दिल्ली, 13 नवंबर (आईएएनएस)। भारतीयों में डायबिटिक रेटिनोपैथी निवारण योग्य दृष्टिहीनता (प्रीवेंटेवल ब्लाइंडनेस) का सबसे बड़ा कारण है।
भारत में डायबिटिज को अनियंत्रित बीमारी (6.5 करोड़ मामले) करार देते हुए चिकित्सकों ने कहा है कि अगर इसके नियंत्रण के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए, तो डायबिटिज से गंभीर तौर पर पीड़ित कम से कम 40 फीसदी लोग डायबिटिक रेटिनोपैथी का शिकार हो सकते हैं।
श्रेया डायबिटिज सेंटर में कंसल्टेंट रोशनी गाडगे ने कहा, “डायबिटिक रेटिनोपैथी डायबिटिज के मरीजों में होने वाला एक गंभीर रोग है। डायबिटिज के मरीजों में यह सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभरी है।”
डायबिटिक रेटिनोपैथी का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा, “इस बीमारी में रेटिना को रक्त की आपूर्ति करने वाली रक्त नलिकाएं नष्ट हो जाती हैं। परिणामस्वरूप इनमें से रक्त व अन्य द्रव्यों का रिसाव शुरू हो जाता है, जिसके कारण रेटिना के उत्तकों में सूजन आ जाती है और दृष्टि में धुंधलापन आ जाता है।”
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में प्रत्येक साल 50-60 लाख सर्जरी की जाती है, जिनमें से कम से कम 15 लाख सर्जरी डायबिटिक रेटिनोपैथी से संबंधित होती है।
एम्स में कम्युनिटी ऑप्थेल्मोलॉजी में अतिरिक्त प्रोफेसर प्रवीन वशिष्ट ने कहा कि दिल्ली में डायबिटिक रेटिनोपैथी के सही आंकड़ों की जांच के लिए एम्स ने 10 हजार लोगों की जांच की, जिनमें से 1,246 लोग डायबिटिक रेटिनोपैथी से पीड़ित पाए गए और वे आंशिक तौर पर लगभग दृष्टिहीन हो चुके थे।
वशिष्ट ने आईएएनएस से कहा, “हमने दिल्ली में खासकर झुग्गियों में 166 शिविरों का संचालन किया, जिस दौरान जांच में 550 लोगों को डायबिटिक रेटिनोपैथी से पीड़ित पाया गया, जिन्हें मुफ्त इलाज के लिए एम्स लाया गया।”
सफदरजंग अस्पताल के प्रदीप सिंह ने कहा कि डायबिटिज के प्रत्येक रोगी को डायबिटिक रेटिनोपैथी का खतरा नहीं है, बल्कि उन्हें मोतियाबिंद जैसी अन्य बीमारी का खतरा हो सकता है।
उन्होंने कहा, “लंबे समय से डायबिटिज से पीड़ित रोगियों के आंखों का लेंस खराब हो सकता है, जिसमें सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।”