीता में ही कहा गया कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है। डॉ. कलाम ने इस पर सदैव अमल किया। इस रूप में वर्तमान समय के वह विलक्षण महापुरुष थे। हर जगह वह बेहद योग्य शिक्षक की भांति आचरण करते दिखाई देते थे। देश में उनके अंदाज से प्रेस कान्फ्रें स करने वाला दूसरा कोई व्यक्ति नहीं था। प्रेस कान्फ्रें स में भी शिक्षक की ही भूमिका में रहते थे।
पत्रकारों को समझाते थे। कई बार राष्ट्र और समाज हित की बातें वह पत्रकारों से दोहरवाते थे। इसी प्रकार वह अधिकारियों की बैठक लेते थे। बच्चों से मिलते तो, अपने ज्ञान के स्तर को उसी के अनुरूप बना लेते थे। वह एक अच्छी पीढ़ी का निर्माण चाहते थे। विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ाने का प्रयास करते रहे। राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद भी उन्होंने विश्राम नहीं किया। अंतिम समय तक वह पूरे देश में ज्ञान का प्रसार करते रहे।
वह दुबारा राष्ट्रपति बनने के हकदार थे। उनके नाम के प्रति सर्वसम्मति बननी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। यह हमारे लिए शर्मिदगी की बात है। उनको राष्ट्रपति पद पर दुबारा निर्वाचित करना राष्ट्रहित में होता, लेकिन जिस दौर में बड़े-बड़े घोटाले हो रहे थे, उस समय कलाम जैसे संत को देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने से रोका गया। यह राजनीति का ही प्रभाव था जो कलाम पहली बार भी सर्वसम्मति से राष्ट्रपति नहीं बन सके थे।
तब वामपंथियों ने सर्वसम्मति से उनके राष्ट्रपति बनने की संभावना समाप्त कर दी थी। कलाम का तब भारी बहुमत से राष्ट्रपति बनना तय था। वामपंथी केवल पश्चिम बंगाल और केरल की दम पर उछल रहे थे। उन्होंने यही दिखाया कि वह कलाम जैसे व्यक्ति पर सर्वसम्मति नहीं बनने देंगे। पूरा देश कलाम को सर्वोच्च पद पर देखना चाहता था। लेकिन वामपंथियों के चलते ऐसा नहीं हो सका। दूसरी बार कांग्रेस के कारण उन्हें राष्ट्रपति नहीं बनाया जा सका। तब मुख्य विपक्षी पार्टी कलाम के नाम पर सहमत थी। यदि कांग्रेस चाहती तो वह दुबारा भी राष्ट्रपति होते।
इसके बावजूद अब्दुल कलाम कभी अपने कर्तव्यपथ से विचलित नहीं हुए। वह लगातार सक्रिय बने रहे। वह चाहते थे कि देश में सभी लोग ईमानदारी और मेहनत से काम करें। यही कारण था कि कलाम ने अपनी इच्छा बताई थी कि निधन होने पर अवकाश न हो, वरन उस दिन और अधिक कार्य किया जाए।
वस्तुत: यह सब उनकी दूरदर्शी सोच को उजागर करता है। उन्होंने भारत को महाशक्ति बनाने का सपना देखा था। यह कोरा सपना नहीं था। इसके लिये उन्हांेने एक रोडमैप बनाया था। इसके किताब रूप में प्रकाशित किया गया। वह सामरिक रूप से भारत को शक्तिशाली बनाना चाहते थे।
इसमें उन्हांेने सक्रिय और बेमिसाल योगदान दिया। इसके अलवा कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने के लिए भी वह तेजी से प्रयास करना चाहते थे। बच्चों और युवकों के लिए उन्होंने मार्गदर्शक तत्व बताए थे। उनके विचार आज भी हमारे सामने हैं, विकसित और शक्तिशाली भारत संबंधी उनके विचार प्रेरणा देते रहेंगे। (आईएएनएस/आईपीएन)
(ये लेखक के निजी विचार हैं)