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 कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पियूष बबेले की किताब,कांग्रेस और राष्ट्रनिर्माण की गाथा के प्रकाशन से राजनैतिक हलकों में मचा बवाल | dharmpath.com

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कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पियूष बबेले की किताब,कांग्रेस और राष्ट्रनिर्माण की गाथा के प्रकाशन से राजनैतिक हलकों में मचा बवाल

January 15, 2023 9:26 am by: Category: फीचर Comments Off on कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पियूष बबेले की किताब,कांग्रेस और राष्ट्रनिर्माण की गाथा के प्रकाशन से राजनैतिक हलकों में मचा बवाल A+ / A-

पत्रकार पियूष बबेले जो आज मप्र में कांग्रेस के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के मीडिया सलाहकार हैं की लिखी हुई किताब “कांग्रेस एवं राष्ट्रनिर्माण की गाथा ने राजनैतिक हलकों में हलचल मचा रखी है,भाजपा जहाँ निरुत्तर हो बौखलाई हुई है वहीँ जनता सच्चाई पर चर्चा करती नजर आती है,हमने कई पत्रकारों से बात की तब उन्होंने कहा यह सच्चाई पहले से जाहिर है बस पियूष जी ने इसे एक मंच दे तथ्यात्मक रूप से जनता के सामने ला दिया है.

वे लिखते हैं,आरएसएस की स्थापना सन 1925 में दशहरे के दिन हुयी,लेकिन आरएसएस स्थापना दिवस से 15 अगस्त 1947 तक ऐसा कोई साक्ष्य नहीं पैराकार दे पायी की उसने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कोई हिस्सेदारी की ,पियूष बबेले की पहचान एक बेहतरीन पत्रकार के रूप में है,आज वे मप्र में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के मीडिया सलाहकार हैं,पियूष की इस किताब ने जो सच्चाई बताई है ने राजनीतिक हलकों में बेचैनी बढ़ा दी है,भाजपा और संघ के झूठे दावों की पोल खोलती इस तथ्यात्मक पुस्तक ने राजनैतिक हलकों में भाजपा खेमे में खलबली मचा रखी है,भाजपा के दिग्गज प्रवक्ता इस पुस्तक में साझा की गयी जानकारी के विरोध में कुछ कहने से बच रहे हैं वहीँ पियूष बबेले कहते हैं उन्होंने वही लिखा है जो इतिहास है और इसे नकारा नहीं जा सकता है.

पियूष लिखते हैं आरएसएस हेडगेवार की गिरफ्तारी का जो साक्ष्य प्रस्तुत करती है वह 1920 के असहयोग आंदोलन का है वे उस आंदोलन में एक कांग्रेस नेता कीहैसियत से जेल गए थे न की आरएसएस कार्यकर्ता की,तब आरएसएस का कोई अस्तित्व ही नहीं था,हाँ इस बात के प्रमाण अवश्य हैं की आरएसएस ने सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से स्वयं को अलग रखा था.

सावरकर को ले वे कहते हैं,सावरकर पहले देशभक्त थे और अंग्रेजों से लड़ रहे थे काले-पानी की सजा होते ही उन्होंने अंग्रेजों से बार-बार माफ़ी मांगी अपनी रिहाई के लिए,इस बीच उन्हें हिंदुत्व नामक किताब लिखने की छूट दी गयी जिसके 1923 में प्रकाशन के बाद सामने आया की इसमें उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का विरोध किया।

पियूष लिखते हैं जिन्ना की तरह सावरकर भी हिन्दू और मुसलामानों को अलग राष्ट्र मानते थे सं 1942 में जिन्ना ने पाकिस्तान और सावरकर ने हिन्दू राष्ट्र की मांग की थी ,तब भारत छोड़ो आंदोलन में कांग्रेस के बड़े नेता जेल में थे.

पियूष आगे लिखते हैं,हिन्दू दक्षिणपंथ के बड़े नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे जिन्होंने जनसंघ की स्थापना की थी ,यहीं से भाजपा का उदय हुआ,भारत छोड़ो आंदोलन के समय सावरकर की हिन्दू महासभा ने आंदोलन का विरोध करने और अंग्रेज सरकार के समर्थन का फैसला किया,ठीक इसी समय मुखर्जी बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार में उप-मुख्यमंत्री थे,उन्होंने अंग्रेज सरकार को पत्र लिखकर भारत छोड़ो आंदोलन को सख्ती से कुचलने का पत्र लिखा।

इस किताब के प्रकाशित होते ही राजनैतिक सरगर्मियां बढ़ गयीं एवं आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया,भाजपा जहाँ बैक-फुट पर नजर आयी वहीँ उसके प्रवक्ता इस पर जवाब देने से बचते रहे.

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