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 21वीं सदी में भी नहीं टूट रहा अंधविश्वास | dharmpath.com

Monday , 9 June 2025

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21वीं सदी में भी नहीं टूट रहा अंधविश्वास

ऋतुपर्ण दवे

ऋतुपर्ण दवे

अंधविश्वास! कई बार लगता है कि समय के साथ-साथ इस पर से विश्वास टूटा है। लेकिन जब-तब होती घटनाओं ने उस 21वीं सदी में, जब विज्ञान का दबदबा और दुनिया मुट्ठी में होने का सपना सच हो गया, अंधविश्वास पर विश्वास देख चिंता बढ़ जाती है! हैरानी तो तब और होती है जब भारत की छोड़िए, अमेरिका जैसा विकसित देश, उसमें भी एक सैनिक भारतीय महिला को डायन बताकर बर्खास्त कर दिया जाता है।

आरोप कि महिला ने एक सहकर्मी पर जादू-टोना किया। हकीकत अलग, वायुसेना डेंटल क्लीनिक पर कार्यरत भारतीय महिला डेबरा शोनफेल्ड मैरिलैंड का कसूर बस इतना कि वह योग करतीं और भारतीय संगीत सुनतीं। यही उसके हिंदू डायन करार दिए जाने का कारण बना।

भारत में भी अंधविश्वास की घटनाओं ने हदें पार कर दी। इसी वर्ष की कुछ घटनाएं हालात-ए-बयां को काफी हैं। 18 सितंबर, छत्तीसगढ़ का जशपुर, बीच बाजार भूतों की बिक्री, वह भी ठोक-बजाकर पसंद आने पर। बगीचा क्षेत्र के सरबकोम्बों में दिनदहाड़े भूत-बाजार, सरेराह प्रदर्शन और सौदा। किस्म-किस्म के भूत यहां तक कि नोट कमाने वाले भी।

24 सितंबर, नागपुर का तक्षशिला नगर। झोपड़पट्टी में रहने वाले 78 वर्षीय उस वृद्ध को सरेआम निर्वस्त्र घुमाया जाता है, जिनका काम पूजा-पाठ है। पड़ोस की एक बालिका की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। परिजनों को शक है कि इसी बुजुर्ग दंपति ने जादू-टोना किया होगा। महाराष्ट्र में जादू-टोना विरोधी कानून है, फिर भी बीच शहर यह घटना।

जुलाई का लगभग पूरा महीना। मध्यप्रदेश और सटे उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में जबरदस्त अफवाह, मसाला पीसने वाले सिल-बट्टा और हाथ आटा-चक्की को रात में भूत आकर टांक जाता है। बस फिर क्या, सोशल मीडिया पर खबर खूब वायरल हुई। जबरदस्त भय का माहौल और अफवाह ऐसी कि जिस किसी ने टांकने की आवाज सुनी, मौत हो जाएगी।

लोगों ने घरों से बाहर सिल-बट्टा फेंकना शुरू कर दिया। सच्चाई यह कि बरसात में कई कीट ऐसे होते हैं जो पत्थरों पर चिपक पैर रगड़ते हैं जिससे टांकने के निशान बन जाते हैं।

21 सितंबर, उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर का थाना कपिलवस्तु। दर्जनों महिलाएं हाथों में पानी से भरे लोटा-बाल्टियां लेकर थाने पहुंचती हैं। वर्दी में हाजिर थानेदार रणविजय सिंह को जमकर नहलाती हैं। इसके पीछे मान्यता यह कि बारिश न होने से सूख रहे धान को बचाने, इंद्रदेव को खुश करने का टोटका है। क्षेत्र के राजा को पानी में डुबोने से बारिश होगी। राजा-रजवाड़े रहे नहीं, सो थानेदार को ही राजा मान टोटका किया।

6 अक्टूबर, उप्र का मऊ। थाना कोतवाली के बल्लीपुरा का बीमार युवक मनोज का परेशान होकर अंधविश्वास में धारदार हथियार से गला काटकर खुद अपनी बलि चढ़ाने का प्रयास। उसे गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचाया जाता है। क्या ऐसा कर वो ठीक हो गया?

असम के जनजातीय बहुल कार्बी आंगलांग में राष्ट्रीय स्तर की एथलीट देवजानी को डायन बता निर्ममता से पीटा गया। असम में ही बीते पांच सालों के दौरान कोई 90 मामले सामने आए, जिनमें डायन बता जलाया गया, गला काटा गया या प्रताड़ित किया गया।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के बीते साल के आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में 160 औरतें टोनही-डायन बताकर मारी गईं, जिनमें झारखण्ड की 54, ओडिशा की 24, तमिलनाडु की 16, आंध्रपदेश की 15, मप्र की 11 हैं। साल 2011- 2012 और 2013 के आंकड़ों में 519 महिलाओं की हत्या डायन-टोनही के नाम पर हुई।

‘रूरल लिटिगेशन एंड एंटाइटिलमेंट सेंटर’ नामक गैर-सरकारी संगठन के आंकड़ा के अनुसार, 15 वर्षो में विभिन्न राज्यों में 2500 से अधिक औरतें डायन-टोनही बता मारी जा चुकी हैं। मप्र के झाबुआ जिले में हर साल 10.15 महिलाओं की ‘डाकन’ बता हत्या हो जाती है, कमोवेश यही स्थिति झारखंड, ओडिशा, बिहार, बंगाल, असम के जनजातीय इलाकों की भी है। ऐसे मामले अदालत भी पहुंचे और शीघ्र निपटारों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की मांग तक उठी।

अकेले छत्तीसगढ़ में 10 वर्षों में 1,268 मामले सामने आए जिनमें 332 विभिन्न अदालतों में हैं। बड़ी सच्चाई, इसमें ज्यादातर पीड़ित महिलाएं ही हैं। ठेठ आदिम परंपराओं में जी रहे आदिवासियों के घोर अंधविश्वास का फायदा उठाकर चालाक लोग जमीन, पैसे, शराब, कुकृत्य के लिए ओझा-गुनिया, बाबा, तांत्रिक, झाड़फूंक करने वाले बनकर, ऐसी जघन्यता को अंजाम देते हैं। पढ़ा-लिखा, समझदार तबका भी शिकार होता है।

लगता नहीं, इसके पीछे जागरूकों की विचारशून्यता या अनदेखी मूल कारण है, और केवल कानून या सरकारी पहल से अंधविश्वास खत्म होने वाला नहीं। इसके लिए सबको सामूहिक-सामाजिक तौर पर खुलकर ईमानदार प्रयास करने होंगे। (आईएएनएस)

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व टिप्पणीकार हैं)

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