नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को अगले 15 वर्षो में उत्सर्जन स्तर में 33-35 फीसदी कटौती करने का वादा किया। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस लक्ष्य को महत्वाकांक्षी और संतुलित बताया है।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना सम्मेलन के तहत पक्षों के सम्मेलन की पेरिस में 30 नवंबर से 11 दिसंबर तक होने वाली 21वीं बैठक से पहले भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित इच्छित योगदान (आईएनडीसी) के तहत 38 पृष्ठों का दस्तावेज पेश किया।
196 देशों से मांगे गए इस तरह के दस्तावेजों के आधार पर कम कार्बन वाले स्वच्छ जलवायु वाला भविष्य सुनिश्चित करने के लिए वार्ता होगी और एक सहमति पर पहुंचने की कोशिश की जाएगी। अभी तक 120 देशों ने इस तरह का दस्तावेज जमा कर दिया है, जिनका वैश्विक उत्सर्जन में कुल 85.3 फीसदी योगदान है।
नई दिल्ली के दस्तावेज में कहा गया है, “भारत 2030 तक उत्सर्जन स्तर 2005 के स्तर के मुकाबले 33-35 फीसदी कम करना चाहता है।”
इसमें कहा गया है, “भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित इच्छित योगदान वाजिब और महत्वाकांक्षी है, क्योंकि भारत विकास की सभी चुनौतियों से जूझते हुए भी कम कार्बन उत्सर्जन के पथ पर चलना चाहता है।”
दस्तावेज में कहा गया है, “भारत की विकास योजना में आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की कोशिश जारी रहेगी।”
यह दस्तावेज महात्मा गांधी जयंती के मौके पर जमा किया गया है। 1992 के क्योटो सम्मेलन पर आधारित दस्तावेज में कहा गया है कि समग्र उत्सर्जन और प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दोनों के संदर्भ में इसने पर्यावरण को काफी कम क्षति पहुंचाई है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए देश का काम संतुलित और महत्वाकांक्षी है।
दस्तावेज में कहा गया है, “जलवायु परिवर्तन पर बहस शुरू होने से काफी पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि हमें संरक्षक (ट्रस्टी) की भूमिका निभानी चाहिए और प्राकृतिक संसाधन का बुद्धिमानी से उपयोग करना चाहिए, क्योंकि आने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ्य धरती सुपुर्द करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।”
जलवायु परिवर्तन का मुद्दा देश की सरकार के लिए अहम है। गत महीने अमेरिका की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और जर्मनी के नेताओं के साथ इस पर प्रमुखता से बात की थी।
जावेड़कर ने यहां संवाददाताओं से कहा, “पूरी दुनिया को महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ काम करने की जरूरत है।”
दस्तावेज में कहा गया है कि देश को 2015 से 2030 के बीच लक्ष्य को हासिल करने के लिए कृषि, वानिकी, मत्स्य अवसंरचना, जल संसाधन और पारिस्थितिकी पर 206 अरब डॉलर खर्च करना होगा। इसमें आपदा प्रबंधन पर होने वाले अतिरिक्त निवेश की गणना नहीं की गई है।
एशियाई विकास बैंक के एक अध्ययन का हवाला देकर दस्तावेज में कहा गया है कि अकेले ऊर्जा क्षेत्र में कार्यक्रमों को लागू करने में देश को 2030 के दशक में 7.7 अरब डॉलर खर्च करना होगा और 2050 तक जलवायु परिवर्तन से देश की जीडीपी को सालाना करीब 1.8 फीसदी के बराबर आर्थिक नुकसान होगा।
दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि कार्बन उत्सर्जन घटाने से संबंधित कार्यक्रमों पर देश को 2030 तक 2011 के मूल्य के आधार पर करीब 834 अरब डॉलर खर्च करना होगा।
दस्तावेज में कहा गया है कि अभी तक जलवायु परिवर्तन की कोशिशों पर देश अपने संसाधनों से ही खर्च कर रहा है।
दस्तावेज में कहा गया है, “हालांकि, हमारी कोशिश अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहायता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की उपलब्धता से भी जुड़ी हुई है, क्योंकि भरत अभी भी विकास की जटिल चुनौतियों से जूझ रहा है।”