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मध्यप्रदेश में चुनावी घमासान,सेवक और महाराज आमने सामने दोनो के अपने-अपने दावे,आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी जन आर्शीवाद,सत्ता परिवर्तन रैली में रख रहे बात

shivraj singh chouhan7515_7डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव-चुनावी बिगुल फूंक चुका है और आचार संहिता जारी होने में ज्यादा दिन शेष नहीं बतलाये जाते हैं। राजनैतिक दलों के सेनापति अपनी सेनाओं को तराशने संबारने में लगे हुये देखे जा सकते हैं । वाक्य युद्ध प्रारंभ हो चुका है जिसके तहत जहां जनता के मध्य अपने-अपने दावे किये जा रहे हैं तो वहीं आरोप प्रत्यारोपों का सिलसिला भी प्रारंभ हो चुका है। अपनी-अपनी जीत के दावे करने वाले नेताओं की तो मानो बाढ आ गयी हो। मध्यप्रदेश के इतिहास पर नजर डालें तो अधिकांश समय कांग्रेस ने यहां सत्ता सुख भोगा है यह प्रथम बार है जब भारतीय जनता पार्टी के रूप में गैर कांग्रेसी सरकार ने एक नहीं दूसरी बार भी सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की हो। वह तीसरी बार सत्ता में वापिसी के लिये तैयार है और इसके लिये उसकी तैयारी बीते लगभग दो बर्षों से चल रही है। वहीं उसका मुख्य प्रतिद्वन्दी दल कांग्रेस जो कि लगभग 10 बर्षों से वनवास भोग रही है अपनी पूरी रणनीति के साथ मैदान में आ चुकी है। प्रदेश में देखा जाये तो दो दलों के साथ ही दो चर्चित चेहरों के मध्य चुनाव का केन्द्र बन चुका है। एक वह हैं जो जनता को भगवान,प्रदेश को मंदिर एवं स्वयं को पुजारी मान प्रदेश में मुख्यमंत्री का दायित्व निभा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर हाल ही मैं चुनाव समीति की कमान कांग्रेस की ओर प्रदेश में संभालने वाले महाराजा यानि ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं । भारतीय जनता पार्टी ने अपनी विशेष रणनीति के तहत कार्य करना प्रारंभ किया है और उसकी कमान संभालने वालों पर नजर डालें तो अनिल माधव दवे,अरविंद मैनन,नरेन्द्र सिंह तौमर सहित प्रभात झा तो कार्य कर ही रहे हैं और इनके साथ ही अब सुश्री उमा भारती प्रदेश में प्रचार की कमान संभालने से संबधित मिलने वाले संकेतों से महाराज को चारों ओर से घेरने की रणनीति पर कार्य प्रारंभ हो चुका है। वहीं देखा जाये तो कांग्रेस ने देर से सही परन्तु ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे चेहरे को चुनाव प्रचार समीति की कमान थमा कर विधान सभा चुनाव को रोचक और एक दूसरे को टक्कर देने वाला बना दिया है। वहीं दूसरी ओर नजर डालें तो कुछ क्षेत्रीय दल समीकरण बनाने बिगाडने को आतुर दिखलायी दे रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी,समाजवादी पार्टी एवं गोडवाना गणतंत्र पार्टी सहित भारतीय किसान संघ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कक्का जी इनमें प्रमुख रूप से माने जा सकते हैं। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जब तक कांग्रेस ने प्रदेश में अपनी सक्रियता दिखलाने का कार्य प्रारंभ किया एवं प्रचार प्रारंभ किया तब तक भारतीय जनता पार्टी उससे कई गुना आगे निकल चुकी थी। देखा जाये प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के अधिकांश क्षेत्र में या तो वह जन आर्शीवाद यात्रा के माध्यम से और या तो उडनखटोला से कई बार जनता के मध्य जा चुके हैं। जबकि मतदान के लिये अभी लगभग दो माह बतलाये जाते हैं। इसी क्रम में भारतीय जनता पार्टी के प्रधान मंत्री पद के लिये घोषित उम्मीदवार एवं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की एैतीहासिक सभा में उमडी लाखों की भीड वह भी प्रदेश भर के कार्यकर्ताओं की ने जहां भाजपा में जोश भरने का कार्य कर दिया है तो वहीं कांग्रेस के नेताओं की नींदे तो उडाने कार्य कर ही दिया। नमो ने जिस अंदाज में केन्द्र सरकार को ललकारा और कार्यकर्ताओं में संकल्प शक्ति का संचार किया उसको देखकर तो माहौल का अंदाजा कोई भी लगा सकता है।वहीं कांग्रेस द्वारा सत्ता परिवर्तन के शंखनाद के साथ ही प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में रेलियां कर हम साथ-साथ हैं के संकेत नेताओं को एक मंच पर लाकर देने का प्रयास प्रारंभ कर दिया है। जिनमें ज्योतिरादित्य के साथ केंद्रीय मंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया, पूर्व अध्यक्ष सुरेश पचौरी, सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी के नाम बतलाये जाते है। राजनीति के जानकारों की माने तो सब नेता अपने-अपने क्षेत्र तक ही सीमित बतलाये जाते हैं। विदित हो कि प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री एवं कांग्रेस के राष्टीय महासचिव दिग्विजय सिंह राजगढ़ से लेकर मध्यभारत ,केन्द्रीय मंत्री एवं छिंदवाडा सांसद कमलनाथ महाकौशल तो वहीं सत्यव्रत चतुर्वेदी बुंदेलखंड के कुछ जिलों तक सीमित बतलाये जाते हैं। जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को ग्वालियर चंबल तथा मालवा क्षेत्र का नेता माना जाता है इसी क्रम में प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया को झाबुआ के आदिवासी क्षेत्र तो नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल अपने पिताजी की रीवा बघेलखंड में दबदबा रखते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को देखने ओर सुनने के लिये भी भारी भीड एकत्रित होते देखी गयी । देखा जाये तो  कांग्रेस ने एकता सम्मेलन कर प्रतिद्ववन्दीयों  के द्वारा लगाये जा रहे आरोपों की हवा निकाल दी है। ज्ञात हो कि भोपाल में धमाकेदार अपनी उपस्थिति दर्ज करा सिंधिया ने प्रदेश के ही नसरूल्लागंज, मंडला, बालाघाट और मुरैना में जमकर हम साथ-साथ हैं दिखलाने का प्रयास किया है। जिससे कुछ ईलाकों में हवा का रूख कुछ हद तक तो मुडा देखा जा सकता है। यह नेता कितना फायदा कांग्रेस को पहुंचा पाते हैं इसको लेकर अटकलों का बाजार गर्म हैं। क्योंकि यह सभी प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिये अपने आपको उम्मीदवार मानते हैं और इसी आशा के साथ वह लगातार कार्य भी करने में लगे हुये थे? वहीं कांगे्रस के नेताओं को घेरने के लिये भाजपा ने कार्य प्रारंभ कर दिया है। सूत्रों की माने तो प्रभात झा एवं जयभान सिंह पवैया को इसकी जबाबदारी दी जा रही है जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के पीछे ही यशोधरा राजे सिंधिया को सभा कराने की तैयारी भी चल रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के द्वारा प्रदेश सरकार को घेरने की तैयारी का जबाब केन्द्र सरकार की विफलताओं एवं देश के भारी भ्रष्टाचार के मामलों को उठाकर उनका जबाब मांगने का है। आप देखेंगे कि भोपाल में कार्यकर्ता महाकुंभ के दौरान शिवराज ने केन्द्र के भ्रष्टाचार की एबीसीडी को पढकर इसकी शुरूआत तो कर ही दी। वैसे प्रदेश के अनेक क्षेत्रों से आने वाले संकेतो पर नजर डालें तो शिवराज सिंह चौहान के प्रति जनता में किसी भी प्रकार की नाराजगी नहीं दिखलायी देती है। हां यह बात अलग है कि प्रदेश के ही लगभग 6 दर्जन विधायक एवं 12-13 मंत्रियों के विरूद्ध जनता में आक्रोश है जिसका असर चुनाव में पडने की आशंका है। जिसको देखते हुये भाजपा के रणनीतिकारों ने इनको बदलने का मन पूर्व में ही बना लिया है। जबकि शिवराज अपनी सभाओं में कमल के फूल को विजयी बनाने का संकल्प दिला रहे हैं वह प्रत्यासी नहीं पार्टी की बात कर माहौल को पहिले से ही मोडने की दिशा में लग गये हैं। जिसका परिणाम सकारात्मक आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि नरेन्द्र मोदी एवं शिवराज सिंह दोनो तथा कमल मतदाताओं के मन में काफी हद तक उतर चुका है। रही बात कांग्रेस की तो मिस्टर बंटाधार के समय के एवं और वर्तमान केन्द्र के भ्रष्टाचारों को जनता के बीच जमकर प्रस्तुत करने से वह आक्रामक की जगह अनेक अवसरों पर बचाव की मुद्रा में आते हुये आरोपों की झडी लगायेगी और कुछ न  कुछ मुंह से निकलेगा जिसको भाजपा फिर हथियार बनायेगी। वैसे टिकिट की मारामारी भी कांग्रेस में एक बडी समस्या पैदा करेगी क्योंकि अनेक नेता जीतते जीतते हारे थे जबकि महिला एवं युवक कांग्रेस लगभग पांच दर्जन से अधिक सीटों पर अपना दावा प्रस्तुत कर रहे हैं जबकि अनेक दिग्गजों के लिये क्षेत्रों की तलाश जारी होने से आंतरिक कलह और बगावत से इंकार नहीं किया जा सकता है।

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