एकान्त प्रिय चौहान
एकान्त प्रिय चौहान
रायपुर, 22 दिसंबर (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग के आदिवासियों का आवास प्राय: झोपड़ीनुमा होता है। इन आदिवासियों के रहन-सहन और पहनावा बहुत ही साधारण होता है। लेकिन इनके घरों के बाड़े बेशकीमती लकड़ियों से सजे होते हैं, जो इन्हें मौसम की मार, ठंड-बरसात और बर्फबारी में सुरक्षित रखते हैं।
आदिवासी इन बाड़ों पर गोबर, मिट्टी आदि लगाकार इन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखते हैं। आदिवासी की इन बाड़ी में इमारती प्रजाति की बेशकीमती लकड़ियां 6 से 8 फीट तक ऊंची होती हैं।
आदिवासी की इन बाड़ी की तस्वीरें वनमंडल माचकोट से लेकर कांगेर वैली नेशनल पार्क और आगे शबरी तट पर मिल जाएगी। इन बाड़ों की कतार बरसों बरस मौसम की मार झेलती हुई सड़ती भी है, पर इन्हें गोबर, मिट्टी आदि के लेप से लंबे समय तक सुरक्षित रख लेते हैं।
बस्तर पर्यटन समिति के अध्यक्ष डॉ. सतीश ने बताया कि बस्तर में इन बाड़ों से घिरे आदिवासी कुर्सी या पलंग भी कम ही रखते हैं। वहीं यदि इनके घर कोई मेहमान पहुंच जाए तो उनके लिए कपड़ा आदि बिछा दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि लकड़ी के गोलों के बाड़ा के बीच घर के सदस्य, पालतू मवेशी, खलिहान, कोठी ढेंकी, बागवानी सभी सुरक्षित रहते हैं। सुरक्षा के लिए न्यूनतम व्यय के संसाधन जुटाने की शैली अब घने वन वाले इलाकों में ही बचे रह गए हैं। आज तो सीधे ऊंचे खड़े पेड़ और खेती के लिए कब्जा कर वनभूमि तक का पट्टा काटा जाता है। ऐसा वन मंडल कोंडागांव में देखा जा सकता है।
डॉ. सतीश ने बताया, “मैं अपनी शुरुवाती बात का समर्थन उस मिसाल से करना चाहता हूं जो दक्षिण पूर्व छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर की बस्ती कोंटा जेएमएफसी कोर्ट के जज महेंद्र राठौर के सामने आया था। गोलापल्ली रेंज के कुछ आदिवासियों के खिलाफ वनभूमि पर बेजा कब्जे का अभियोग-पत्र पेश किया गया।”
उन्होंने कहा कि आदिवासी न्याय चाहते थे जो जमानत आदेश के साथ मिल गई। जमानतदार ने जो ऋण पुस्तिका पेश की थी, उसमें विभिन्न प्रजाति के करीब 500 पेड़ों का मालिकाना हक दर्ज है। इसमें भी ज्यादातर सागौन के पेड़ों को जिक्र था। जिसमें सागौन था, उसी का जिक्र हम करते ही आ रहे हैं।
डॉ. सतीश ने कहा कि ये आदिवासी जिंदगी भले ही मुफलिसी की जीते हैं, लेकिन इनके घर के बाड़े लाखों के होते हैं।