Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/load.php on line 926

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826
 प्रधानमंत्री का वही नजरिया देश में क्यों नहीं?18 माह, 31 विदेश यात्राएं, 74 दिन परदेश की धरती पर | dharmpath.com

Wednesday , 30 April 2025

Home » फीचर » प्रधानमंत्री का वही नजरिया देश में क्यों नहीं?18 माह, 31 विदेश यात्राएं, 74 दिन परदेश की धरती पर

प्रधानमंत्री का वही नजरिया देश में क्यों नहीं?18 माह, 31 विदेश यात्राएं, 74 दिन परदेश की धरती पर

November 17, 2015 8:50 pm by: Category: फीचर Comments Off on प्रधानमंत्री का वही नजरिया देश में क्यों नहीं?18 माह, 31 विदेश यात्राएं, 74 दिन परदेश की धरती पर A+ / A-

images (5)18 माह, 31 विदेश यात्राएं, 74 दिन परदेश की धरती पर। भारत के किसी भी प्रधानमंत्री के लिहाज से नरेंद्र मोदी का यह रिकार्ड है। हमेशा की तरह ब्रिटेन दौरे पर भी खूब हलचल हुई, बल्कि पहले से कहीं ज्यादा। हो भी क्यों न जिनके हम कभी गुलाम थे वो आज बाहें फैलाए हमारे स्वागत को आतुर हैं, जरूर कोई बात तो है, लेकिन बिहार के नतीजों के कसैलेपन के बावजूद लंदन के मिनी इंडिया ने मोदी की जमकर खातिरदारी की। इतनी कि अब तक की यात्राओं में सबसे ज्यादा वेम्बले स्टेडियम की भीड़, बकिंघम पैलेस में दावत, प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की खासी आवभगत यानी हर ओर जबरदस्त चमक-दमक।

भले ही कुछ दिनों के लिए सही, बिहार का कसैलापन धीरे-धीरे कम हुआ होगा। लेकिन ब्रिटेन दौरे में जमकर खरे-खोटे नारों, सवालों का भी वो सामना, जो अब तक कहीं नहीं हुआ। दुनियाभर में सबसे ज्यादा स्वतंत्र कहे जाने वाले ब्रितानी मीडिया में किसी ने गुजरात दंगों के जख्म पर नमक डाला तो किसी ने दौरे को जरूरत से ज्यादा चर्चित बताया।

कई ने तो ब्रितानी प्रधानमंत्री तक को आड़े हाथों ले लिया, नरेंद्र मोदी की इतनी खुशामद क्यों? असहिष्णुता पर भारत में चुप रहने वाले प्रधानमंत्री को बीबीसी के सवाल पर बोलना पड़ा। ‘भारत बुद्ध की धरती है, गांधी की धरती है और हमारी संस्कृति समाज के मूलभूत मूल्यों के खिलाफ किसी भी बात को स्वीकार नहीं करती है। हिन्दुस्तान के किसी कोने में कोई घटना घटे, एक हो, दो हो या तीन हो. सवा सौ करोड़ की आबादी में एक घटना का महत्व है या नहीं, हमारे लिए हर घटना का गंभीर महत्व है। हम किसी को टॉलरेट (बर्दाश्त) नहीं करेंगे। कानून कड़ाई से कार्रवाई करता है और करेगा।’

निश्चितरूप से संसद के अगले सत्र में, देश में इस बाबत चुप्पी कितने कार्यदिवस खाएगी, नहीं पता। लेकिन ब्रिटेन में असहिष्णुता का जवाब कई लोगों के लिए भारत में सवाल जरूर बन गया है।

बड़ी सच्चाई यह भी कि ब्रिटेन अब वो ग्रेट ब्रिटेन भी नहीं जहां कभी सूर्य अस्त नहीं होता था। वो अब आयरलैंड का छोटा सा उत्तरी हिस्सा ही रह गया है और जहां भारतीय उद्यम ब्रिटेन को खुशहाल बनाने में महती भूमिका निभा रहे हैं।

चाहे वह सुनील मित्तल का स्टील कारोबार हो या टाटा की जगुआर-लैंडरोवर जैसी मशहूर कंपनियां। इसका मतलब यह तो नहीं कि भारत ने तो ब्रिटेन में खूब कारोबार फैलाया अब बारी ब्रिटेन (ग्रेट ब्रिटेन नहीं) की है वो भी भारत में भी निवेश करे।

इसी बीच ‘इकॉनामिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट’ (ईआईयू) की रिपोर्ट भी यही इशारा करती है कि भारत अगले पांच वर्षों में ‘इकॉनामिक पॉवर हाउस’ बन सकता है बशर्ते महिलाओं के साथ भेदभाव और बुनियादी ढांचे से जुड़ी बाधाओं को दूर कर लिया जाए। यानी भारत का दुनिया का इकलौता देश है जो दुनिया को चीन के जैसे सन 2000 के तर्ज पर 2020 में बदल सकता है, क्योंकि भारत में इसी दिशा में तेजी से सुधारवादी कार्यक्रम किए जा रहे हैं और जिनके सकारात्म नतीजे दिख भी रहे हैं।

शायद यही वजह है कि दुनियाभर में भारत की साख और नजरिए में बदलाव आया है। हर जगह भारतवंशियों को यह दिखता भी है। हो सकता है यही वजह हो कि जहां कहीं भी प्रधानमंत्री जाते हैं, उनके स्वागत को एआरआई पलक पांवड़े बिछाए दिखते हैं। लेकिन उससे भी बड़ी सच्चाई यह है कि इसी अंदाज में देश में भी हाथ से खिसकते या दरकते जनाधार को रोकना होगा।

सात समंदर पार के नारों और जयघोषों का असर भारत में भी दिखना चाहिए, क्योंकि अब भारत एक सशक्त और दुनिया का समझदार लोकतंत्र हो गया है। अब 2016 में असम, केरल, पश्चिम बंगाल और पुदुच्चेरी, 2017 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब के अलावा, मणिपुर, और गोवा में विधानसभा चुनाव होने हैं। महगठबंधन का रामबाण फार्मूला विपक्षियों की एकता के लिए अमृत वरदान सा है के बाद कौनसा संजोग जोड़ा जाएगा?

यहां का जन, गण और तंत्र के सिपहसलारों को खूब समझने लगा है। दंभता और विनम्रता का फर्क भी उसे मालूम हो गया है। फक्र है कि शब्दों के फेर और व्याख्या भी भारत में खूब समझी जाने लगी है। असहिष्णुता और आग उगलती जुबान को साधना ही होगा।

यह सब नहीं हुआ तो दिल्ली इत्तेफाक, बिहार नासमझी की हार जरूर बन सकता है, लेकिन बाकी राज्यों की रार और तकरार 2 सीटों से बहुमत और बहुमत से कहां ले जाएगी कह पाना मुश्किल है। बिहार नतीजों ने नब्ज बता दी है, अब इंतजार इलाज का है।

प्रधानमंत्री का वही नजरिया देश में क्यों नहीं?18 माह, 31 विदेश यात्राएं, 74 दिन परदेश की धरती पर Reviewed by on . 18 माह, 31 विदेश यात्राएं, 74 दिन परदेश की धरती पर। भारत के किसी भी प्रधानमंत्री के लिहाज से नरेंद्र मोदी का यह रिकार्ड है। हमेशा की तरह ब्रिटेन दौरे पर भी खूब 18 माह, 31 विदेश यात्राएं, 74 दिन परदेश की धरती पर। भारत के किसी भी प्रधानमंत्री के लिहाज से नरेंद्र मोदी का यह रिकार्ड है। हमेशा की तरह ब्रिटेन दौरे पर भी खूब Rating: 0
scroll to top