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 संसद भवन : एक ऐतिहासिक धरोहर | dharmpath.com

Tuesday , 10 June 2025

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संसद भवन : एक ऐतिहासिक धरोहर

संसद के नए भवन की जरूरत समय के साथ प्रासंगिक है। हो भी क्यों न, जब वर्ष 2026 में संसदीय क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन होगा, आबादी के साथ संसदीय कार्यक्षेत्रों की संख्या बढ़ेगी, तब तक सुरक्षा, तकनीक और सहूलियत के लिहाज से भी नया भवन जरूरी होगा।

संसद के नए भवन की जरूरत समय के साथ प्रासंगिक है। हो भी क्यों न, जब वर्ष 2026 में संसदीय क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन होगा, आबादी के साथ संसदीय कार्यक्षेत्रों की संख्या बढ़ेगी, तब तक सुरक्षा, तकनीक और सहूलियत के लिहाज से भी नया भवन जरूरी होगा।

लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की चिंता वाजि़ब है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मौजूदा संसद भवन का महत्व कम होगा, बल्कि यह और बढ़ेगा।

यह ऐतिहासिक धरोहर थी, है और रहेगी भी। 88 साल पुरानी संसद की इमारत, जहां वास्तुशिल्प का बेजोड़ नमूना है, वहीं यह मात्र 83 लाख रुपये में, 6 वर्ष से थोड़ा कम समय में बनी थी। इसकी नींव 12 फरवरी 1921 को ड्यूक ऑफ कनाट ने रखी थी। इन्हीं के नाम पर आज दिल्ली का कनाट प्लेस है।

यह भवन दिल्ली के सबसे भव्य भवनों में एक है। इसे तबके मशहूर वास्तुविद लुटियन ने डिजाइन किया था और सर हर्बर्ट बेकर की देखरेख में तैयार हुआ। अपने अद्भुत खंभों और गोलाकार बरामदों के कारण ही यह पुर्तगाली स्थापत्यकला का अद्भुत नमूना भी कहलाता है। इस भवन का विधिवत उद्घाटन 18 जनवरी 1927 को भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने किया था।

अपने डिजाइन के चलते शुरू में इसे सर्कुलर हाउस कहा जाता था। इसे देखने दुनियाभर से लोग आते हैं, लेकिन एक मिथक यह भी कि बहुत ही कम दिल्ली वासी ऐसे हैं जो गहराई से इसके बारे में सब कुछ जानते हों। गोलाकार आकार में निर्मित संसद भवन का व्यास 170.69 मीटर है। इसकी परिधि आधा किमी से अधिक है जो 536.33 मीटर है और करीब 6 एकड़ (24281.16 वर्ग मीटर) में फैला हुआ है।

दो अर्धवृत्ताकार भवन, केंद्रीय हाल को बहुत ही खूबसूरती से घेरे हुए हैं। संसद भवन के पहले तल का गलियारा 144 खंभों पर टिका हुआ है जिसके हर खंभे की लंबाई 27 फीट है।

बाहरी दीवार में मुगलकालीन जालियां लगी हैं और बहुत ही जिओमेट्रिकल ढंग से बनाई गई हैं। पूरे भवन में 12 दरवाजे हैं और एक मुख्य द्वार है। यूं तो पूरा संसद भवन तीन भागों में लोकसभा, राज्यसभा और सेंट्रल हाल में विभक्त है, जिसमें लोकसभा का कक्ष 4800 वर्गफीट में बना है। बीच में एक स्थान पर लोकसभा अध्यक्ष के बैठने का आसन बना है।

सदन में 550 सदस्यों के लिए 6 भागों में विभक्त 11 पंक्तियों में बैठने की व्यवस्था के अलावा अधिकारियों, पत्रकारों के बैठने की व्यवस्था है। इसी तरह राज्यसभा में भी सदस्यों के बैठने की ऐसी ही व्यवस्था है। यह संख्या 238 है जो 250 तक हो सकती है। लोकसभा कक्ष के पहले तल में कई सार्वजनिक दीर्घाएं और प्रेस दीर्घा है। प्रेस दीर्घा आसन के ऊपर है और बाईं ओर अध्यक्ष दीर्घा है जो अध्यक्ष के अतिथियों के लिए है।

प्रेस गैलरी के दाईं ओर राजनयिकों और गणमान्य आगंतुकों के लिए विशिष्ट दीर्घा है। संसद का तीसरा प्रमुख भवन केंद्रीय कक्ष है जो गोलाकार है। इसमें गुंबद का व्यास 98 फीट है। इसे विश्व के महत्वपूर्ण गुंबदों में एक का दर्जा भी हासिल है। इसका महत्व इसलिए भी खास है, क्योंकि 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने इसी जगह भारतीयों को उनकी सत्ता सौंपी थी।

साथ ही भारतीय संविधान का प्रारूप भी यहीं तैयार हुआ था। आजादी के पूर्व केंद्रीय हॉल का उपयोग केंद्रीय विधायिका और राज्य परिषदों द्वारा पुस्तकालय के रूप में किया जाता था। 9 दिसंबर 1946 से यहां संविधान सभा की बैठकें होने लगीं जो 24 जनवरी 1950 तक चलीं। अब इसका उपयोग दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों के लिए होता है।

संसद भवन के उत्तर में तालकटोरा रोड की तरफ अद्भुत छटा बिखेरता संसदीय सौध है।

यह 9.8 एकड़ में लगभग 35 हजार वर्गमीटर में बना है जो 1970-75 के बीच बना। इसके बीच का भाग 6 मंजिला है, जबकि आगे-पीछे का भाग तीन मंजिला है। नीचे जलाशय है, जिसके ऊपर झूलती सीढ़ियां अलग ही छटा बिखेरती हैं। प्रांगण के बीच में अष्टकोणीय जलाशय है, जबकि ऊपर पच्चीकारी युक्त जाली लगी है।

यहां पर पौधे लगाकर एक प्राकृतिक छटा तैयार की गई है। इस सौध में संसदीय अध्ययन तथा प्रशिक्षण की सुविधाएं भी हैं।

संसद भवन की पूरी डिजाइन, मध्यप्रदेश के मुरैना जिले स्थित मितालवी में बने 9वीं शताब्दी के ‘इकोत्तरसो’ या ‘इंकतेश्वर महादेव मंदिर’ जिसे अब ‘चौंसठयोगिनी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है, से प्रेरित है। यह मंदिर अब ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) द्वारा संरक्षित है।

कहा जाता है कि अंग्रेज आर्किटेक्ट सर हरबर्ट बेकर इस मंदिर के स्थापत्य और संरचना को देखकर इतने प्रभावित और अभिभूत हुए कि उन्होंने इसे देख भारत के संसद भवन के डिजायन की परिकल्पना कर ली। यकीनन हमारा संसद भवन विंस्टन चर्चिल की उस पंक्ति को हकीकत में बदलता है ‘हमारी इमारतें हमें आकार देती हैं, और हम अपनी इमारतों को..।’

यह सच भी है, क्योंकि इसी भवन में, जिसे भारतीय संसद कहते हैं, सवा सौ करोड़ भारतवासियों की भावनाओं, अपेक्षाओं और भविष्य की रूपरेखा तैयार होती है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं)

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