मुंबई, 28 सितम्बर (आईएएनएस)। सरकारी बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के ऊंचे स्तर से संबंधित चिंता के बीच वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को कहा कि सरकार इन बैंकों में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 52 फीसदी तक लाने पर विचार कर सकती है।
इंडियन बैंक्स एसोसिएशन की सालाना बैठक को यहां संबोधित करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी बैंकों की निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप समाप्त करना होगा और उनका फैसला पूरी तरह बैंकिंग क्षेत्र की जरूरत पर आधारित होना चाहिए।
उन्होंने कहा, “बैंकिंग ब्यूरो को आकार-प्रकार देने और सभी कार्मिक मुद्दों को पेशेवराना करने पर काम जारी है। हम बदलाव चाहते हैं। सर्वोत्तम प्रतिभा की बहाली का विकल्प तलाशने के लिए हमने न्यायमूर्ति ए.पी. शाह की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है।”
सरकारी बैंकों की एक होल्डिंग कंपनी बनाने की दिशा में पहला कदम उठाते हुए सरकार ने गत महीने बैंक बोर्ड ब्यूरो (बीबीबी) की स्थापना की घोषणा की। ब्यूरो सरकारी बैंकों में निदेशकों की नियुक्ति, कोष जुटाने और तनावग्रस्त संपत्ति से निपटने के मुद्दे पर सुझाव देगा।
जेटली ने मौजूदा कारोबारी साल में बैंकों में पूंजी निवेश करने के लिए 7,940 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिसंबर में सरकारी बैंकों को सरकार की हिस्सेदारी घटाकर 52 फीसदी करते हुए पूंजी बाजार से 1,60,000 करोड़ रुपये तक जुटाने की अनुमति दे दी है।
एक अनुमान के मुताबिक, बैसल-3 पूंजी पर्याप्तता मानक पर खरा उतरने के लिए सरकारी बैंकों को 2018 तक 2,40,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त जरूरत है। यह मानक 2008 जैसे अमेरिकी वित्तीय संकट से निपटने के लिए बनाए गए हैं।
जेटली ने साथ ही बताया कि सरकार अक्टूबर के शुरू तक दिवालिया संहिता का मसौदा जारी करने की तैयारी में है।
उन्होंने कहा, “दिवालिया संहिता का मसौदा अगले महीने के शुरू तक जारी किया जा सकता है। उसे संसद में पेश किया जाएगा।”