भोपाल में पिछले पखवाड़े में दो वीभत्स खुलासे हुए विकलांगों से व्यभिचार.इन दुष्कर्म के मामलों ने भले ही अख़बारों में सनसनी फैलाई हो लेकिन सत्ता-पक्ष की सुशासन की पोल खुल गयी .गौरमतलब यह है की ये दोनों संस्थान सरकारी मदद से चलते थे और खूब कृपा प्रशासन की पाते थे.
भोपाल में संचालित साईं विकलांग आश्रम की युवतियों से बलात्कार एवं युवकों से अप्राकृतिक कृत्य आश्रम संचालक कर रहा था.इसके पूर्व मूक-बधिर छात्राओं से यौनाचार की खबर मप्र की सत्ता के गलियारों में फैली सडान्ध को अख़बारों के माध्यम से मप्र की फिजा में फैला गयीं एवं मप्र के सुशासन को बदबू से आच्छादित कर गयीं.मप्र का सामाजिक न्याय विभाग इस कटघरे में खड़ा है उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार के कीड़े इस परले दर्जे तक हैवानियत में मशगूल होंगे जनमानस को उम्मीद नहीं थी.इस मामले के उजागर होने के पूर्व दिव्यांगों ने विभाग के दफ्तर के सामने प्रदर्शन किया था किन्तु नाकारा सिस्टम ने इसे दबाने का प्रयास किया.
इन सभी संचालकों के सम्बन्ध अधिकारीयों एवं सत्ता-पक्ष के राजनेताओं से करीबी निकले.सीधा मतलब है कि पैसों की बन्दरबाँट में इनका हिस्सा एवं संरक्षण साबित हुआ है.बिना कमीशन ये हॉस्टल चल नहीं पाते और न ही इन्हें खोलने की अनुमति मिलती है.मप्र के मुख्यमंत्री सुशासन पर अपना सीना चौड़ा करते देखे जा सकते हैं लेकिन इस हैवानियत पर इस चुनावी मौसम में वे अनजान से बने रहे या दिखने का प्रयास करते रहे.मप्र खासकर भोपाल में कई तरह के होस्टल हैं उन सभी को संचालित करने के लिए नियमवाली भी है किन्तु भ्रष्ट व्यवस्था ने अपनी ऑंखें बंद कर रखी हैं .
ये हॉस्टल सेवा के स्थान पर धन कमाने एवं बांटने की मशीन बन जाते हैं.नैतिक विचार की सरकार के सुशासन में ऐसी वीभत्स घटना सोचने पर मजबूर कर देती है कि आखिर हम जा कहाँ रहे.सरकारी अधिकारीयों की मोटी तनख्वाहें उन्हें रावण बनने में सहायक सिद्ध होती हैं.
इस प्रकरण में अकेले वे संचालक या दुष्कर्मी ही दोषी नहीं हैं अपितु वे अधिकारी,राजनेता एवं स्वयं सत्ता के मुखिया दोषी हैं जो जनता के धन पर सभी अय्याशियाँ करते हैं एवं व्यभिचार को प्रश्रय देते हैं.
इस मामले के सामने आने के बाद विपक्ष ने हंगामा खडा किया तब असलियत सामने आई किन्तु अभी भी अधिकारी मामले की लीपापोती में जुटे हुए हैं .चुपके से पीड़ित बच्चियों को दूसरे आश्रय स्थलों में भेज दिया गया जिसकी खबर न सम्बंधित थाने को दी गयी और न ही अधिकारीयों ने न्यायालय से कोई अनुमति ली.सुशासन का दावा करने वाले प्रदेश में अधिकारीयों की यह अमानवीय कोशिश प्रदेश की स्थिति बयान कर रही है.और भी विकट स्थिति यह रही की इस मामले में मलाई काटने वाले अधिकारीयों पर कोई कार्यवाही नहीं हुयी.
ये वही अधिकारी हैं जिनके जिम्मे हॉस्टल की सुचारू व्यवस्था की जिम्मेदारी रहती है जो हॉस्टल की व्यवस्थाओं की जानकारी समय-समय पर लेते रहते हैं लेकिन साफ़ है भ्रष्टाचार करते हुए इन अधिकारीयों ने ऐसा नहीं किया अब ये मामले की लीपा-पोती में लगे हुए हैं.
सुशासन का दावा करने वाली सरकार के दावों की इस घटना ने पोल खोल दी है.
अनिल कुमार सिंह (धर्मपथ के लिए)