पाराओलों (मणिपुर), 19 जून (आईएएनएस)| भारतीय सेना के काफिले पर आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले के एक पखवाड़े से अधिक समय बीत जाने के बाद पराओलों में लगता है कि इस गांव में जानवर ही रहते हैं और यहां इंसान नहीं रहते हैं। जिस जगह पर चार जून को तीन आतंकवादी संगठनों ने घात लगाकर हमले किए थे, उस जगह से यह गांव मात्र एक किलोमीटर दूर है, और यहां पर घरेलू जानवर ही देखे जा सकते हैं।
गुरुवार को गांव में जब कुछ पत्रकार पहुंचे तो उनका स्वागत करने गांव में दो कुत्ते, पांच बिल्लियां और कुछ मुर्गियां थीं। हालांकि गांव के प्रवेश द्वार पर वर्दी में कुछ सैनिक जरूर खड़े थे, जो पत्रकारों से उनके दौरे के उद्देश्य के बारे में पूछताछ कर रहे थे.वर्दी में खड़े सैनिकों को काफी लंबे समय तक अपनी यात्रा के उद्देश्य के बारे में स्पष्टीकरण देने के बाद ही पत्रकारों को गांव में प्रवेश मिला। उन्होंने पत्रकारों को याद दिलाया, “हमारे पास भी मानवाधिकार हैं।”
पालतू जानवर बुरी तरह से भूखे थे। अगर अगले कुछ दिनों में उनकी देखभाल नहीं की गई तो वे जिंदा नहीं बच पाएंगे।एक पखवाड़े से अधिक समय बाद भी लोगों में हमले का डर अभी खत्म नहीं हुआ है।
पराओलों ही नहीं, आसपास के गांव चारलों और कोटल खुंठक में भी सन्नाटा पसरा हुआ है।
हमले के कुछ घंटों के बाद ही इन गावों में रहने वाले सेना की तलाशी अभियान के दौरान उसके बदले के डर के कारण अपने घरों से भाग गए थे। अब ये गांव पूरी तरह खाली पड़े हैं।
हमले के लगभग दो सप्ताह बाद सुरक्षा बलों ने मीडिया को घटनास्थल के पार जाने की अनुमति दी है। घटना के बाद से इस स्थान की घेराबंदी कर दी गई थी।लों ही नहीं, आसपास के गांव चारलों और कोटल खुंठक में भी सन्नाटा पसरा हुआ है।
हमले के कुछ घंटों के बाद ही इन गावों में रहने वाले सेना की तलाशी अभियान के दौरान उसके बदले के डर के कारण अपने घरों से भाग गए थे। अब ये गांव पूरी तरह खाली पड़े हैं।
हमले के लगभग दो सप्ताह बाद सुरक्षा बलों ने मीडिया को घटनास्थल के पार जाने की अनुमति दी है। घटना के बाद से इस स्थान की घेराबंदी कर दी गई थी।
आल मणिपुर वर्किं ग जर्नलिस्ट के तत्वाधान में मीडियाकर्मियों के एक दल ने प्रभावित गांवों का दौरा किया।
इस दौरान दल को घटनास्थल पर सेना के जले हुए ट्रक, सैनिकों के सामान, गोलियां और जली हुई झाड़ियां आदि देखने को मिलीं। घात लगाकर किए गए हमले में जले दो ट्रक पराओलों गांव में खड़े मिले, जिनपर गोलियों के निशान थे।
पराओलों से मोल्टुक के बीच 15 किलोमीटर के क्षेत्र में केवल चार गांव (पलाओलों, चारलों, कोटल खुंटक और मोल्टुक) हैं। ये सभी गांव एक-दूसरे से कुछ किलोमीटर की दूरी पर हैं। घटनास्थल से 10 किलोमीटर दूर स्थित गांव मोल्टुक के निवासियों ने हालांकि गांव में ही रहने का फैसला किया। अन्य तीन गांवों में लमकांग नगा आदिवासी रहते हैं। इन गांवों में कुल 90 घर हैं। इन निवासियों को बदले का डर था क्योंकि एनएससीएन के खपलांग समूह ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी।
मोल्टुक के रहने वाले कुंखोथोंग ने कहा, “हमें सेना के जवानों ने गांव से बाहर न जाने के लिए कहा था। खेत, शिकार और यहां तक कि अस्तित्व के लिए जरूरी अन्य गितिविधियों के लिए भी बाहर जाने से मना कर दिया गया था।”
उन्होंने कहा, “राज्य सरकार लोगों की सुरक्षा करने में विफल रही है।”
सभी गांववासियों को सप्ताह में एक बार गांव के प्रमुख द्वारा परिचालित बस से सभी जरूरी सामान लाने के लिए कहा है। इन गावों में स्थित सभी स्कूल और दुकानें बंद हैं।
यह भी देखा गया है कि तीन अन्य गावों के निवासियों ने जिला मुख्यालय में अधिकारियों से बातचीत की और उन्हें सुरक्षा मुहैया कराने के लिए कहा ताकि वे अपने गांव लौट सकें। हालांकि अभी तक उन्हें कोई सहायता नहीं दी गई है।