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राष्ट्रपति शासन प्रणाली ज्यादा मुफीद!

नई दिल्ली, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। देश में शासन की संसदीय प्रणाली बनाम राष्ट्रपति प्रणाली पर बहस नई नहीं है। स्वतंत्रता से पहले, स्वतंत्रता के बाद और संविधान को अपनाए जाने तक संसदीय शासन प्रणाली की क्षमता पर गहन बहस चलती रही है। अब एक किताब पर चर्चा के दौरान राष्ट्रपति शासन प्रणाली को सबसे मुफीद माना गया है, ताकि किसी को यह विश्वास दिलाने की जरूरत न पड़े- सबका साथ, सबका विकास!

संविधान सभा में भी बहुत से सदस्यों ने भारत जैसे बड़े और विविधता वाले देश में संसदीय प्रणाली की सरकार के स्थायित्व को लेकर सवाल उठाए थे। यह बहस अब तक जारी है, पर इससे पहले किसी भारतीय या विदेशी विद्वान ने इस विषय पर इतने उदाहरण या वजनदार तर्क नहीं दिए थे, जैसा कि भानु धमीजा ने अपनी पुस्तक ‘व्हाइ इंडिया नीड्स द प्रेसिडेंशियल सिस्टम’ में पेश किए हैं।

यह पुस्तक मात्र एक पुस्तक नहीं है, बल्कि एक आंदोलन है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए लेखक ने इसका हिंदी संस्करण भी प्रकाशित करने का विचार बनाया। इस दिशा में ‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली : कितनी जरूरी, कितनी बेहतर’ उसी सोच का परिणाम है।

प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण एक सेमिनार के बीच हुआ। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में भाजपा सांसद शांता कुमार ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, जबकि पूर्व विदेश राज्यमंत्री व तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के सांसद शशि थरूर मुख्य वक्ता थे। नामचीन संविधान विशेषज्ञ एवं लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप भी वक्ताओं में शामिल थे।

शशि थरूर ने कहा, “अब सही वक्त है कि हम शासन के अपने वर्तमान तरीके पर फिर से गौर करें। उनका कहना था कि बंद दिमाग और तंग दिमाग वाले समाज का पतन हो जाता है, इसलिए अब हमें खुले दिमाग से सोचना चाहिए। यह सही वक्त है, जब हमें सोचना चाहिए कि क्या संसदीय शासन प्रणाली जारी रहे या हम विश्व के सबसे बड़े जनतंत्र की उन्नति के लिए अन्य उपलब्ध बेहतर विकल्पों के बारे में सोचें।”

शांता कुमार राष्ट्रपति प्रणाली के शासन के बड़े हिमायती के रूप में जाने जाते हैं। उनका कहना था कि केंद्रीय सरकार के पास शक्तियों के अत्यधिक केंद्रीकरण तथा कमजोर राज्यों के कारण हम कई मोर्चो पर असफल हुए हैं और लोगों का विश्वास टूटा है। लोगों में यह धारणा पक्की होती जा रही है कि यह व्यवस्था शक्तिशाली लोगों के पक्ष में है तथा इस प्रणाली में आम आदमी की काबलियत की कोई कीमत नहीं है।

सुभाष कश्यप का कहना था कि इंग्लैंड सरीखे छोटे और न्यूनतम सामाजिक विषमताओं वाले देश के लिए तो संसदीय प्रणाली सही हो सकती है, पर जाति, धर्म, संप्रदाय और संस्कृति के नाम पर बंटे हुए भारत जैसे बड़े देश के लिए राष्ट्रपति शासन प्रणाली ज्यादा मुफीद है।

भानु धमीजा की पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि लेखक ने दर्जनों दस्तावेजों, पुस्तकों और संवैधानिक अभिलेखों की छानबीन की है, जिसके परिणामस्वरूप वे संसदीय शासन प्रणाली पर पुनर्विचार के नतीजे पर पहुंचे हैं। यह पुस्तक शोधकर्ताओं के लिए तथ्यों का एक स्वतंत्र स्रोत सिद्ध होगी।

इस कार्यक्रम में भानु धमीजा ने कहा कि वर्तमान शासन प्रणाली ने हमारी पहलकदमी की क्षमता को खत्म किया है और हमारे नैतिक पतन का कारण बनी है। भारतीय शासन प्रणाली की घोर असफलता ने लेखक को वर्तमान शासन प्रणाली के विरुद्ध मत व्यक्त करने के लिए विवश किया है।

भानु धमीजा ने अपनी पुस्तक ‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली : कितनी जरूरी, कितनी बेहतर’ के बारे में कहा, “राष्ट्रपति शासन प्रणाली का समर्थन करने वाले अन्य विद्वानों में और मुझमें एक ही अंतर है। मैं 18 साल तक अमेरिका में रहा हूं। उस दौरान मैंने न केवल अमेरिकी शासन व्यवस्था का बारीकी से अध्ययन किया, बल्कि उसे स्वयं अनुभव किया।”

उन्होंने कहा, “मैंने बीस वर्ष पूर्व भारत वापस आने पर जब संसदीय प्रणाली की कमियां देखीं, तो स्तब्ध रह गया और मैंने कुछ करने का निश्चय किया। बरसों के शोध के बाद मैं इस परिणाम पर पहुंचा हूं कि वर्तमान संसदीय प्रणाली न केवल हमारे जैसे बड़े और विविधतापूर्ण देश के लिए अनुपयुक्त है, बल्कि हम इसकी कमियों के दुष्परिणाम भुगतने के लिए अभिशप्त हैं। मेरे हर तर्क के पीछे वर्षो का गहन अध्ययन और शोध है।”

सचमुच, भारत की शासन प्रणाली बदलने की अब शख्त जरूरत आन पड़ी है, क्योंकि मौजूदा तंत्र में धनबल, बाहुबल, जातीय समीकरण, धर्म केआधार पर ध्रुवीकरण, भेदभाव, बदले की भावना, साम-दाम-दंड-भेद अपनाने और सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक चले जाने की होड़ का कोई अंत नहीं दिखता। महात्मा गांधी के इस देश में असत्य और हिंसा के विविध रूप ही देखने को मिल रहे हैं।

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