मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक ने नए बैंकिंग लाइसेंसों के लिए नियमों को कड़ा कर दिया हालांकि इसके साथ ही बैंक खोलने की इच्छुक कंपनियों के लिए सैद्धान्तिक मंजूरी की वैधता की अवधि को एक साल से बढ़ाकर 18 महीने करने की घोषणा की।
रिजर्व बैंक ने नए बैंक लाइसेंसों संबंधी नियमों के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि सभी पात्र आवेदकों को बैंकिंग लाइसेंस देना संभव नहीं होगा। केंद्रीय बैंक ने स्पष्ट किया है कि वह सिर्फ ऊंची गुणवत्ता वाले आवेदनों को ही बैंक लाइसेंस जारी करेगा। रिजर्व बैंक के इस बयान से बैंकिंग क्षेत्र में उतरने की इच्छा रखने वाली कंपनियों की राह कठिन हो गई है।
रिजर्व बैंक ने कहा कि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) और बीमा क्षेत्र की कंपनियों को इस मामले में आगे बढ़ने के लिए अपने-अपने क्षेत्र के नियामकों मसलन सेबी और इरडा की मंजूरी लेनी होगी और प्रस्तावित गैर परिचालन वाली वित्तीय होल्डिंग कंपनी (एनओएफएचसी) पर उनके विचार को रिजर्व बैंक के विचार से ऊपर माना जाएगा। बैंक लाइसेंस पाने के लिए यह सबसे जरूरी और महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
रिजर्व बैंक ने 34 इकाइयों द्वारा पूछे गए 443 सवालों के जवाब में जारी सकरुलर में कहा, ‘सैद्धान्तिक मंजूरी की वैधता की अवधि को एक साल से बढ़ाकर 18 महीने करने का फैसला किया गया है। इससे प्रवर्तकों और प्रवर्तक समूहों को 22 फरवरी को जारी दिशानिर्देशों को पूरा करने के लिए अधिक समय मिल सकेगा।’
एनओएफएचसी में होल्डिंग और पूंजी ढांचे के बारे में रिजर्व बैंक ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि किसी व्यक्ति और उससे संबंधित पक्षों के पास होल्डिंग कंपनी में हिस्सेदारी हो। हालांकि यदि प्रवर्तक कंपनी से संबंधित कोई व्यक्ति एनओएफएचसी का प्रवर्तक बनना चाहता है तो वह एनओएफएचसी के कुल 10 प्रतिशत वोटिंग इक्विटी शेयर में से सिर्फ 49 प्रतिशत वोटिंग इक्विटी शेयर रख सकता है।