नई दिल्ली, 3 दिसम्बर (आईएएनएस)। अगर आप किसी भारतीय विश्वविद्यालय का नाम दुनिया की शीर्ष रैकिंग में नहीं देखते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी अकादमिक योग्यता में कोई कमी है। बल्कि इसका कारण यह है कि हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों में शोधकार्य भारतीय भाषाओं में किए जाते हैं। ये बातें बुधवार को मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कही।
उन्होंने नई शिक्षा नीति पर आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में कहा, “हमारे शिक्षण संस्थानों के विश्व रैकिंग में नहीं आने को लेकर काफी बातें की जाती हैं। लेकिन इसका कारण उच्चस्तरीय शोध कार्य की कमी नहीं, बल्कि यह है कि विश्व रैंकिंग में केवल अंग्रेजी भाषा में किए गए शोध कार्यो को ही महत्व दिया जाता है जबकि हमारे यहां के शोध कार्य क्षेत्रीय भाषाओं में किए जाते हैं।”
लेकिन यह भी एक तथ्य है कि प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम्स की इस साल की 100 प्रमुख उच्च शिक्षा संस्थानों की सूची में हमारे गैरअंग्रेजी भाषी पड़ोसी देश चीन के दो विश्वविद्यालयों के नाम हैं जबकि भारत का एक भी नहीं।
ऐसे में मंत्री का यह बयान क्या वर्ल्ड रैकिंग में अपेक्षित सुधार की मांग करता है या फिर यह भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों के कमतर प्रदर्शन पर पर्दा डालने वाला बयान है? विशेषज्ञों की राय भी हालांकि इस पर बंटी हुई है।
इस बारे में टाइम्स की उच्च शिक्षा पर निकलने वाली पत्रिका के संपादक फिल बेटी ने आईएएनएस से कहा, “विश्व रैंकिंग से छात्रों को अपने भविष्य के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद मिलती है। साथ ही इससे विश्वविद्यालयों को अपने प्रदर्शन का आकलन करने और उसमें सुधार करने का भी मौका मिलता है।”
उन्होंने कहा, “हालांकि मैं इससे सहमत हूं कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के विश्वविद्यालयों की क्षमता को अलग संदर्भ में पहचानने की जरूरत है। इसलिए हमने ब्रिक्स देशों और विकासशील देशों के लिए एक अलग रैकिंग प्रणाली प्रकाशित की है।”
यह दीगर है भारतीय विश्वविद्यालय ब्रिक्स देशों और विकासशील देशों की इस रैंकिंग में भी जगह बनाने में नाकाम रहे हैं।
बेटी ने आगे कहा कि ब्रिक्स देशों और विकाशसील देशों की अलग रैंकिंग से इसका महत्व बिल्कुल कम नहीं होता, क्योंकि इसमें भी वही मानक इस्तेमाल किए गए हैं जो वैश्विक रेटिंग के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
उनके मुताबिक भारतीय विश्वविद्यालयों के रैंकिंग में पिछड़ने का मुख्य कारण यह है कि यहां निवेश की कमी है, बदलाव की राजनीतिक इच्छा नहीं है और अंतर्राष्ट्रीय गठजोड़ का अभाव है।
ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और विश्व मामलों के विशेषज्ञ श्रीराम चौलिया का कहना है कि विश्व रैंकिंग के तरीकों की आलोचना करने की बजाय हमें अपने उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता सुधारने और शोध को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
जिंदल स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड ह्यूमैनिटीज के संकायाध्यक्ष कैथलीन माडरोवस्की का कहना है कि अभी भारतीय विश्वविद्यालयों को विश्व रैंकिंग में जगह बनाने के लिए काफी कुछ करना है, लेकिन भारतीयों ने दुनिया में अपनी जगह बनाई है और एक निश्चित छाप छोड़ी है।
उनके मुताबिक हमारी शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए स्वतंत्र सोच को बढ़ावा देना होगा, लालफीताशाही को दूर करना होगा, शिक्षा प्रणाली को गतिशील बनाना होगा तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों के बीच समन्वय को बढ़ावा देना होगा, तभी हम उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया से कदमताल मिला पाएंगे।