प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा पर घरेलू राजनीति में भले ही कई लोग तंज कसते हैं, लेकिन वैश्विक सम्मेलनों में मोदी जिस प्रभावी ढंग से नई दिशा देने का प्रयास करते हैं, उस पर भारत गर्व कर सकता है। पेरिस में हुए विश्व जलवायु शिखर सम्मेलन को इसकी बानगी के तौर पर देखा जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा पर घरेलू राजनीति में भले ही कई लोग तंज कसते हैं, लेकिन वैश्विक सम्मेलनों में मोदी जिस प्रभावी ढंग से नई दिशा देने का प्रयास करते हैं, उस पर भारत गर्व कर सकता है। पेरिस में हुए विश्व जलवायु शिखर सम्मेलन को इसकी बानगी के तौर पर देखा जा सकता है।
पिछले कई वर्षो से ग्लोबल वार्मिग पर विश्व स्तर पर चिंता व्यक्त की जा रही है। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम रोकने पर मंथन चलता रहा है। पहले भी कई शिखर सम्मेलन हुए, लेकिन वे औपचारिक व तकनीकी सुझावों-प्रयासों तक सीमित रहे। विकसित देशों का दबंग रूप दिखाई देता था। वह आर्थिक नुकसान से बचना चाहते थे। इसलिए कार्बन उत्सर्जन कम करने के कारगर कदम उठाना मुश्किल था। प्रत्येक सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन कम करने, उसके लिए आर्थिक सहायता देने आदि पर विचार होता था।
इसके विपरीत पेरिस सम्मेलन नई ऊर्जा के साथ शुरू हुआ, यह सम्मेलन परंपरा से हटकर अधिक सार्थक साबित हुआ। इसका श्रेय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया गया। यदि मोदी के विचारों को हटा दें, तो सम्मेलन लकीर पीटने की भांति साबित होता।
ऐसा नहीं था कि मोदी पेरिस गए और वहां भाषण दिया और पर्यावरण संतुलन-संरक्षण पर भारत की जिम्मेदारी पूरी हो गई। वस्तुत: मोदी ने पेरिस शिखर सम्मेलन के मद्देनजर कई महीने पहले से तैयारी शुरू कर दी थी। इसमें भारत के हितों के साथ विश्व और मानवता की भलाई का विचार समाहित था। यह बात तो सभी जानते हैं विकास के अत्यधिक भोगवादी नजरिए ने प्रकृति को कुपित किया है।
जलवायु देश की सीमा भी नहीं मानती, यानी विकसित देशों में जब अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन होता है, तो इसका कुप्रभाव पूरे विश्व को भुगतना होता है। विकसित देश अपनी धुन में हैं। वह इस बात को गंभीरता से समझना नहीं चाहते। ऐसा नहीं कि इस सामान्य तथ्य से वह बेखबर हैं, लेकिन मानवता की जगह वह केवल अपने देश के बारे में सोचते हैं।
उन्हें लगता है कि ग्लोबल वार्मिग होगी, तो बिजली के बल पर अपने आवासों को ठंडा रख सकेंगे, बर्फ पड़ेगी तो गर्म रखने के इंतजाम कर लेंगे। यह विचार अंतत: समस्या को लगातार बढ़ा रहा है, क्योंकि इसके लिए जीवाष्म ऊर्जा का सहारा लिया जाता है।
सम्मेलन में नरेंद्र मोदी ने बड़ी शिद्दत से विश्व और मानवता की बात रखी। जलवायु शिखर सम्मेलन में पहली बार सौर ऊर्जा की इतनी व्यापक योजना पेश की गई। शिखर सम्मेलन में मोदी के द्वारा रखा गया यह विचार सर्वाधिक प्रभावी अध्याय के रूप में शामिल हुआ।
मोदी ने विश्व सम्मेलन में वस्तुत: अपने उन प्रयोगों को साझा किया, जिस पर वह स्वयं अमल करते रहे हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हांेने सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया था। इसके संयंत्र स्थापित किए गए थे। लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने सौर ऊर्जा को मुद्दा बनाया था। उनकी सरकार ने इस दिशा में प्रयास भी शुरू किए। कई प्रदेशों ने केंद्र के साथ मिलकर सौर ऊर्जा की दिशा में बड़ी योजनाओं पर काम भी शुरू किया है।
पेरिस में मोदी ने प्रस्ताव किया कि उष्ण कटिबंध में कर्क और मकर रेखा के बीच में सौ से अधिक देश हैं। यहां सूर्य का प्रकाश अधिक मात्रा में उपलब्ध रहता है, लेकिन किसी भी देश में सौर ऊर्जा की दिशा में कारगर प्रयास नहीं किए गए। अब तक केवल खानापूर्ति की जा रही थी। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए सौ अरब डॉलर के वित्त पोषण की योजना बनाई गई थी।
विकसित देशों की ओर से कहा गया कि वित्त पोषण की योजना में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, लेकिन भारत इस विषय को लेकर भी गंभीर था। कुछ समय पहले लीमा में विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की बैठक में भारत ने यह मुद्दा उठाया था। तब पता चला कि प्रगति के दावे वास्तविकता पर आधारित नहीं है।
इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि नरेंद्र मोदी सम्मेलनों में औपचारिकता के निर्वाह तक सीमित नहीं रहते। वह ठोस प्रगति पर विश्वास रखते हैं।
वैश्विक मंच पर विकसित देशों को इतने तीखे शब्दों में पहले कभी नसीहत नहीं मिली थी। मोदी ने जिस प्रकार विकसित देशों को नसीहत और चेतावनी दी, उससे सभी हतप्रभ थे। लेकिन ये बातें तथ्यों पर आधारित थीं, इसलिए कोई भी विकसित देश उसका विरोध नहीं कर सका।
भारत जिस प्रकार पर्यावरण संरक्षण व विश्व जलवायु सम्मेलन को सार्थक बनाने की तैयारी कर रहा था, उसकी भनक अमेरिकी विदेश मंत्री जानकैरी को थी। इसीलिए सम्मेलन प्रारंभ होने से पहले जान कैरी ने कहा था कि भारत की ओर से मुश्किल आ सकती है। वह जानते थे कि नरेंद्र मोदी का जलवायु संरक्षण के संबंध में स्पष्ट नजरिया है।
अब तक के सम्मेलनों में जो होता रहा है, उसे मोदी स्वीकार नहीं कर सकते। मोदी ने साफ कहा कि आज कार्बन उत्सर्जन की जो दशा है, उसके लिए विकसित देश दोषी हैं। ऐसे में पहले उन्हें सुधरना होगा।
जाहिर है कि पेरिस शिखर सम्मेलन में दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दे उभरे- एक विकसित देशों को सुधरने की चेतावनी, दूसरा सौर ऊर्जा देशों का गठबंधन। मोदी के इन सुझावों से पर्यावरण की समस्या के साथ ऊर्जा की कमी का भी बेहतर समाधान हो सकेगा। (आईएएनएस/आईपीएन)