लखनऊ, 29 नवंबर (आईएएनएस/आईपीएन)। नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान के राज्य संग्राहलय में रविवार को संस्कार गीतों की छटा बिखरी। कलाविद हरि प्रसाद दूबे ने विभिन्न संस्कार गीतों से दर्शकों को मुग्ध किया। उन्होंने लोक कला संग्रहालय की ओर से आयोजित ‘अवधी लोक जीवन में संस्कार गीत’ विषयक व्याखान में इन गीतों के महत्व पर भी प्रकाश डाला।
लखनऊ, 29 नवंबर (आईएएनएस/आईपीएन)। नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान के राज्य संग्राहलय में रविवार को संस्कार गीतों की छटा बिखरी। कलाविद हरि प्रसाद दूबे ने विभिन्न संस्कार गीतों से दर्शकों को मुग्ध किया। उन्होंने लोक कला संग्रहालय की ओर से आयोजित ‘अवधी लोक जीवन में संस्कार गीत’ विषयक व्याखान में इन गीतों के महत्व पर भी प्रकाश डाला।
इस मौके पर डा. दूबे ने विवाह के दौरान ‘हलबल, हलबल दूल्हा चले, हरवाहे का जनमा रे। धीरे धीरे दुलहिन चले रजवाडे की जनमी रे.. सुनाकर दर्शकों को खूब गुदगुदाया। वहीं बच्चों के चोट लगने पर ‘ओका बोका तीन तलोका, लइया लाडी चन्नन काठी’ से मां का बच्चे से लाड-प्यार की ओर दर्शकों का ध्यान खींचा। इसके बाद चन्दा मामा दूर के, अट्टा पट्टा नव दस बेटा, गोला बरधा सलिया खइया पनिया पीइस..पर खूब तालियां बटोरीं। उन्होंने मांगलिक अवसर पर बधाई गीतांे से भी दर्शकांे को मंत्रमुग्ध किया।
इस अवसर पर दूबे ने कहा कि हमारे जीवन में सभी कृत्य धर्म से ओत-प्रोत हैं, संस्कारों की संख्या 16 हैं। लोक कला के विभिन्न सस्ंकार गीतों के बिना जीवन में एक खालीपन है। संस्कार जीवन में विशेष प्रकार का अभ्यास भी डालते हैं।