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 ‘मोक्षस्थली’ में इतालवी महिला लावारिस पशुओं की मसीहा | dharmpath.com

Wednesday , 11 June 2025

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‘मोक्षस्थली’ में इतालवी महिला लावारिस पशुओं की मसीहा

गया, 7 फरवरी (आईएएनएस)। पूरी दुनिया में ‘मोक्षस्थली’ के नाम से प्रसिद्ध गया में कहा जाता है कि पिंडदान करने से पुरखों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, परंतु गया में न केवल पितरों की आत्मा की शांति एवं मुक्ति के लिए पिंडदान किया जाता है, बल्कि यहां एक स्थान ऐसा भी है जहां लावारिस कुत्तों सहित अन्य जानवरों के मरने के बाद न केवल उनका नामकरण किया जाता है, बल्कि उसे इज्जत के साथ कब्रिस्तान में दफनाया भी जाता है। कब्र पर जानवर के नाम की नेमप्लेट और फोटो भी लगाई जाती है।

गया, 7 फरवरी (आईएएनएस)। पूरी दुनिया में ‘मोक्षस्थली’ के नाम से प्रसिद्ध गया में कहा जाता है कि पिंडदान करने से पुरखों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, परंतु गया में न केवल पितरों की आत्मा की शांति एवं मुक्ति के लिए पिंडदान किया जाता है, बल्कि यहां एक स्थान ऐसा भी है जहां लावारिस कुत्तों सहित अन्य जानवरों के मरने के बाद न केवल उनका नामकरण किया जाता है, बल्कि उसे इज्जत के साथ कब्रिस्तान में दफनाया भी जाता है। कब्र पर जानवर के नाम की नेमप्लेट और फोटो भी लगाई जाती है।

भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया में इतालवी मूल की महिला एड्रिआना फेरेंटी ने जानवरों से प्रेम की अनोखी मिसाल पेश की है। पिछले करीब 30 साल में 550 से अधिक मृत जानवरों को वह कब्रिस्तान में दफना चुकी हैं।

वह जब कभी बोधगया की सड़कों पर भ्रमण करने निकलती हैं तो सडकों के किनारे पड़े लावारिस एवं घायल कुत्तों, बकरियों, मुर्गो, आदि जानवरों को देखकर बहुत दुखी हो जाती हैं।

वह कहती हैं कि ये जानवर अगर इंसान होते तो अपनी परेशानियों और दुखों को बता सकते थे। लेकिन ये बेजुबान हैं, इसलिए अपनी तकलीफ और पीड़ा किसी से कह नहीं सकते।

जानवरों की पीड़ा से भावुक होकर एड्रिआना उन सारे जानवरों को ले आती हैं और उनका टीकाकरण सहित उचित उपचार कर उन्हें अपने पास रख लेती हैं।

एड्रिआना ने बताया कि वर्तमान समय में उनके पास 120 से ज्यादा कुत्ते, 50 बकरियां, मुर्गे, खरगोश, गाय, मछली आदि हैं। इन्हें सुबह और शाम दो वक्त का खाना और रहने की व्यवस्था की गई है।

बौद्ध धर्म अपना चुकीं एड्रिआना कहती हैं कि वे ऐसे जानवरों के मर जाने के बाद उन्हें बौद्ध परंपरा के अनुसार दफना देती हैं, ताकि उनकी आत्मा की शांति मिल सके। इसी सोच को लेकर वह जानवरों का कब्रिस्तान बना चुकी हैं। इस कब्रिस्तान में अब तक 500 जानवरों को दफनाया जा चुका है।

वह कहती हैं कि मृत जानवरों की कब्र के ऊपर उनकी फोटो, नाम, मरने की तिथि अंकित की जाती है। एड्रिआना करीब 30 सालों से इसी तरह मृत जानवरों को दफनाती आ रही हैं।

एड्रिआना कहती है कि मनुष्य जानवरों के साथ स्वार्थवश प्यार करता है और पालता है। एड्रियाना बोधगया के समीप धंधवा गांव में जानवरों की देखभाल के लिए आश्रम बना रखा है, जिसका नाम ‘मैत्री चौरिटेबल ट्रस्ट’ हैं। जानवरों की देखभाल के लिए यहां कई कर्मचारी हैं।

कर्मचारी बताते हैं कि यहां कई तरह के जानवर हैं, जिनकी देखभाल इंसानों की तरह की जाती है। सभी जानवरों को वक्त पर भोजन दिया जाता हैं। इसके अलावा जब लावारिस जानवरों को यहां लाया जाता हैं तो उनके यहां आने के दिन से लेकर उनके मरने तक के प्रत्येक दिन की दिनचर्या का लेखा-जोखा रजिस्टर में दर्ज किया जाता है।

इस आश्रय का देखभाल करने वाले और ट्रस्ट के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर विनोद कुमार पात्रा आईएएनएस को बताते हैं कि जानवरों की तबियत खराब होने पर उनका इलाज कराया जाता है। इसके अलावा आसपास के गांवों के लोग भी अपने जानवरों को यहां इलाज के लिए लाते हैं, उनका भी इलाज किया जाता है और दवा दी जाती है।

उन्होंने बताया कि कई व्यक्ति अपने बीमार पशुओं को भी आश्रय में छोड़ जाता है।

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