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 नन्ही परियों के लिए बड़ी लड़ाई लड़ रहे डॉ. गणेश (8 मार्च : विश्व महिला दिवस) | dharmpath.com

Friday , 13 June 2025

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नन्ही परियों के लिए बड़ी लड़ाई लड़ रहे डॉ. गणेश (8 मार्च : विश्व महिला दिवस)

नई दिल्ली, 7 मार्च (आईएएनएस)। अपने हिस्से का आसमान छूने और अपनी जमीं तलाशने की कोशिश कर रही हर महिला और हर युवती को सलाम किया जाता है। कई ऐसे पुरुष भी हैं जो महिलाओं की अग्निपरीक्षाओं में हर घड़ी उनके साथ खड़े होते हैं, जिनके योगदान को सामने लाना भी उतना ही जरूरी है।

नई दिल्ली, 7 मार्च (आईएएनएस)। अपने हिस्से का आसमान छूने और अपनी जमीं तलाशने की कोशिश कर रही हर महिला और हर युवती को सलाम किया जाता है। कई ऐसे पुरुष भी हैं जो महिलाओं की अग्निपरीक्षाओं में हर घड़ी उनके साथ खड़े होते हैं, जिनके योगदान को सामने लाना भी उतना ही जरूरी है।

यह सच है कि कुछ पुरुषों ने महिलाओं के आगे बढ़ते कदमों को पीछे खींचा है, तो साथ ही सच्चाई यह भी है कि कुछ ने उसे राह भी दिखाई है और कुछ उसकी हिम्मत और ढाल भी बने हैं।

समाज में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जहां पुरुषों ने महिलाओं की कामयाबी की इबारत लिखी है या उन्हें बराबरी का मौका देने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया। इसी श्रृंखला में एक नाम है पुणे के डॉ. गणेश का जिसे शायद ज्यादा लोग न जानते हों, लेकिन जो समाज में लड़कियों के जन्म लेने के भी अधिकार से वंचित होने के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं।

एक ऐसे देश में जहां लड़कों की चाहत के कारण लिंग अनुपात काफी बिगड़ चुका है, डॉ. गणेश लड़कियों को बचाने के लिए एक अनोखी मुहिम चलाते हैं। वह अपने अस्पताल में किसी भी लड़की का जन्म होने पर इसके लिए कोई फीस नहीं लेते, फिर चाहे प्रसव सामान्य हो या सिजेरियन।

पिछले पांच सालों से यह मुहिम चला रहे डॉ. गणेश के अस्पताल में अब तक 513 लड़कियां जन्म ले चुकी हैं, जिनके लिए उन्होंने कोई फीस नहीं ली और उनका कहना है कि वह तब तक अपनी यह मुहिम जारी रखेंगे जब तक लोगों की सोच में बदलाव नहीं आ जाता।

यह पूछे जाने पर कि उन्हें अपने इस अनोखे मिशन की प्रेरणा कहां से मिली, डॉ. गणेश ने आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में बताया, “उन्होंने देखा कि अस्पताल में जब भी कोई महिला प्रसव के लिए आती थी तो उसके परिवार और नाते रिश्तेदारों को उसकी सेहत या अजन्मे बच्चे की सलामती से ज्यादा चिंता इस बात की होती थी कि पैदा होने वाला बच्चा लड़का ही हो।”

उन्होंने कहा, “लड़के के जन्म पर जहां पूरे अस्पताल में मिठाइयां बांटी जातीं, वहीं लड़की के जन्म पर मैंने एक नई जिंदगी को लाने की तकलीफ सहने वाली मां को रोते और परिवारों को बिल देने में झुंझलाते और लड़ते झगड़ते देखा था।”

खुद एक बेटी के पिता डॉ. गणेश के लिए यह बातें बेहद हैरान परेशान करने वाली थीं और उन्होंने इसके लिए कुछ करने के प्रयास में तीन जनवरी 2012 को अपना ‘मुल्गी वाचवा अभियान’ यानी बेटी बचाओ अभियान शुरू किया।

बेटियों के जन्म पर रोने वाले समाज को एक नई सोच देने के लिए डॉक्टर गणेश केवल लड़कियों के जन्म पर प्रसव मुफ्त ही नहीं करते बल्कि साथ ही उनके अस्पताल में जन्म लेने वाली हर लड़की के दुनिया में आने की उसी तरह खुशी मनाई जाती है, जैसी आमतौर पर परिवारों में केवल बेटा पैदा होने पर ही मनाई जाती है और पूरे अस्पताल में मिठाइयां बांटी जाती हैं।

लेकिन जिस प्रकार हर अच्छे काम में राह में अनेक मुश्किलें और चुनौतियां होती हैं, डॉ. गणेश के लिए भी यह मिशन इतना आसान नहीं था।

डॉ. गणेश के पिता ने पूरी जिंदगी एक कुली के रूप में अनाज की मंडी में बोरियां ढोकर और मां ने घरों में काम करके अपने बेटे को डॉक्टर बनाया था। परिवार की आर्थिक स्थिति के चलते एक संयुक्त परिवार में रहने वाले डॉ. गणेश के लिए लड़की के जन्म की फीस माफ करना आसान नहीं था। उन्हें इसके लिए अपने दोनों भाइयों और अपनी पत्नी के विरोध का भी सामना करना पड़ा।

उनकी पत्नी तृप्ति और उनके भाइयों की चिंता यह थी कि इस प्रकार हर लड़की के जन्म की फीस माफ करने पर परिवार का गुजारा कैसे चलेगा। ऐसे में अपने मिशन को पूरा करने में उन्हें अपने वृद्ध पिता का पूरा साथ मिला, जिनका कहना था कि पूरे परिवार को इस नेक काम में उनका साथ देना चाहिए और अगर जरूरत पड़ी तो वह फिर से इस उम्र में भी मजदूरी करेंगे।

डॉ. गणेश बताते हैं, “लेकिन आज स्थिति काफी बदल चुकी है। इस अभियान की बदौलत आज बहुत से लोगों की भी सोच में काफी परिवर्तन आया है और आज बहुत से लोग इस अभियान में साथ देने के लिए मेरे साथ खड़े हैं।”

सोच में आए इसी बदलाव का एक उदाहरण देते हुए डॉ. गणेश खुशी से हाल ही की एक घटना का जिक्र करते हैं।

उन्होंने बताया, “पांच साल पहले हम बेटी के जन्म पर मां को उपहार देते थे और बेटी के जन्म की खुशी मनाते थे, लेकिन अब बेटी के जन्म पर कई परिवार भी ऐसा ही करने लगे हैं।”

ऐसा ही किस्सा बताते हुए डॉ. गणेश खुशी से 22 वर्षीया रानी गणेश आयकर और उनके परिवार का जिक्र करते हैं। 29 फरवरी 2016 को रानी ने और उनके परिवार ने बेटी के जन्म की खुशियां मनाईं और उन्हें और सारे अस्पताल के कर्मचारियों को कपड़े, मिठाइयां और उपहार भेंट में दिए।

डॉ. गणेश कहते हैं, “पांच साल पहले मेरे मजदूर पिता ने मेरे इस अभियान में मेरा साथ दिया था और आज बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी उनके इस प्रयास में पूरा समर्थन देने का वादा करते हुए उनसे कहा कि वह भी सबसे पहले एक बेटी श्वेता के पिता बने थे इसलिए और कोई उनका साथ दे या न दे, लेकिन वह हमेशा उनके साथ खड़े रहेंगे।”

अपने मिशन की अलख जगाने के लिए गांवों, शहरों में घूमने वाले डॉ. गणेश की मदद के लिए अमिताभ ने उन्हें एक कार भी भेंट में दी है।

इसी क्रम में पुणे के विठ्ठलराव शिवरकर उच्च विद्यालय और जूनियर कॉलेज ने भी बेटियों को बचाने के उनके अभियान में साथ दिया है और अपने स्कूल में सभी लड़कियों की फीस माफ कर दी है।

भारत की 2011 की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लिंगानुपात की स्थिति काफी खराब स्तर पर पहुंच चुकी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, प्रति 1,000 लड़कों की तुलना में लड़कियों का अनुपात 9 : 14 था।

ऐसी स्थिति को देखते हुए महिलाओं की स्थिति को बेहतर करने के मिशन में जुटे डॉ. गणेश के जज्बे को सलाम करते हुए हम यही उम्मीद करते हैं कि इनकी तरह और भी लोगों को आगे आना होगा और बेटियों को बचाने के लिए नई अलख जगानी होगी।

नन्ही परियों के लिए बड़ी लड़ाई लड़ रहे डॉ. गणेश (8 मार्च : विश्व महिला दिवस) Reviewed by on . नई दिल्ली, 7 मार्च (आईएएनएस)। अपने हिस्से का आसमान छूने और अपनी जमीं तलाशने की कोशिश कर रही हर महिला और हर युवती को सलाम किया जाता है। कई ऐसे पुरुष भी हैं जो मह नई दिल्ली, 7 मार्च (आईएएनएस)। अपने हिस्से का आसमान छूने और अपनी जमीं तलाशने की कोशिश कर रही हर महिला और हर युवती को सलाम किया जाता है। कई ऐसे पुरुष भी हैं जो मह Rating:
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