प्राची साल्वे एवं संजना पंडित
प्राची साल्वे एवं संजना पंडित
पूर्वोत्तर के आठ राज्यों से संबंधित इस लेख के प्रथम भाग में आर्थिक संकेतकों का विश्लेषण है जबकि दूसरे भाग में भौतिक आधारभूत संरचना का वर्णन।
तीसरे भाग में सामाजिक संकेतकों जैसे साक्षरता, नवजात शिशु मृत्यु दर, स्कूलों में बच्चों के नामांकन और महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराध का उल्लेख है।
आतंकवाद से प्रभावित होने के बावजूद मिजोरम केरल और लक्षद्वीप के बाद देश का सर्वाधिक तीसरा साक्षर राज्य है। 2011 की जनगणना के अनुसार मिजोरम की साक्षरता दर 91.3 प्रतिशत है जबकि केरल और लक्षद्वीप में यह दर क्रमश: 93.91 और 91.8 प्रतिशत हैं। 2001 में मिजोरम की साक्षरता दर 88.8 प्रतिशत थी।
राज्य के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में स्वयंसेवी संगठनों की सक्रियता और चर्च स्कूलों के चलते मिजोरम महिला साक्षरता दर में भी देश में अव्वल है। मिजोरम में महिला साक्षरता दर 89.3 प्रतिशत है। 84.7 फीसदी महिला साक्षरता दर के साथ गोवा दूसरे नंबर पर है। जबकि, त्रिपुरा 82.7 फीसदी महिला साक्षरता दर के साथ पूर्वोत्तर राज्यों में दूसरे और देश में पांचवें स्थान पर है।
अरुणाचल प्रदेश 65.4 फीसदी साक्षरता दर के साथ आठों पूर्वोत्तर राज्यों में सबसे पीछे और देश में नीचे से दूसरे स्थान पर है। अरुणाचल प्रदेश की 77 फीसदी जनसंख्या ग्रामीण है जहां साक्षरता दर सिर्फ 59.9 फीसदी है। यही वजह है कि महिला साक्षरता दर के मामले में भी राज्य 57.7 प्रतिशत के साथ पूर्वोत्तर के राज्यों में सबसे पीछे है।
72.2 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ असम पूर्वोत्तर के राज्यों में नीचे से दूसरे स्थान पर है।
नागालैंड में बच्चों के प्राथमिक स्कूल (कक्षा एक से पांच के बीच) छोड़ने की दर राष्ट्रीय औसत से चार गुना अधिक है। बच्चों के प्राथमिक स्कूल छोड़ने की राष्ट्रीय औसत दर 4.3 फीसदी है जबकि यह नगालैंड में 19.4 फीसदी है।
नागालैंड में उच्च प्राथमिक और सेकेंडरी स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की दर भी क्रमश: 17.7 और 35.1 फीसदी है जो देश में उच्चतम स्तर पर है।
2013-14 के आंकड़ों के अनुसार प्राथमिक से उच्च प्राथमिक स्कूल में बच्चों के जाने की दर नागालैंड में 78.7 फीसदी है जो उत्तर प्रदेश के 78.5 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है, लेकिन राष्ट्रीय औसत 89.7 प्रतिशत से काफी कम है।
स्कूलों में बिजली और पेयजल की सुविधा के मामले में भी नागालैंड की स्थिति अच्छी नहीं है। राज्य के 41 फीसदी स्कूलों में ही बिजली है जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 60 फीसदी है। इसी तरह पेयजल सुविधा भी मात्र 78.2 फीसदी स्कूलों में ही उपलब्ध है। नतीजा है कि नागालैंड इस मामले में राष्ट्रीय और पूर्वोत्तर राज्यों में नीचे से दूसरे स्थान पर है।
पेयजल के मामले में बिहार और झारखंड के स्कूलों की स्थिति बेहतर है जहां क्रमश: 92.7 और 91.9 फीसदी स्कूलों में पेयजल उपलब्ध है।
मणिपुर में 31 फीसदी स्कूलों में ही बिजली है जबकि असम में यह प्रतिशत सिर्फ 22.4 है, इसलिए असम इस मामले में देश में सबसे पिछड़ा राज्य है। इसी तरह 2014-15 के आंकड़ों के अनुसार मेघालय के 60 फीसदी स्कूलों में ही लड़कियों के लिए पृथक शौचालय है जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 93 फसदी है।
अपराध की दृष्टि से देखा जाए तो विशेष रूप से असम में महिलाओं के खिलाफ अपराध में काफी वृद्धि हो रही है। 19,139 की संख्या के साथ पूर्वोत्तर के राज्यों में असम इस मामले में अव्वल है। 2011 की जनगणना के अनुसार असम में एक करोड़ 52 लाख महिलाएं हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों में देश की मात्र 3.8 फीसदी आबादी रहती है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर अपराध में इन राज्यों का योगदान 7 फीसदी है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार जांच के लिए लंबित आपराधिक मामलों में असम देश में दूसरे और मणिपुर पहले स्थान पर है। यह प्रतिशत क्रमश: 58.8 और 87.2 है।
महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में त्रिपुरा पूर्वोत्तर के राज्यों में दूसरे स्थान पर है। वहां पीड़ित महिलाओं की संख्या 1615 है, लेकिन त्रिपुरा में 2013 में केवल 13.8 प्रतिशत ही आपराधिक मामले जांच के लिए लंबित थे।
पूर्वोत्तर में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में 48 फसदी के साथ मिजोरम पहले और 45.8 फीसदी के साथ सिक्किम दूसरे स्थान पर है।
नवजात शिशु मृत्यु दर पूर्वोत्तर राज्यों में चरम पर है, लेकिन मणिपुर इस मामले में अपवाद है। इस मामले में असम की स्थिति देश में सबसे बदतर है जहां 2013 में प्रति एक हजार बच्चों में 54 की मौत हो गई। विश्व बैंक के आंकड़े के अनुसार करीब यही स्थिति अफ्रीकी देश बुरुं डी की भी है। इतना ही नहीं असम में 41 फीसदी बच्चों का कद उनकी उम्र की तुलना में कम होता है जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 38.7 फीसदी है।
त्वरित बाल सव्रेक्षण के अनुसार असम में 9.7 फीसदी बच्चे छोटे और कम वजन वाले होते हैं और 22.2 फीसदी सामान्य से कम वजन वाले होते हैं।
वैसे पूर्वोत्तर राज्यों में नवजात शिशु मृत्यु दरों में समानता नहीं है।
आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित होने के चलते मणिपुर को कभी-कभी असफल राज्य भी कह दिया जाता है, लेकिन बच्चों के जन्म के लिए यह भारत में सबसे महफूज राज्य है। भारत सरकार और विश्व बैंक की रपट के अनुसार वहां नवजात शिशु मृत्यु दर देश भर में सबसे कम है। यही स्थिति करीब-करीब अंडमान द्वीप समूह की भी है जो बहामास और ओमान के बराबर है।
मणिपुर में जहां एक ओर मेडिकल सुविधा बेहतर है, वहीं वहां की महिलाएं भी सशक्त हैं। मणिपुर में प्रति एक हजार जनसंख्या पर एक डॉक्टर है जबकि अखिल भारतीय स्तर पर 1700 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। इसी तरह राज्य में 600 लोगों पर एक नर्स उपलब्ध है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह अनुपात 638 पर एक का है।
इसके विपरीत मेघालय में नवजात शिशु मृत्यु दर प्रति हजार 47 है जो काफी ऊंची है। इसी तरह राजस्थान की भी स्थिति ठीक नहीं है, वहां 42.9 फीसदी बच्चे कमजोर, 30.9 फीसदी कम वजन वाले और छोटे तथा 13.1 फीसदी बच्चे सामान्य से कम वजन वाले और छोटे होते हैं।
(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। ये लेखक के निजी विचार हैं)