कभी जाट आरक्षण तो कभी गुर्जर आरक्षण के नाम पर आंदोलन होते रहे हैं, लेकिन अब उत्तर प्रदेश में निषाद आरक्षण के नाम पर भी आंदोलन की आग सुलग रही है। राजस्थान में गुर्जरों ने 8 दिनों तक रेलवे ट्रैक पर जाम लगाए रखा और प्रदेश सरकार ने 5 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए अध्यादेश जारी करने का निर्णय लेते हुए गुर्जर आंदोलन को स्थगित कराया।
कभी जाट आरक्षण तो कभी गुर्जर आरक्षण के नाम पर आंदोलन होते रहे हैं, लेकिन अब उत्तर प्रदेश में निषाद आरक्षण के नाम पर भी आंदोलन की आग सुलग रही है। राजस्थान में गुर्जरों ने 8 दिनों तक रेलवे ट्रैक पर जाम लगाए रखा और प्रदेश सरकार ने 5 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए अध्यादेश जारी करने का निर्णय लेते हुए गुर्जर आंदोलन को स्थगित कराया।
गुर्जरों की तर्ज पर चलते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश के निषादों ने गोरखपुर व संतकबीर नगर में रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया। ट्रैक को खाली कराने के लिए जब समझौते से बात नहीं बनी तो रेलवे प्रशासन व पुलिस ने लाठी चार्ज शुरू करा दिया, जिसके बाद आरक्षण की मांग कर रहे निषाद आंदोलनकारियों ने भी जवाबी पत्थरबाजी की।
निषादों के आगे अपने को कमजोर देखते हुए प्रशासन ने आंसू गैस, रबड़ की गोलियां व पानी की बौछारे करने के बाद गोली बारी कर दी, जिसमें इटावा के एक युवक की जान भी चली गई। आखिर आरक्षण के नाम पर ऐसे बवाल क्यों होते हैं? अगर इसकी तह में जाया जाए तो यह वोट बैंक आधार बन गया है।
17 अतिपिछड़ी जातियों के आरक्षण का मुद्दा 2004 में शुरू हुआ हल नहीं हो पाया। 2001 में राजनाथ सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने सामाजिक न्याय समिति 2001 की रिपोर्ट के आधार पर अन्य पिछड़े वर्ग का तीन श्रेणियों में विभाजन करने का निर्णय लिया, लेकिन न्यायालय में जाने के बाद मामला लटक गया।
10 मार्च 2004 को तत्कालीन सरकार ने 17 अतिपिछड़ी निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद, धीवर, मांझी, धुरिया, कहार, बाथम, रायकवार, मछुआ, राजभर, कुम्हार, प्रजापति आदि जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव किया।
केंद्र सरकार द्वारा इन जातियों का इथनोग्राफिकल सर्वे रिपोर्ट व शामिल करने का आधार मांगे जाने पर प्रदेश सरकार ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से सर्वेक्षण कराकर निषाद, मछुआरा समाज की जातियों की मानव शास्त्री अध्ययन रिपोर्ट व विस्तृत आधार से संबंधित रिपोर्ट 31 दिसंबर, 2004 को तथा कुछ अन्य बिंदुओं पर फिर से टिप्पणी करने पर उप्र शासन ने शोध संस्थान ने जवाब तैयार कर 16 मई, 2005 को भेज दिया।
केंद्र सरकार द्वारा निर्णय न लेने पर मुलायम सिंह यादव की सरकार ने 10 अक्टूबर, 2005 को 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए कार्मिक अनुभाग से अधिसूचना जारी कर दी।
सपा सरकार द्वारा 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति के आरक्षण की अधिसूचना जारी करने के बाद बसपा समर्थित चंद्र प्रकाश बिंद, जोगी लाल प्रजापति, बुद्धिजीवी प्रजापति महासभा व अंबेडकर पुस्तकालय एवं शोध संस्थान द्वारा न्यायालय में चुनौती दी गई और 20 दिसंबर, 2005 को राज्य सरकार की अधिसूचना स्थगित हो गई।
वर्ष 2007 में मायावती के नेतृत्व में सरकार बनने पर पहली कैबिनेट की बैठक में ही 30 मई, 2007 को मायवती सरकार ने 17 अतिपिछड़ी जातियों के आरक्षण मामले से संबंधित पत्रावली को केंद्र सरकार से वापस मंगाने का निर्णय लिया और 6 जून, 2007 को केंद्र को इस आशय का पत्र लिखा, जिसके आधार पर 10 जून, 2007 को केंद्र ने आरक्षण प्रस्ताव को वापस भी कर दिया।
मायावती सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध राष्ट्रीय निषाद संघ ने व्यापक स्तर पर आंदोलन चलाया। निषाद समाज की नाराजगी को देखते हुए मायावती ने 4 मार्च, 2008 को फिर से अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव भेज दिया।
15 मई, 2013 को अखिलेश यादव की सरकार ने भी केंद्र सरकार को इन अतिपिछड़ी जातियों को दलित का दर्जा देने का प्रस्ताव भेजा और केंद्र सरकार द्वारा कुछ बिंदुओं पर टिप्पणी करने पर प्रदेश सरकार ने उसका जवाब 1 अप्रैल, 2015 को भेज दिया।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में निषाद मछुआरों की निर्णायक स्थिति को देखते हुए राजनीतिक दल अपने पाले में करने की चाले चल रहे हैं। 7 जून, 2015 को मगहर, सहजनवा, गोरखपुर में निषादों के द्वारा जो आन्दोलन शुरू किया गया, वह पूरे प्रदेश में फैलता जा रहा है।
निषाद आरक्षण पर शुरू हुए बवाल के लिए भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ व रामचरित्र निषाद सीधे-सीधे प्रदेश सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। दूसरी तरफ 17 अतिपिछड़ी जातियों विशेष कर निषाद, मछुआरों के आरक्षण की लड़ाई लड़ते आ रहे राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव व समाजवादी पार्टी के नेता चौधरी लौटन राम निषाद ने कहा कि अनुसूचित जाति में शामिल करने का संवैधानिक अधिकार केंद्र सरकार को होता है, न कि राज्य सरकार को।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने तो कई बार केंद्र को प्रस्ताव भेजा, लेकिन केंद्र सरकार ने इस मामले पर कोई निर्णायक रुख नहीं किया। 2004 से 2014 तक कांग्रेस ने कई बार वादा करने के बाद भी कोई निर्णय नहीं लिया। निषाद आरक्षण को लटकाए रखने के लिए सबसे बड़ी दोषी कांग्रेस है और अब कांग्रेस की ही तरह भाजपा भी भ्रमित करने की राजनीति कर रही है।
आरक्षण मसले पर लौटन राम निषाद ने कहा कि उप्र में 1950 से ही निषाद मछुआरा समाज की मझवार, तुरैहा, गोड़, खरवार, खैरहा, खोरोट आदि जातियां अनुसूचित जाति में शामिल है, लेकिन आरक्षण की विसंगति के कारण इनकी पर्यायवाची, वंशानुगत जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हो रही है।
सेन्सस ऑफ इंडिया-1961 के अनुसार मांझी, मल्लाह, केवट, राजगौड़, आदि मझवार की, केंद्र सरकार के 2001 के निर्णय के अनुसार गोड़िया, धुरिया, कहार, रायकवार, बाथम, धीमर आदि गोड़ की व न्यायालय के निर्णयानुसार धीमर, धीवर, तुरहा आदि तुरैहा की समानामी जातियां हैं।
केंद्र सरकार ने 27 नवंबर, 2014 को ओड़िशा, मध्य प्रदेश, केरल, त्रिपुरा, सिक्किम की कुछ अनुसूचित जातियां की समनामी जातियों को आरक्षण का लाभ देने के लिए संविधान संशोधन विधेयक पारित किया और 19 मार्च, 2015 को हरियाणा, कर्नाटक, ओड़िशा की अनुसूचित जातियों के लिए अनुसूचित जातियां संविधान आरक्षण संशोधन विधेयक पारित किया, लेकिन उत्तर प्रदेश की मंझवार, तुरैहा, गोड़ आदि व मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ की मांझी, मझवार जनजाति के लिए केंद्र सरकार ने विधेयक पारित नहीं किया।
उन्होंने साफ तौर पर कहा कि भाजपा सरकार उत्तर प्रदेश सरकार को बदनाम करने व भोले भाले निषाद समाज को भ्रमित करने का षड्यंत्र कर रही है, जिसे राष्ट्रीय निषाद संघ सफल नहीं होने देगा। राष्ट्रीय निषाद संघ मझवार, तुरैहा, गोड़ को परिभाषित करने या 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के मुद्दे पर निषाद, आरक्षण आंदोलन को और तेज करेगा।
उत्तर प्रदेश की जिन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का मुद्दा है, उनमें से 13 निषाद समाज से ही संबंधित हैं। 17 जातियों में निषाद, मल्लाह, केवट 4.33, कहार, कश्यप 3.31, धीवर 0.72, बिन्द 0.87, तवर/सिंघाड़िया 0.21, राजभर 2.44 व कुम्हार, प्रजापति 3.42 प्रतिशत है जो अन्य पिछड़े वर्ग की 54.05 प्रतिशत की आबादी में 15.30 प्रतिशत की संख्या में है।
अतिपिछड़ों के आरक्षण मसले पर भाजपा सामाजिक न्याय मोर्चा के प्रदेश महासचिव रमेशचंद्र लोधी एडवाकेट ने कहा कि प्रदेश सरकार की मंशा ठीक है तो उसे 7.5 प्रतिशत अलग से कोटा व विशेष आरक्षण अनुच्छेद-15(4) व 16(4) के तहत देने का निर्णय लेना चाहिए।
राजभर समाज के नेता राम नरेश राजभर व एमबीसीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राम सुमिरन विश्वकर्मा ने एलआर नायक की सिफारिश व इंदिरा साहनी के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुसार अतिपिछड़ों को अलग से आरक्षण देना चाहिए।
राष्ट्रीय निषाद संघ के प्रदेश अध्यक्ष कैलाशनाथ निषाद ने कहा कि केवट, मल्लाह, कहार, लोध, बंजारा, भर, मेवाती, गोसाई, जोगी, नायक आदि 10 जातियां विमुक्त जनजाति में शामिल रही हैं, जिन्हें 12 मई 1961 के शासनादेशानुसार शिक्षण, प्रशिक्षण में आरक्षण मिल रहा है, जिसे समाज कल्याण विभाग ने 10 जून, 2013 को खत्म कर इन जातियों के साथ अन्याय किया।
इन जातियों की उत्तर प्रदेश में आबादी 17.13 प्रतिशत है। उन्होंने प्रदेश सरकार से विमुक्त जनजातियों का आरक्षण बहाल कर महाराष्ट्र की तरह शिक्षा, सेवा योजन, स्थानीय निर्वाचन आदि में जनसंख्यानुपात में 8.5 प्रतिशत अलग से आरक्षण देना चाहिए।
एक तरफ सरकार अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की बात करती है तो दूसरी तरफ पहले से मिल रहे आरक्षण को खत्म कर इनके साथ अन्याय किया गया, जिसके फलस्वरूप निषाद संघ आरक्षण के लिए आंदोलन की राह पर है। (आईएएनएस/आईपीएन)
(लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं)