झांसी, 16 जनवरी (आईएएनएस)। बुंदेलखंड सूखे से जूझ रहा है, खेतों में फसल नहीं है, इंसान के लिए दाना और जानवरों के लिए चारा मुसीबत बन गया है, सबसे बुराहाल गाय का है। इंसान तो पलायन कर रोटी का जुगाड़ कर ले रहा है, मगर खुले में छोड़ी जा रही गाय के कत्लगाह (स्लाटर हाउस) तक पहुंचकर ‘बीफ के कारोबार’ का हिस्सा बनने का खतरा बढ़ गया है।
झांसी, 16 जनवरी (आईएएनएस)। बुंदेलखंड सूखे से जूझ रहा है, खेतों में फसल नहीं है, इंसान के लिए दाना और जानवरों के लिए चारा मुसीबत बन गया है, सबसे बुराहाल गाय का है। इंसान तो पलायन कर रोटी का जुगाड़ कर ले रहा है, मगर खुले में छोड़ी जा रही गाय के कत्लगाह (स्लाटर हाउस) तक पहुंचकर ‘बीफ के कारोबार’ का हिस्सा बनने का खतरा बढ़ गया है।
बुंदेलखंड दो राज्यों- उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैला हुआ है। इसमें कुल 13 जिले आते हैं। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के सागर जिले से उत्तर प्रदेश के बांदा तक जाएं तो एक नजारा जरुर आपको देखने मिल जाएगा और वह है, गांव के बाहर जानवरों का जमावड़ा।
इस साल से पहले तक इस इलाके में चारे और पानी की कमी पर बैल, बछड़ा और पड़ा (भैंस का बच्चा) को खुले में छोड़ दिया जाता था, मगर इस बार गायों को भी किसान छोड़ने को मजबूर हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता भगवान सिंह का कहना है कि किसानों द्वारा छोड़ी जा रही गायों को कत्लगाह तक ले जाने का सिलसिला चल पड़ा है। आलम यह है कि किसानों द्वारा छोड़ी गई गायों को स्थानीय व्यक्ति की मदद से निर्जन स्थान तक ले जाया जाता है, जहां से इस कारोबार में लगे लोग ट्रक आदि में भरकर गायों को ले जाते हैं।
सिंह ने आगे बताया कि किसान के लिए गाय को चारा उपलब्ध करा पाना संभव नहीं हो पा रहा है, पानी का अभाव है, जलस्रोत सूख चले हैं, इस स्थिति में अन्य जानवरों के साथ गायों को भी जंगल में छोड़ दिया है। गायों की किसी को परवाह नहीं है, इसी बात का मवेशी तस्कर लाभ उठा रहे हैं।
बुंदेलखंड की स्थिति पर गौर करें तो एक बात साफ हो जाती है कि सरकारी नौकरियों के अलावा यहां रोजगार का जरिए खेती और पशुपालन है। इस पर 80 प्रतिशत से ज्यादा की आबादी निर्भर करती है।
इस क्षेत्र में गोवंश 30 लाख से भी ज्यादा है। एक तरफ खेती को सूखा ने चौपट कर दिया है, तो वहीं पशुपालन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। जानकारों की मानें तो आने वाले वर्षो में इस इलाके में बारिश का यही हाल रहा तो अकाल पड़ना तय है, जिससे यह इलाका मवेशी की संख्या के मामले में भी चर्चा का केंद्र बन सकता है।
बुंदेलखंड का दौरा करने के बाद स्वराज अभियान के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव ने भी यह माना था कि ‘गाय’ को लेकर राजनीति तो खूब होती है, मगर बुंदेलखंड में गाय ही संकट में है। उसकी किसी को परवाह नहीं है।
वैसे तो यहां हर जानवर अकाल से जूझ रहा है, बैल और बछड़े को तो पहले भी जंगल में छोड़ दिया जाता था, मगर इस बार तो गायों का भी छोड़ दिया गया है। किसी भी गांव में प्रवेश करें तो सड़कों पर हजारों गाय आपको नजर आ जाएंगी।
गौ-संरक्षण के लिए वर्षो से बुंदेलखंड में काम कर रहे श्याम बिहारी गुप्ता का कहना है कि गायों को बचाना जरूरी है, इस इलाके से गायों की तस्करी हो रही है जो चिंताजनक है। उनका मानना है कि समाज के हर वर्ग को सुख समृद्धि के लिए गायों के संरक्षण और उनके महत्व से अवगत कराना जरूरी है, क्योंकि गाय का सिर्फ दूध ही नहीं, उसका मूत्र और गोबर भी उपयोगी है, जो दूध से भी कीमती है।
लिहाजा, जन सामान्य गाय के ज्ञान विज्ञान से अवगत कराया जाए तो लोग गाय को छोड़ना बंद कर देंगे। साथ ही सरकारों को भी गाय के प्रति नजरिया बदलना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा ने आईएएनएस से चर्चा के दौरान बुंदेलखंड मंे गायों की स्थिति पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि इस क्षेत्र में चारा, पानी का संकट है, मवेशियों के लिए अकाल जैसे हालात हैं।
बड़े हिस्से में गांव के लोगों के पास खुद खाने के लिए नहीं है, ऐसे में मवेशियों का पेट कैसे भर सकते हैं, लिहाजा वे गायों को खुले में छोड़ रहे हैं। इस आशंका को नकारा नहीं जा सकता कि गाय की तस्करी बढ़ जाएगी। ऐसे में समाज और सरकार से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह गाय पालकों की मदद के लिए आगे आएं।