अगर बुन्देलखण्ड की बात करें तो कहने के लिए कांग्रेस के एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता यहां हैं। इसके बावजूद पार्टी के एक भी समर्थित उम्मीदवार का न जीतना संगठन की कमजोरी और आपसी तालमेल का अभाव प्रदर्शित करता है। इस प्रकार की शर्मनाक हार पर कांग्रेस के बड़े नेता कुछ भी कहने से बचते नजर आ रहे हैं। सही मायनों में पार्टी के लिए ये आत्मचिन्तन का वक्त है।
केंद्र सरकार में मंत्री रहे प्रदीप जैन आदित्य तक भी अपने क्षेत्र से एक भी उम्मीदवार को सफलता नहीं दिला पाये। इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या होगी। इसी प्रकार ललितपुर, जालौन, बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर आदि जिलों में भी कांग्रेसियों को हार का सामना करना पड़ा।
चुनाव से पूर्व काफी दम भरा जा रहा था कि कांग्रेस पंचायत चुनाव मजबूत स्तंभ बनकर उभरेगी। इस प्रकार कांग्रेसियों के चुनावी दावे को मतदाताओं ने नकार दिया। इधर जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के चुनाव परिणाम आने के बाद राजनीतिक दिग्गजों को करारा झटका लगा है।
खास तौर पर भाजपाई और बसपाई जो चुनाव में मजबूत दावेदारी जता रहे थे, उन्हें निराशा हाथ लगी। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस की हालत तो और भी दयनीय हो गई। मंडल में जिला पंचायत सदस्य के लिए कांग्रेस समर्थित एक भी उम्मीदवार अपना खाता तक नहीं खोल पाया। इस चुनाव में देखा जाए तो सबसे बुरी स्थिति अगर किसी की रही है तो वह कांग्रेस है।
त्रिस्तरीय सामान्य निर्वाचन में जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के परिणाम आने के बाद सपा समर्थित उम्मीदवार झांसी मंडल में सबसे अधिक सीट जीत कर पहले पायदान हैं। वहीं, बसपा मंडल में दूसरे स्थान पर रही है, केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा को तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा है।
चुनाव में कांग्रेस का अता-पाता नहीं है। इससे तो अच्छी स्थिति निर्दलीय उम्मीदवारों की रही है, जिन्होंने अपने अकेले के दम पर कई स्थानों पर अच्छी खासी टक्कर दी और कई स्थानों पर चुनाव जीत गए। इस करारी हार ने एक बार फिर कांग्रेस को आत्म मंथन करने पर मजबूर कर दिया कि आगामी चुनावों में वह किस प्रकार से जनता के बीच जाकर अपनी स्थिति को दर्शाते हैं।