पेशावर, 20 जनवरी (आईएएनएस)। बाचा खान विश्वविद्यालय की छात्रा, आयत इब्राहिम बुधवार सुबह जब में परिसर में प्रवेश कर रही थीं तो उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि प्रसिद्ध गांधीवादी, शांति दूत खान अब्दुल गफ्फार खान के नाम पर बना यह विश्वविद्यालय आतंकी दहशतगर्दो के निशाने पर है।
कुछ ही सेकेंड में इब्राहिम को इस खौफनाक सच का इल्म हो गया।
डरी हुई इस छात्रा ने पेशावर से टेलीफोन के माध्यम से आईएएनएस को बताया, “मैंने लोगों को चीखते हुए इधर-उधर भागते और जमीन पर गिरे देखा।”
प्रशासन ने इस नरसंहार के लिए पाकिस्तान से संघर्षरत ‘तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान’ (टीटीपी) को जिम्मेदार ठहराया है।
टीटीपी ने भी हमले की जिम्मेदारी ले ली है।
इब्राहिम ने कहा, “मैं समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्या हो रहा है और मैं अपनी जिस दोस्त से मिलने वहां गई थी, उससे मिल नहीं पाई।”
हमलावर चार की संख्या में थे। उन्होंने अपने सामने आने वाले हर शख्स को बिना सोचे-समझे गोलियों से भून दिया।
यहां तक कि बच निकलने की कोशिश करने वालों पर उन्होंने बारूद के गोले फेंके और उन्हें मार दिया या बुरी तरह घायल कर दिया।
हमले के समय विश्वविद्यालय में लगभग 3,000 विद्यार्थियों के अलावा 600 अतिथि भी मौजूद थे।
वे बाचा खान के नाम से मशहूर खान अब्दुल गफ्फार खान की पुण्य तिथि पर आयोजित कविता पाठ के लिए परिसर में एकत्रित हुए थे।
हमले से स्तब्ध इब्राहिम ने भी उस नाजुक लम्हे में वही किया जो कई अन्य विद्यार्थियों ने किया। वह भी कई अन्य विद्यार्थियों की तरह परिसर में खड़ी विश्वविद्यालय की बसों की ओर भागीं।
बसें भरते ही ड्राइवरों ने तेज रफ्तार से बसों को परिसर से बाहर निकाल लिया और कई जिंदगियों को बचा लिया।
इब्राहिम ने आईएएनएस को बताया कि उसे कोई अनुमान नहीं है कि इस भीषण नरसंहार में कितने लोगों ने अपनी जिंदगियां गंवा दी है।
सुरक्षाकर्मी तत्काल विश्वविद्यालय पहुंचे और पांच घंटों से भी लंबी चली लड़ाई में आतंकियों को मार गिराया।
उन्होंने चारों आतंकियों को मार गिराया। लेकिन तब तक जुलाई 2012 में स्थापित यह विश्वविद्यालय 20 विद्यार्थियों, शिक्षाविदों और अन्य कर्मचारियों की मौत और दर्जनों घायलों से पस्त हो चुका था।