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दुनिया को निगलता तपेदिक

तपेदिक यानी टीबी आज भी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। एचआईवी के बाद तपेदिक वैश्विक चुनौती बना है। हलांकि इस पर काफी हद तक काबू पाया गया है लेकिन इसका समूल उन्मूलन नहीं हो सका है।

तपेदिक यानी टीबी आज भी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। एचआईवी के बाद तपेदिक वैश्विक चुनौती बना है। हलांकि इस पर काफी हद तक काबू पाया गया है लेकिन इसका समूल उन्मूलन नहीं हो सका है।

यह बीमारी पूरी तरह संक्रमण पर आधारित है। टीबी के कीटाणु स्वस्थ्य व्यक्ति को भी अपनी जद में घेर लेते हैं। तपेदिक कभी राजरोग माना जाता था। यह आम आदमी को नहीं होता था। लेकिन बदलती जीवनशैली, खानपान में बदलाव और हमारी कार्यशैली में आए बदलाव ने इसके प्रसारित होने में बड़ी भूमिका निभायी है। इससे निपटना हमारे लिए खास चुनौती है।

वैश्विक स्तर पर टीबी के समूल उन्मूलन पर काफी प्रयास किए गए लेकिन उनका प्रभाव कुछ अधिक नहीं दिख रहा है। देश में सरकार की ओर से टीबी से लड़ने के लिए सरकारी स्वास्थ्य सेंटरों पर डाट्स की स्थापना की गयी। लेकिन इस तरह केंद्रों ने अपनी जिम्मेदारी पूरी नैतिकता के साथ नहीं निभायी। जिससे यह बीमारी महामारी का रुप ले रही है।

दुनिया भर के देश तपेदिक की बीमारी से जूझ रहे हैं। लेकिन सबसे अधिक दक्षिण पूर्व एशियाई देश प्रभावित हैं। विकसित देशों में इस बीमारी का उतना प्रभाव नहीं है। इसका सबसे अधिक प्रभाव भारत, चीन और इंडोनेशिया और नाइजीरिया में हैं। वैश्विक स्तर पर तपेदिक से दो तिहाई मौतें भारत और नाइजीरिया में होती हैं। यह हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

दुनिया भर में तपेदिक से सबसे अधिक मौतें विकाससील देशों में होती हैं। हमने जिंदगी को अपाहिज बनाने वाली बीमारी पोलियो पर विजय हासिल कर लिया है लेकिन तपेदिक और एचआईवी जैसी बीमारियां हमारे लिए सबसे अधिक चुनौती बनी हैं। हमने इसे कभी गंभीरता से देखने का प्रयास नहीं किया। हमने संस्थाएं बना डाली, प्रचार प्रसार पर लाखों फूंक डाले लेकिन टीबी से निपटने के लिए हमारी जमीनी लड़ाई कितनी सतही है इस पर हमने कभी विचार नहीं किया।

देश भर में सरकारी अस्पतालों में बनाए गए डाट्स सेंटरों की हमारी ओर से कभी समीक्षा नहीं की गयी। खतरनाक उद्योगों की समीक्षा नहीं की गयी। क्योंकि कांच उद्योग कामगारों के लिए सबसे अधिक खतनाक है। इसके अलावा दूसरे कई उद्योग हैं जिससे लोगों को सांस, टीबी और फेफड़े की बीमारी अधिक होती हैं।

इस पर हमारी ओर से कोई खास कदम नहीं उठाए गए, जिसका नतीजा है कि तपेदिक की तपिस से पूरा देश झुलस रहा है। इसका सबसे अधिक खामियाजा समाज के सबसे कमजोर लोगों को भुगतना पड़ रहा है। धूम्रपान पर रोक के लिए हमारी ओर से ठोस कदम नहीं उठाए गए। सरकार एक ओर जहां खतनाक उद्योगों पर लगाम कसती है तो उद्योग और व्यापार जगत अपना दूसरा तरीका निकाल लेता है। यह हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। कानून तो हमारे देश में लाखों बने हैं लेकिन उनका अनुपालन हम किस हद तक कराते हैं इसका लेखाजोखा हमारे पास उपलब्ध नहीं है। जिससे एड्स, टीबी जैसी बीमारियां हमारे लिए चुनौती बनी हैं।

हम बीमारियों से निपटने के लिए अपनाए जा रहे सुरक्षा उपायों को धर्म और जाति से जोड़ने लगते हैं। हमें अपने धर्म और जाति की चिंता अधिक जबकि देश के स्वस्थ्य और तंदुरुस्त होने की चिंता कम रहती है। हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से टीबी पर जारी की गयी रिपोर्ट के आंकड़े हमारे होश उड़ाने वाले हैं। पूरी दुनिया में टीबी से जितनी मौतें होती हैं उसमें एक तिहाई मौत सिर्फ भारत में होती है। 2014 में सबसे अधिक 23 फीसदी मौत भारत में हुई जबकि चीन और इंडोनेशिया 10-10 फीसदी मौतों के साथ दूसरे पायदान पर थे।

पूरी दुनिया में 2014 में तपेदिक से 15 लाख लोगों की मौत हुई, जिसमें सबसे अधिक 14 लाख बच्चे शामिल थे। दुनिया भर में 2014 में टीबी के 96 लाख मामले प्रकाश में आए। इसमें भी सबसे चौंकाने वाली रिपोर्ट दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र से आयी है, यहां टीबी के 58 फीसदी मामले पाए गए हैं।

रिपोर्ट के मुताबित टीबी से होने वाली मौतों में 90 फीसदी एचआईवी पाजिटिव और नेगेटिव से प्रभावित लोगों की हुई है। क्योंकि टीबी का सबसे अधिक हमला अस्वस्थ व्यक्तियों पर अधिक होता है। जिस किसी व्यक्ति के शरीर की आंतरिक प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो जाती है उस स्थिति में टीबी का हमला बढ़ जाता है। इसीलिए एचआईवी से प्रभावित लोगों में इसका अधिक प्रभाव दिखता है। जबकि एचआईबी नेगेटिव लोगों में टीबी से ग्रसित 80 फीसदी लोगों की मौत होती है। हलांकि दुनिया भर के देशों की ओर से 1990 में टीबी पर रोक थाम करने के लिए प्रयास किया गया जिसमें सफलता भी मिली।

दुनिया भर में टीबी पर विजय हासिल करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बेहतर काम किया है। टीबी उन्मूलन पर 42 फीसदी सफलता हासिल की गयी है। अमेरिका, दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में ब्राजील, कंबोडिया, चीन, इथोपिया, भारत, म्यांमार, फिलिपींस, युगांडा, वियतनाम जैसे देश सबसे अधिक प्रभावित हैं। दुनिया भर में सात से आठ सालों में टीबी के मामलों में सबसे अधिक वृद्धि हुई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट के अनुसार 2013 में यहां 57 लाख लोग प्रभावित थे यह संख्या 2014 में बढ़कर 60 लाख हो गयी। इसका सबसे अधिक असर भारत पर दिखा है। देश में टीबी के मामलों में 29 फीसदी की वृद्धि हुई है यह अपने आप में सबसे अधिक चिंता का विषय है। तपेदिक यानी टीबी आज भी दुनिया के लिए चिंता का विषय है।

टीबी के निगरानी तंत्र को और अधिक विकसित करने की जरूरत है। जिससे इस पर कारगर ढंग से काबू पाया जा सके। अगर वक्त रहते हमने इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया तो देश के लिए यह बीमारी कोढ़ में खाज साबित होगी। दुनिया भर में 15 सालों में बेहतर निगरानी तंत्र और लोगों को जागरुक कर 4 करोड़ 30 लोगों की जान बचायी जा चुकी है। अगर समय रहते हमने इस पर गौर नहीं किया तो टीबी आने वाले सालों में महामारी का रुप ले लेगी। हमने पोलियो पर विजय भले हासिल की है लेकिन टीबी हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगी।

सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट को गंभीरता से लेना आवश्यक है। देश भर में टीबी प्रोग्राम की समीक्षा होनी चाहिए। जिससे गरीब परिवारों की जान बचायी जाय और टीबी जैसी बीमारी को भारत से समूल खत्म किया जाए। धूम्रपान कानून को देश और दुनिया भर सख्ती से लागू करने की जरुरत है।

भारत के गांवों में परंपरागत तंबाकू, बीड़ी का सेवन आज भी किया जाता है। इसके अलवा युवाओं में ध्रूमपान की लत अधिक तेजी से बढ़ रही है। वक्त रहते अगर हमने इस पर कदम नहीं उठाए तो टीबी भारत की तबियत बिगाड़ कर रख देगी और हमारे लिए यह सबसे बड़ी चुनौती बनेगी। भारत दुनिया में नए रुप से स्थापित हो रहा है। ऐसी स्थिति में हमें देश की तंदुरुस्ती का खयाल रखना होगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

दुनिया को निगलता तपेदिक Reviewed by on . तपेदिक यानी टीबी आज भी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। एचआईवी के बाद तपेदिक वैश्विक चुनौती बना है। हलांकि इस पर काफी हद तक काबू पाया गया है लेकिन इसका समूल उन्म तपेदिक यानी टीबी आज भी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। एचआईवी के बाद तपेदिक वैश्विक चुनौती बना है। हलांकि इस पर काफी हद तक काबू पाया गया है लेकिन इसका समूल उन्म Rating:
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