नई दिल्ली, 13 दिसंबर (आईएएनएस)। पर्यावरण के मुद्दे पर पेरिस में हुए समझौते का भारत समेत दुनियाभर में स्वागत किया जा रहा है। समझौते की प्रशंसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने भी की है। लेकिन, साथ ही यह चिंता भी जताई जा रही है कि दुनिया को ग्लोबल वार्मिग से बचाने के लिए धनी देश इससे ज्यादा का योगदान कर सकते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि विश्व के नेताओं की 13 दिनों तक चली वार्ता के बाद शनिवार को पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर स्वीकृत समझौता सभी नेताओं के सामूहिक विवेक को दर्शाता है। इस समझौते में कोई विजयी या पराजित नहीं हुआ है।
मोदी ने रविवार को कहा, “जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए सीओपी-21 के पक्षकारों की वार्ता और पेरिस समझौता इस संबंध में दुनियाभर के नेताओं की बुद्धिमत्तता को प्रदर्शित करता है।”
प्रधानमंत्री ने कहा, “पेरिस समझौते के परिणाम में न कोई हारा है और न जीता है। इस संबंध में केवल पर्यावरणीय न्याय की जीत हुई है। हम सभी एक हरित भविष्य के लिए काम कर रहे हैं।”
पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में शनिवार शाम पेश समझौते के प्रारूप को 196 देशों के प्रतिनिधियों ने स्वीकार कर लिया। जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया के इस पहले सार्वभौमिक समझौते का उद्देश्य धरती के बढ़ते तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है। विकासशील देशों की मदद के लिए 100 अरब डालर के हरित कोष बनाने की कार्ययोजना भी बनी है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने कहा, “यह पहली बार है जब दुनिया के हर देश ने उत्सर्जन घटाने पर सहमति जताई है। साझा पर्यावरण कार्रवाई के साझा उद्देश्य के लिए सभी साथ आए हैं। यह बहुपक्षवाद की शानदार जीत है।”
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने समझौते को ‘दुनिया के लिए निर्णायक मोड़’ बताया। उन्होंने कहा कि इससे संदेश गया है कि विश्व समुदाय निम्न कार्बन स्तर के भविष्य के लिए पूरी तरह से संकल्पबद्ध हो गया है।
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि धनी देशों की तरफ से किए गए वादे उनसे की गई अपेक्षा से ‘काफी कम’ रहे हैं। लेकिन, साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों की सोच पर काफी हद तक अमल हुआ है।
जावड़ेकर ने पेरिस में सम्मेलन के समापन के मौके पर कहा, “आज का दिन ऐतिहासिक है। हमने न सिर्फ एक समझौता किया है, बल्कि सात अरब लोगों की जिंदगी में आशा के एक नए अध्याय का सूत्रपात भी किया है।”
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को कहा कि पेरिस के पर्यावरण सम्मेलन में विकासशील और कम विकसित देशों के हितों के संरक्षण के मामले में भारत उम्मीदों पर खरा उतरा है।
गोयल ने कहा कि दुनिया ने पेरिस के सीओपी21 में वास्तविक नेतृत्व क्षमता देखी। हमारी धरती के सामने मौजूद दो सबसे बड़े खतरों, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिग के मामले में 196 देशों के अलग-अलग मुद्दों को समाहित कर एक समझौते पर पहुंचा गया।
गोयल ने कहा, “10 दिनों के अंदर विवाद के (कुल) 1600 मुद्दे घटकर शून्य हो गए।”
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमन ने भी पेरिस में भारत की भूमिका की सराहना करते हुए भारत के लिए पर्यावरणीय समता और न्याय की उम्मीद जताई।
लेकिन, पर्यावरण संरक्षण के काम में लगी संस्था सेंटर फार साइंस एंड इन्वायरमेंट (सीएसई) ने समझौते को ‘कमजोर और गैर महत्वाकांक्षी’ बताया है। संस्था ने कहा है कि इसने विकसित देशों की ऐतिहासिक जिम्मेदारी को मिटा दिया है।
सीएसई की प्रमुख निदेशक सुनीता नारायण ने एक बयान में कहा, “पेरिस समझौता कमजोर और गैर महत्वाकांक्षी है क्योंकि इसमें धनी देशों द्वारा उत्सर्जन घटाने के किसी अर्थपूर्ण लक्ष्य का जिक्र नहीं है।”
सीएसई ने कहा है कि 2020 और इसके बाद भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने पर और अधिक दबाव झेलेगा। खासकर उस वक्त जब सभी राष्ट्रों के तयशुदा सहयोग की समीक्षा होगी।