Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the js_composer domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
 वैश्विक तेल कीमतों में 75 फीसदी गिरावट का लाभ किसे? (आईएएनएस विशेष) | dharmpath.com

Wednesday , 11 June 2025

ब्रेकिंग न्यूज़
Home » धर्मंपथ » वैश्विक तेल कीमतों में 75 फीसदी गिरावट का लाभ किसे? (आईएएनएस विशेष)

वैश्विक तेल कीमतों में 75 फीसदी गिरावट का लाभ किसे? (आईएएनएस विशेष)

अमेरिका में कच्चे तेल का रिकार्ड उत्पादन, यूरोजोन से तेल की कम मांग और चीन, ब्राजील, ईरान जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रवेश के कारण भारत के लिए कच्चे तेल की कीमत काफी कम हो गई है। कच्चे तेल की कीमत जुलाई 2014 में 106 डॉलर प्रति बैरल थी। जनवरी 2016 में यानी 15 महीनों में इसमें 75 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।

अमेरिका में कच्चे तेल का रिकार्ड उत्पादन, यूरोजोन से तेल की कम मांग और चीन, ब्राजील, ईरान जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रवेश के कारण भारत के लिए कच्चे तेल की कीमत काफी कम हो गई है। कच्चे तेल की कीमत जुलाई 2014 में 106 डॉलर प्रति बैरल थी। जनवरी 2016 में यानी 15 महीनों में इसमें 75 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।

लेकिन तेल कीमतों में इस गिरावट का असर स्थानीय स्तर पर दिखाई नहीं दे रहा है, आखिर क्यों?

दअसल, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों के 11 वर्षो के निचले स्तर पर पहुंचने के साथ ही केंद्र और राज्य सरकारें उत्पाद कर और मूल्यवर्धित कर लगातार बढ़ाती रहीं, अपनी आमदनी बढ़ाती रहीं और खुदरा उपभोक्ताओं के लिए ईंधन कीमतें ऊंचाई पर बनी रहीं।

चूंकि भारत अपनी ईंधन जरूरतों का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आयात करता है, लिहाजा वैश्विक तेल कीमतों में गिरावट का अर्थ यह होता है कि पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में काफी कमी आनी चाहिए। लेकिन भारतीय उपभोक्ता पेट्रोल और डीजल के लिए फिलहाल वैश्विक दर के लगभग दोगुने का भुगतान कर रहे हैं।

उपभोक्ताओं से कई सारे कर, तेल कंपनियों के मुनाफे और अन्य कमीशन वसूले जा रहे हैं।

इंडियास्पेंड के विश्लेषण के अनुसार, असम, उत्तर प्रदेश और गुजरात में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में मौजूदा वित्त वर्ष (2015-16) के दौरान 10 प्रतिशत से कम की गिरावट देखी गई।

उदाहरण के तौर पर जब वैश्विक तेल मूल्य इस अवधि में आधा घट गया, उसी अवधि में उत्तर प्रदेश में पेट्रोल की कीमत दो रुपये प्रति लीटर बढ़ गई।

भारत में तेल कीमतें ऊंची इसलिए बनी हुई हैं, क्योंकि तेल विपणन कंपनियां, जैसे कि इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड अपना मुनाफा जोड़ती हैं, केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क जोड़ती है, राज्य सरकारें अपने-अपने मूल्यवर्धित कर जोड़ती हैं, और पेट्रोल पंप वाले अपने कमीशन जोड़ते हैं।

यानी इन सब को जोड़ने के बाद जो दर बनती है, तेल के लिए वह कीमत हमें चुकानी पड़ती है।

पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क पिछले तीन महीनों के दौरान पांच गुना बढ़ा है। पेट्रोल पर 34 प्रतिशत और डीजल पर 140 प्रतिशत उत्पाद शुल्क बढ़ा है।

तेल विपणन कंपनियां जिस दर पर डीलरों (पेट्रोल पंप) को पेट्रोल बेचती हैं, वह दो वर्षो में घटकर आधी हो गई है। लेकिन इसी अवधि के दौरान पेट्रोल की खुदरा कीमतों में मात्र 15 प्रतिशत की कमी हुई है।

राज्यों की तरफ से लगाया जाने वाला मूल्यवर्धित कर में तो कोई खास बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन केंद्र द्वारा लगाया जाने वाला उत्पाद कर 2014 और 2016 के बीच बढ़कर दोगुना हो गया है।

यानी आप डीजल और पेट्रोल की कीमतों से ज्यादा उस पर कर का भुगतान करते हैं।

डीजल पर केंद्रीय कर पेट्रोल से बहुत ज्यादा है। अप्रैल 2014 में प्रति लीटर डीजल पर केंद्रीय कर उसकी कीमत से चार गुना बढ़ गया। यह 4.52 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर फरवरी 2016 में 17.33 रुपये प्रति लीटर हो गया।

एक लीटर पेट्रोल के लिए जो कीमत हम चुकाते हैं, उसमें से 57 प्रतिशत कर के रूप में सरकार के खाते में जाता है। एक लीटर डीजल की कीमत 44 रुपये है, और इसमें 55 प्रतिशत कर का हिस्सा शामिल है।

यदि इन दो वर्षो के दौरान उत्पाद शुल्क न बढ़ा होता, तो डीजल की कीमत आज 32 रुपये प्रति लीटर होती।

पत्रकार और अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अंकलेसरिया अय्यर ने जैसा कि अपने ब्लॉग में लिखा है, वस्तुओं के परिवहन लागत पर तेल कीमतों का सीधा असर पड़ता है और इसके कारण उपभोक्ता महंगाई बढ़ी है।

तुर्की और श्रीलंका में महंगाई पर हुए शोध में महंगाई पर ईंधन कीमतों के प्रभाव को रेखांकित किया गया है।

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रपट के अनुसार, ईंधन की कम कीमतों से महंगाई को काबू में रखा जा सकता है।

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, जनहित पत्रकारिता मंच इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। अभिषेक वाघमारे मंच से जुड़े एक नीति विश्लेषक हैं।)

वैश्विक तेल कीमतों में 75 फीसदी गिरावट का लाभ किसे? (आईएएनएस विशेष) Reviewed by on . अमेरिका में कच्चे तेल का रिकार्ड उत्पादन, यूरोजोन से तेल की कम मांग और चीन, ब्राजील, ईरान जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रवेश के कारण भ अमेरिका में कच्चे तेल का रिकार्ड उत्पादन, यूरोजोन से तेल की कम मांग और चीन, ब्राजील, ईरान जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रवेश के कारण भ Rating:
scroll to top