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भारतीय विचारों का शंघाई सम्मेलन में समावेश

शंघाई सम्मेलन में भारत की भूमिका सर्वाधिक प्रभावी साबित हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षेत्रीय महत्व के जो मुद्दे उठाए, उन्हें साझा विचारों के रूप में स्वीकार किया गया। इन विचारों से शंघाई सहयोग संघठन को नया रूप मिला है, क्योंकि इन विचारों का महत्व केवल इन देशों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इनके विश्व के लिए महत्व है।

शंघाई सम्मेलन में भारत की भूमिका सर्वाधिक प्रभावी साबित हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षेत्रीय महत्व के जो मुद्दे उठाए, उन्हें साझा विचारों के रूप में स्वीकार किया गया। इन विचारों से शंघाई सहयोग संघठन को नया रूप मिला है, क्योंकि इन विचारों का महत्व केवल इन देशों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इनके विश्व के लिए महत्व है।

नरेंद्र मोदी क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन में भी द्विपक्षीय सहयोग का अवसर निकाल लेते हैं। शंघाई सहयोग संघठन के शिखर सम्मेलन में शामिल होने वह चीन गए थे। यहां चीन के साथ द्विपक्षीय समझौते भी हुए। यह उम्मीद करनी चाहिए कि डोकलाम विवाद से बने तनाव इस समझौते के बाद पूरी तरह सामान्य हो जाएंगे।

इसी प्रकार यहां रूस के राष्ट्रपति पुतिन से भी मोदी की उपयोगी वार्ता हुई। दोनों देशों के बीच कुछ दिन पहले रक्षा संबंधी समझौते हुए हैं। इसकी प्रगति की समीक्षा भी यहां की गई। भारत ने इस मसले पर ²ढ़ता दिखाई है। अमेरिका चाहता था कि रूस के साथ भारत यह समझौता न करे। लेकिन नरेंद्र मोदी ने साफ कर दिया कि देश की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसके साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा।

शंघाई संगठन में मध्य एशिया के जो देश शामिल हैं, उनके साथ कई वर्ष पहले ही मोदी ने सहयोगपूर्ण संबंध कायम किए थे। सम्मेलन में उनकी भी समीक्षा की गई। उनके साथ भारत के सहयोग को आगे बढ़ाने पर सहमति बनी है। भारत पहली बार स्थायी सदस्य के रूप में शामिल हुए। लेकिन वह पहली बार में ही वैचारिक रूप से इतनी प्रभावी भूमिका का निर्वाह करेगा, इसका अनुमान किसी को नहीं था।

मोदी ने रविवार को शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में ‘सिक्योर’ का मंत्र दिया। इसमें सुरक्षा, आर्थिक विकास, कनेक्टिविटी, एकता, अखंडता और संप्रभुता को शामिल किया गया। इसके अलावा आतंकवाद के खिलाफ साझा रणनीति बनाने का विचार शामिल है।

अफगानिस्तान की अशांत स्थिति के माध्यम से नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद से होने वाले नुकसान को सामने रखा। इस माध्यम से पाकिस्तान और चीन दोनों को कठघरे में पहुंचाया। पाकिस्तान भी पहली बार शंघाई संघठन का सदस्य बना है।

अफगानिस्तान में पाकिस्तान आतंकी सगठनों को सहायता देता है। चीन के समर्थन से पाकिस्तान का मनोबल बढ़ता है। जो सहयोग, शांति और सड़क मार्ग से सम्पर्क बनाने के कार्य में बाधक होती है। इसीलिए मोदी ने कहा कि शांति की दिशा में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी द्वारा उठाए गए कदमों का क्षेत्र में हर कोई सम्मान करे। नाम लिए बिना मोदी ने पाकिस्तान पर निशाना साधा।

स्थिति शांतिपूर्ण होगी तो सभी देशों के बीच पर्यटन बढ़ेगा। साझा संस्कृतियों के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए। भारत इसकी पहल करेगा। यहां शंघाई संगठन फूड फेस्टिवल और एक बौद्ध फेस्टिवल का आयोजन किया जाएगा। भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी की क्षेत्र में भी भारत सहयोग बढ़ाएगा।

इसके पहले नरेंद्र मोदी ने चीन के किंगदाओ शहर में राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात की। दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय और वैश्विक मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई। इसमें वुहान में लिए गए फैसलों के क्रियान्वयन की समीक्षा की गई। दोनों देशों के बीच ब्रह्मपुत्र नदी से संबंधित हाइड्रोलॉजिकल सूचनाओं को साझा करने पर एक समझौता ज्ञापन का आदान-प्रदान हुआ है।

भारत से बासमती के अलावा दूसरी तरह के चावल के भी निर्यात की आवश्यकताओं की व्यवस्था में बदलाव से जुड़े करार पर भी हस्ताक्षर हुए हैं।

शंघाई सहयोग संघठन की स्थापना 2001 में हुई थी। इसका उद्देश्य सीमा विवादों का हल, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ाना और मध्य एशिया में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को रोकना रहा है।

मध्यपूर्व के चारों देशों का सामरिक और प्राकृतिक संसाधनों की ²ष्टि से बहुत महत्व है। चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान इसके सदस्य है। अफगानिस्तान, इरान, मंगोलिया और बेलारूस पर्यवेक्षक हैं।

विश्व की करीब बयालीस फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही दुनिया की कुल जीडीपी में इन देशों का योगदान बीस प्रतिशत और दुनिया के कुल भू-भाग का बाइस फीसद हिस्सा है। शंघाई सहयोग का यह सम्मेलन भारत द्वारा पेश किए गए मुद्दों पर साझा सहमति के साथ समाप्त हुआ। इससे सम्मेलन की सार्थकता बढ़ी है।

साझा घोषणा में सभी देशों के युवकों से आतंकवाद के झांसे में न आने का आह्वान किया गया। इसके लिए सदस्य देश आध्यात्मिक एयर नैतिक शिक्षा शुरू करेंगे। यह सुझाव भारत ने दिया था, जिस पर सहमति बनी। भारत ने सहयोग और संपर्क बढ़ाने का सुझाव अवश्य दिया, लेकिन संप्रभुता के सम्मान का मुद्दा भी उठाया। यही कारण था कि भारत ने चीन की वन बेल्ट वन रूट परियोजना का विरोध किया है।

इतना तय है, इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ साझा प्रयास नहीं किए गए तो सहयोग और कनेक्टिविटी बढ़ाने की कवायद बेमानी साबित होगी। (आईएएनएस/आईपीएन) (ये लेखक के निजी विचार हैं)

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