नई दिल्ली, 16 मार्च (आईएएनएस)। तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग हो जाने पर भी लोकसभा में भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है। उसे करीब 315 सदस्यों का समर्थन हासिल है और खुद उसके पास जरूरी 270 सीटों से चार सीट ज्यादा यानी 274 सीटें हैं।
हाल ही में उत्तर प्रदेश और बिहार में हुए उप चुनावों में हारने के बाद संसद के ऊपरी सदन में भाजपा के 274 सदस्य हैं। इसके सहयोगी दलों के 41 सदस्यों को मिला दिया जाए तो यह संख्या 315 पर पहुंच जाती है।
इसमें शिवसेना (18) को भी शामिल किया गया है, जिसने अभी तक खुलासा नहीं किया है कि अविश्वास प्रस्ताव पर उसका क्या रुख होगा।
हाल के दिनों में शिवसेना और भाजपा के बीच संबंधों में खटास उभरकर सामने आई है।
राजग के सहयोगियों में लोक जनशक्ति पार्टी (6), अकाली दल (4), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (3), अपना दल (2), जनता दल-युनाइटेड (2) और ऑल इंडिया एन.आर. कांग्रेस (एआईएनआरसी), जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (जेकेपीडीपी), नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), पटाल्ली मक्कल काची (पीएमके), सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) के एक-एक सांसद शामिल हैं।
अन्नाद्रमुक, जिसने 2014 में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था लेकिन आम तौर पर इसे केंद्र की भाजपा सरकार का सहयोगी माना जाता है, के पास 37 सांसद हैं।
राजग से अलग होने वाले और इसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रहे तेदेपा के लोकसभा में 16 सांसद हैं, जबकि वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के लोकसभा में नौ सांसद हैं। इसने भी अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया।
यह देखना दिलचस्प होगा कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी तेदेपा और वाईएसआरसीपी क्या इसी तर्ज पर मतदान करेंगे। कमोबेश यही स्थिति तमिलनाडु में भाजपा के सहयोगी पीएमके की है, जो कावेरी मुद्दे पर नदी जल प्रबंधन बोर्ड गठित करने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लागू नहीं किए जाने से मोदी सरकार से नाराज चल रही है।