संत ज्ञानेश्वर का जन्म 1275 ईसवी में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पैठण के पास
आपेगाँव में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इनके पिता का नाम विट्ठल
पंत एवं माता का नाम रुक्मिणी बाई था। मुक्ताबाई इनकी बहन थीं। इनके दोंनों भाई
निवृत्तिनाथ एवं सोपानदेव भी संत स्वभाव के थे|
संत ज्ञानेश्वर को उनके बड़े भाई ने प्रेरणा दी जिससे उन्होंने महसूस किया कि “भागवत
गीता” ही लोगो के सभी अध्यात्मिक जरूरतों का समाधान है. उन्होंने संस्कृत के गीता
का गहन अध्ययन किया|
इनके पिता ने जवानी में ही गृहस्थ का परित्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया था परंतु
गुरु आदेश से उन्हें फिर से गृहस्थ-जीवन शुरु करना पड़ा। इस घटना को समाज ने मान्यता
नहीं दी और इन्हें समाज से बहिष्कृत होना पड़ा। ज्ञानेश्वर के माता-पिता से यह अपमान
सहन नहीं हुआ और बालक ज्ञानेश्वर के सिर से उनके माता-पिता का साया सदा के लिए उठ
गया।
उन दिनों सारे ग्रंथ संस्कृत में थे और आम जनता संस्कृत नहीं जानती थी अस्तु
तेजस्वी बालक ज्ञानेश्वर ने केवल 15 वर्ष की उम्र में ही गीता पर मराठी में
ज्ञानेश्वरी नामक भाष्य की रचना करके जनता की भाषा में ज्ञान की झोली खोल दी। ये
संत नामदेव के समकालीन थे और उनके साथ पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को
ज्ञान-भक्ति से परिचित कराया और समता, समभाव का उपदेश दिया। मात्र 21 वर्ष की उम्र
में यह महान संत एवं भक्तकवि ने इस नश्वर संसार का परित्यागकर समाधिस्त हो गये।
संत ज्ञानेश्वर बहुत विलक्षण प्रतिभाशाली थे. वे कवि विद्वान् सलाहकार थे.
अध्यात्मिक गुरू थे. योग में प्रवीण थे और परम सत्य के ज्ञाता भी थे संत ज्ञानेश्वर
द्वारा किये गए चमत्कार आज भी जनश्रुति है. उन्होंने अपने अध्यात्म बल से एक बदमाश
की पीठ पर खाना पकवा दिया. यह भी कहा जाता है उन्होंने एक मुत को भी जिन्दा कर
दिया. उनके द्वारा लिखा गीता का मराठी भाषानुसार “अमृतानुभव” बहुत प्रसिद्ध है.
“अमृतानुभव” में भगवान और अन्य महापुरषों की भक्ति पर उनका समर्पण है.