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असैन्य परमाणु समझौते वायु प्रदूषण घटाने में सक्षम?

May 8, 2015 6:54 pm by: Category: पर्यावरण, व्यापार Comments Off on असैन्य परमाणु समझौते वायु प्रदूषण घटाने में सक्षम? A+ / A-

Indian Dashari Mangosनई दिल्ली, 8 मई (आईएएनएस)| देश के असैन्य परमाणु समझौते वायु प्रदूषण घटाने की रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं, क्योंकि 80 फीसदी बिजली उत्पादन कोयले से होता है, जिससे काफी प्रदूषण पैदा होता है और उससे निजात पाने के लिए विकल्प तैयार करने की कोशिश जारी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की जर्मनी, फ्रांस और कनाडा की यात्रा के दौरान भारत ने कनाडा की कंपनी कैमिको के साथ समझौता किया है, जो दुनिया की सबसे बड़ी यूरेनियम उत्पादक कंपनी है।

समझौते के तहत कैमिको अगले छह सालों तक 3,000 टन यूरेनियम की आपूर्ति करेगी, जो 1,700 मेगावाट क्षमता वाले परमाणु बिजली संयंत्रों को चालू करने के लिए काफी है। देश में अभी 5,780 मेगावाट क्षमता के परमाणु बिजली संयंत्र स्थापित हो चुके हैं।

इसी तरह का एक समझौता 2013 में उज्बेकिस्तान के साथ हुआ है। सरकार आस्ट्रेलिया के साथ भी ऐसे ही एक समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहती है। आस्ट्रेलिया में यूरेनियम का सबसे बड़ा भंडार है। इसके अलावा रूस और कजाकिस्तान के साथ पहले ही इस तरह के समझौते हो चुके हैं।

देश के कुल बिजली उत्पादन में अभी परमाणु बिजली की हिस्सेदारी 3.5 फीसदी है और कुल खपत में इसकी हिस्सेदारी 1.3 फीसदी है। सरकार परमाणु बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता को 2014 के 4,780 मेगावाट से बढ़ाकर तीन गुना करना चाहती है। अभी स्थापित क्षमता 5,780 मेगावाट है। यही नहीं, 2031-32 तक सरकार इसे और बढ़ाकर 63,000 मेगावाट करना चाहती है।

खास बात यह है कि परमाणु बिजली उत्पादन की प्रक्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड तथा कई और प्रदूषणकारी तत्व पैदा नहीं होते हैं। यह हालांकि जोखिम भरा है। जर्मनी 2022 तक परमाणु संयंत्र बंद कर देना चाहता है।

बिजली उत्पादन के लिए कोयले का सबसे अधिक उपयोग करने वाला चीन भी परमाणु बिजली क्षमता को बढ़ाकर 2020 तक 58 हजार मेगावाट और 2030 तक 1,50,000 मेगावाट करना चाहता है।

परमाणु बिजली की राह में ईंधन आपूर्ति हालांकि बड़ी समस्या है, जो परमाणु बिजली के विस्तार को बाधित करता है।

देश की 5,780 मेगावाट परमाणु बिजली क्षमता में से 3,380 मेगावाट आयातित ईंधन पर आश्रित है। घरेलू परमाणु ईंधन से सिर्फ 2,400 मेगावाट के संयंत्रों को ही चलाया जा सकता है।

2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के बाद परमाणु बिजली कार्यक्रम को नई गति मिली। इस समझौते से भारत को परमाणु ईंधन का आयात करने और ईंधन आयात करने वालों के साथ समझौता करने की अनुमति मिल गई।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, परमाणु ईंधन के लिए भारत ने कई समझौते किए हुए हैं :

– फ्रांस की अरेवा के साथ 300 टन यूरेनियम अयस्क कंसंट्रेट के लिए 2008 में समझौता।

– रूस के टीवीईएल कॉरपोरेशन के साथ पांच साल के लिए 2,000 टन यूरेनियम डाईऑक्साइड छर्रे के लिए 2009 में समझौता। 2009 में ही 58 टन संवर्धित यूरेनियम डाईऑक्साइड छर्रे और 2015 में 42 टन संवर्धित यूरेनियम डाईऑक्साइड छर्रे के लिए समझौता।

– कजाकिस्तान की एनएसी कजाटोमप्रोम के साथ छह साल तक 2,100 टन यूरेनियम अयस्क कंसंट्रेट के लिए 2009 में हस्ताक्षर।

– उज्बेकिस्तान की एनएमएमसी के साथ पांच साल तक 2,000 टन यूरेनियम अयस्क कंसंट्रेट के लिए 2013 में हस्ताक्षर।

– कनाडा के कैमिको के साथ छह साल तक 3,000 टन यूरेनियम अयस्क कंसंट्रेट के लिए 2015 में हस्ताक्षर।

देश में 43,100 मेगावाट परमाणु क्षमता वाले संयंत्र की स्थापना प्रस्तावित है, जिसके एक बड़े हिस्से का निर्माण अमेरिका, फ्रांस और रूस की कंपनियों की साझेदारी में किया जाना है, जिसके लिए ईंधन की व्यवस्था वे ही करेंगी।

शेष संयंत्रों का निर्माण सरकार करेगी, जिसके लिए ईंधन आयात करना होगा। घरेलू यूरेनियम आपूर्ति काफी कम है और उसके परमाणु हथियार बनाने जैसे कुछ अन्य उपयोग भी हैं। इसलिए सरकार उसका उपयोग पूरी तरह से बिजली उत्पादन में ही नहीं करना चाहेगी।

(अमित भंडारी मीडिया, शोध एवं वित्त पेशेवर हैं। एक गैर लाभकारी, जनहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड डॉट ऑर्ग के साथ एक व्यवस्था के तहत।)

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